शिवसेना (उबाठा) ने कांग्रेस को बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने के फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा
नरेश
- 18 Nov 2025, 05:09 PM
- Updated: 05:09 PM
मुंबई, 18 नवंबर (भाषा) शिवसेना (उबाठा) ने मंगलवार को कहा कि मुंबई नगर निगम के आगामी चुनाव में कांग्रेस द्वारा अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा विपक्षी एकता के लिए हानिकारक है। शिवसेना (उबाठा) ने मुंबई को अलग करने की भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ‘योजना’ को विफल करने के लिए मिलकर चुनाव लड़ने के महत्व पर बल दिया।
शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ के संपादकीय में सहयोगी कांग्रेस की इस चिंता को कम करके आंका गया है कि अगर राज ठाकरे के नेतृत्व वाली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) को शिवसेना, राकांपा(एसपी) और कांग्रेस के विपक्षी गुट में शामिल कर लिया जाता है, तो उसके उत्तर भारतीय और मुस्लिम मतदाता आधार में संभावित सेंध लग सकती है।
कांग्रेस ने हाल ही में घोषणा की थी कि वह बीएमसी चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ेगी।
संपादकीय में कहा गया है कि कांग्रेस का मानना है कि अगर शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना एक साथ आती हैं, तो इससे हिंदी भाषी लोगों और मुस्लिम समुदाय के बीच उसकी संभावनाओं को नुकसान होगा। लेकिन बिहार में न तो राज ठाकरे और न ही शिवसेना (उबाठा) मौजूद थी, फिर भी कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा।
मुस्लिम समुदाय ने लोकसभा और राज्य विधानसभा दोनों चुनावों में महा विकास आघाडी (एमवीए)का समर्थन किया था। संपादकीय में कहा गया है कि उद्धव ठाकरे ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान धर्मों के बीच भेदभाव नहीं किया और शिवसेना (उबाठा) को विश्वास है कि मुस्लिम वोट एमवीए के साथ रहेंगे।
शिवसेना (उबाठा) ने कहा, ‘‘कांग्रेस को मुसलमानों और उत्तर भारतीयों की चिंता नहीं करनी चाहिए, वे एमवीए का समर्थन करते रहेंगे।’’
शिवसेना (उबाठा) ने आगे कहा कि अगर कांग्रेस सोचती है कि स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने से उसे हिंदी भाषी और मुस्लिमों के 100 प्रतिशत वोट मिल जाएंगे, तो ऐसा नहीं होगा।
संपादकीय में अपनी सहयोगी पार्टी पर तीखा तंज कसते हुए कहा गया है, ‘‘कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने घोषणा की है कि वह मुंबई नगर निगम का चुनाव अकेले लड़ेगी। बिहार के नतीजों के बाद कांग्रेस पार्टी में जो आत्मविश्वास जगा है, वह काबिले तारीफ है। कांग्रेस एक स्वतंत्र पार्टी है।’’
भाजपा पर मुंबई को तोड़ने की कोशिश करने का आरोप लगाते हुए संपादकीय में कहा गया है कि मुंबई न केवल महाराष्ट्र की राजधानी है, बल्कि देश की आर्थिक राजधानी भी है। इसमें दावा किया गया है कि ‘भाजपा प्रायोजित बिल्डर लॉबी’ मुंबई के प्रभाव को कम करने के लिए काम कर रही है।
शिवसेना (उबाठा) ने भाजपा और ‘अदाणी संस्कृति’ के खिलाफ लड़ने के लिए विपक्षी एकता के महत्व पर जोर देते हुए कहा, ‘‘ऐसी स्थिति में, सभी का एकजुट होना जरूरी है। मराठी कांग्रेस के नेताओं को कम से कम यह तो समझना चाहिए था कि यह मुंबई और महाराष्ट्र के स्वाभिमान की लड़ाई है।’’
संपादकीय में राज ठाकरे का पुरजोर समर्थन किया गया और ‘वोट चोरी’ के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा मुंबई में आयोजित एक मार्च में उनकी भागीदारी को याद किया गया।
इसमें कहा गया, ‘‘मुंबई में अकेले चुनाव लड़ने का फैसला कांग्रेस का है। हम एमवीए के रूप में एक साथ हैं। राज ठाकरे के आने से मराठी एकता और मजबूत होगी। क्या कांग्रेस बाकी 27 नगर निकायों में भी अकेले चुनाव लड़ेगी?’’
कांग्रेस ने व्यंग्यात्मक प्रतिक्रिया देते हुए शिवसेना (उबाठा) सांसद संजय राउत की पुरानी टिप्पणियों का परोक्ष रूप से जिक्र किया जिसमें उन्होंने कहा था कि ‘इंडी’ गुट और एमवीए गुट केवल लोकसभा और विधानसभा चुनावों के लिए बनाए गए थे, स्थानीय निकायों के चुनावी मुकाबले के लिए नहीं।
यह तीखी बहस कांग्रेस द्वारा बीएमसी चुनाव अकेले लड़ने की हालिया घोषणा से उपजी है, जिसके बाद शिवसेना (उबाठा) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने सप्ताहांत में अपनी स्थिति स्पष्ट की।
ठाकरे ने रविवार को संवाददाताओं से कहा, ‘‘कांग्रेस एक स्वतंत्र पार्टी है, और मेरी भी। कांग्रेस अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है, और मेरी पार्टी भी ऐसा करने के लिए स्वतंत्र है।’’
दो दिन बाद शिवसेना के मुखपत्र में प्रकाशित संपादकीय का लहजा सुलह-समझौते वाला प्रतीत हुआ। महाराष्ट्र कांग्रेस के प्रवक्ता सचिन सावंत ने कहा कि अगर शिवसेना ने पहले अपना रुख स्पष्ट कर दिया होता, तो मौजूदा स्थिति से बचा जा सकता था।
उन्होंने एमवीए की सीमित भूमिका पर राउत की टिप्पणियों की ओर इशारा करते हुए कहा, ‘‘जुलाई में कहा गया था कि महाराष्ट्र विकास आघाडी की जरूरत नहीं है। अगर यह स्पष्ट होता कि ऐसी सलाह के लिए बाद में स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो सकती है, तो यह मददगार होता।’’
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम पर टिप्पणी करते हुए सावंत ने कहा कि भाजपा की ‘सांप्रदायिक राजनीति’ को मूल सिद्धांतों से समझौता किए बिना पराजित किया जाना चाहिए।
इस बीच, सत्तारूढ़ भाजपा ने सामना के संपादकीय को ‘पिछलग्गू राजनीति’ का उदाहरण करार दिया। भाजपा की महाराष्ट्र इकाई के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने मंगलवार को ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘यद्यपि पार्टी नेता (उद्धव) दावा करते हैं कि कांग्रेस अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र है, उनका मुखपत्र उसी कांग्रेस से स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ने के अपने रुख पर पुनर्विचार करने की अपील करता है, जो दोहरे मापदंड और आत्मसम्मान की खोखली भावना को दर्शाता है।’’
उपाध्याय ने कहा कि जब शिवसेना (उबाठा) भाजपा के साथ गठबंधन में थी, तो वह अक्सर अपने सहयोगी पर हमला बोलती थी, लेकिन अब ‘सामना’ के संपादकीय को पढ़ने से ही पता चल जाता है कि पार्टी किस तरह कांग्रेस के सामने नतमस्तक है।
उन्होंने कहा, ‘‘एक बार जब आत्मसम्मान गिरवी रख दिया जाता है, तो ऐसी हताश अपीलें अपरिहार्य हो जाती हैं।’’
उपाध्याय ने कहा कि सोमवार को शिवसेना के संस्थापक और हिंदुत्व के प्रतीक बालासाहेब ठाकरे की पुण्यतिथि पर भाजपा नेताओं ने उन्हें याद किया और श्रद्धांजलि अर्पित की।
उपाध्याय ने आरोप लगाया कि इसके विपरीत राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे और कांग्रेस का उत्साहपूर्वक समर्थन करने वाले शिवसेना (उबाठा) नेताओं ने ‘बालासाहेब की पुण्यतिथि को याद करने की भी जहमत नहीं उठाई।
भाषा संतोष नरेश
नरेश