वायु प्रदूषण में कमी मानव स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद, लेकिन इससे समुद्र की सतह भी तेजी से गर्म हो रही
(द कन्वरसेशन) पारुल माधव
- 18 Nov 2025, 05:17 PM
- Updated: 05:17 PM
(नट वॉन साल्जन, वाशिंगटन विश्वविद्यालय)
सिएटल, 18 नवंबर (द कन्वरसेशन) उत्तरी गोलार्ध में सर्दी के मौसम की दस्तक के साथ ही बादलों से घिरे सर्द दिनों का भी आगमन हो गया है। बादल पर्यावरण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वे न सिर्फ बारिश की बूंदें बरसाते हैं, बल्कि सूर्य की किरणों के धरती पर पहुंचने से पहले उन्हें अंतरिक्ष में परावर्तित भी करते हैं।
हालांकि, 2003 से 2022 के बीच उत्तर अटलांटिक और उत्तर-पूर्व प्रशांत महासागर क्षेत्र के ऊपर के बादल कम परावर्तक हो गए, जिससे समुद्र की सतह पर धूप की पहुंच बढ़ गई और उसके तापमान में वृद्धि देखने को मिली।
मेरे और मेरे सहकर्मियों के हालिया अध्ययन से पता चलता है कि वायु गुणवत्ता सुधारने के वैश्विक प्रयासों ने बादलों की क्रिया में बदलाव लाकर अनजाने में जलवायु परिवर्तन को बढ़ावा दिया है।
स्वच्छ आबोहवा मानव स्वास्थ्य के लिए बेहद अहम है, लेकिन कण प्रदूषण की मात्रा घटने से बादलों के शीतलन प्रभाव में भी कमी आई है, जिससे ग्लोबल वॉर्मिंग की प्रक्रिया तेज हो गई है।
------कम परावर्तक होते बादल और बढ़ता तापमान------
बादलों पर कण प्रदूषण के स्तर में बदलाव और ग्लोबल वॉर्मिंग के प्रभाव का आकलन करने के लिए हमने अपने अध्ययन में दो दशक के उपग्रह डेटा का इस्तेमाल किया। ये डेटा दिखाता है कि उत्तरी गोलार्ध में वायु मंडल के सबसे निचले स्तर में पाए जाने वाले बादल 2003 के बाद से तेजी से कम परावर्तक होते गए हैं।
साल 2003 से 2022 के बीच उत्तर अटलांटिक और उत्तर-पूर्व प्रशांत महासागर क्षेत्र में खास तौर पर बादलों की परावर्तक क्षमता प्रति दशक लगभग तीन फीसदी कम हो गई। इसी अवधि के दौरान, समुद्र की सतह का तापमान लगभग 0.4 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया, जिससे समुद्री ताप लहर तेज हो गई और पारिस्थितिकी तंत्र तथा मछली पालन को नुकसान पहुंचा।
हमारा अनुमान था कि ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के कारण जलवायु गर्म होने से समुद्र के ऊपर निचले स्तर पर पाए जाने वाले बादलों की संख्या में कमी आएगी। हालांकि, दर्ज बदलाव इतने व्यापक थे कि इन्हें इस प्रक्रिया या प्राकृतिक जलवायु परिवर्तनशीलता के जरिये नहीं समझाया जा सकता था, जो तापमान वृद्धि के एक अतिरिक्त कारक ‘एरोसोल’ की ओर इशारा करता है, जिसे कई जलवायु मॉडल ने कम करके आंका है।
‘एरोसोल’ से आशय उन सूक्ष्म कणों या तरल बूंदों से है, जो बादलों के लिए ‘बीज’ के रूप में काम करते हैं, जिन पर जलवाष्प संघनित होकर बादल की बूंदें बनाती है। जब ‘एरोसोल’ की मात्रा कम होती है, तो बादल में कम, लेकिन बड़ी बूंदें बनती हैं। ये बूंदें सूरज की किरणों को कम परावर्तित करती हैं और इनके बारिश के रूप में जल्द बरसने की संभावना अधिक रहती है, जिससे कम समय तक टिकने वाले गहरे बादल बनते हैं।
यह प्रक्रिया समुद्री क्षेत्रों पर निचले स्तर के बादलों के शीतलन प्रभाव को कमजोर कर देती है। दरअसल, ‘एरोसोल’ की मात्रा ज्यादा होने पर बादलों में छोटी, लेकिन अधिक बूंदें बनती हैं, जो सूर्य से अधिक गर्मी को परावर्तित करके पृथ्वी को ठंडा करती हैं।
हमने पाया कि यह प्रभाव दो ज्ञात तंत्रों से उत्पन्न होता है। पहला-ट्वोमी प्रभाव, जिसमें ‘एरोसोल’ की कम मात्रा बादलों को कम परावर्तक बनाती है। दूसरा-अल्ब्रेक्ट प्रभाव, जिसमें बड़ी बूंदें बनती हैं, लेकिन बादलों का जीवनकाल घट जाता है। ये परिवर्तन मिलकर पृथ्वी की समग्र परावर्तकता को कम कर देते हैं।
------स्वच्छ आबोहवा में गर्म होती धरती------
अंतत: हमारा अध्ययन एक विरोधाभास को उजागर करता है कि स्वच्छ आबोहवा बेशक मानव स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, लेकिन यह ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में वृद्धि के प्रभाव को भी बढ़ाता है, जो ऐतिहासिक रूप से कण प्रदूषण के शीतलन प्रभाव के कारण “सामने नहीं आ पाया है।”
सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ2) का उत्सर्जन वायु मंडल में ‘सल्फेट एरोसोल’ का मुख्य स्रोत है। हालांकि, देशों के सख्त वायु-गुणवत्ता नियमन अपनाने से इसके स्तर में तेजी से गिरावट आई है। अकेले चीन के एसओ2 उत्सर्जन में साल 2003 से प्रति दशक लगभग 16 मिलियन मीट्रिक टन की कमी दर्ज की गई है। अमेरिका और यूरोप में भी इसमें लगभग इतनी ही कमी देखी गई है।
स्वच्छ आबोहवा का मतलब यह है कि स्थिर, चमकीले और अधिक परावर्तक बादलों के निर्माण के लिए कम ‘एरोसोल’ कण उपलब्ध होंगे।
हमारे अध्ययन से पता चला कि बादल की बूंदों की सांद्रता में पांच से 10 फीसदी की गिरावट आई है, खास तौर पर उन क्षेत्रों में, जहां स्थिर, चमकीले और अधिक परावर्तक बादलों की संख्या सबसे अधिक घटी है।
‘एरोसोल’ की मात्रा में कमी, बड़ी बूंदों के अधिक निर्माण और बादलों की परावर्तक क्षमता में गिरावट के बीच गहरे संबंध ने इस बात की पुष्टि की है कि स्वच्छ आबोहवा क्षेत्रीय तापमान में वृद्धि का कारण बन रही है।
हमने 24 पृथ्वी प्रणाली मॉडल का विश्लेषण किया और पाया कि इनमें से अधिकांश ने बादलों में होने वाले बदलावों के पैमाने और दायरे को कम करके आंका था। केवल वे मॉडल जो सटीक रूप से दर्शाते थे कि ‘एरोसोल’ बादलों को कैसे प्रभावित करते हैं, वास्तविक दुनिया के अवलोकनों से मेल खाते थे, जिससे मॉडलिंग की एक बड़ी कमजोरी उजागर हुई।
हमारे अध्ययन में हमने कणीय वायु प्रदूषण में कमी के प्रभावों को, बादलों में सामान्य तापमान वृद्धि के कारण होने वाले बदलावों से अलग किया। निष्कर्षों से पता चला कि बादलों की परावर्तकता में 69 फीसदी कमी के लिए ‘एरोसोल’ जिम्मेदार थे, जबकि 31 प्रतिशत गिरावट के पीछे तापमान वृद्धि का हाथ था।
हमने जब परिस्थितियों को दोहराया, तो पाया कि बड़ी बूंदों (अल्ब्रेक्ट प्रभाव) के कारण बादलों के जीवनकाल में होने वाले बदलाव, बादलों की बूंदों के आकार में परिवर्तन (टौमी प्रभाव) लाने में अधिक प्रभावी साबित हुए।
उत्तर अटलांटिक और उत्तर-पूर्व प्रशांत महासागर क्षेत्र में स्वच्छ वायु और कम परावर्तक बादलों के निर्माण के कारण पृथ्वी के वैश्विक ऊर्जा असंतुलन में हर दशक लगभग 0.15 वाट प्रति वर्ग मीटर की वृद्धि हुई, जबकि ये क्षेत्र ग्रह की सतह का केवल 14 फीसदी हिस्सा ही कवर करते हैं।
इसी अवधि के दौरान वैश्विक स्तर पर कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) के बढ़ते उत्सर्जन ने पृथ्वी के वैश्विक ऊर्जा असंतुलन में हर दशक लगभग 0.31 वाट प्रति वर्ग मीटर की वृद्धि की, जिसका मतलब यह है कि स्वच्छ वायु ने संबंधित क्षेत्रों में सीओ2 के मुकाबले लगभग आधी अतिरिक्त गर्मी पैदा की।
यह निष्कर्ष एक नीतिगत चुनौती पैदा करता है कि वायु गुणवत्ता में सुधार, जो जीवन बचाता है, उस शीतलन कवच को भी हटा देता है, जो ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के कारण तापमान में होने वाली वृद्धि के एक बड़े हिस्से को बेअसर बनाता है। चूंकि, ‘एरोसोल’ उत्सर्जन में मध्य शताब्दी तक गिरावट जारी रहने का अनुमान है, इसलिए यह प्रभाव कई दशकों तक तापमान में तेज वृद्धि का कारण बना रह सकता है।
(द कन्वरसेशन) पारुल