ओडिशा : सुविधाओं से वंचित बाल मजदूर पटनायक ने पुरी के तट को ही बना दिया कैनवास
माधव
- 18 Nov 2025, 05:49 PM
- Updated: 05:49 PM
मुंबई, 18 नवंबर (भाषा) दुनिया भर में रेत कलाकार के रूप में ख्याति प्राप्त सुदर्शन पटनायक ने जिंदगी की शुरुआत एक बाल मजदूर के तौर पर की जो रंग और ब्रश खरीदने में असमर्थ था लेकिन अपनी जिजीविषा से ओडिशा के पुरी समुद्र तट के विशाल किनारों को अपने कैनवास में तब्दील कर दिया।
मुंबई में पु. ला. देशपांडे कला अकादमी में आयोजित अपनी नवीनतम प्रदर्शनी में, पद्म श्री पुरस्कार विजेता ने 50 से अधिक मिश्रित कलाकृतियों में प्रकृति को श्रद्धांजलि अर्पित की है। इसमें उन्होंने रंगों और रेत को मिलाने की दुर्लभ तकनीक का उपयोग किया है।
उनके काम में नीले, पीले और मिट्टी के रंगों का प्रभुत्व है, जिसमें रेत और टिशू पेपर के साथ बनावट का सम्मोहक मिश्रण दिखता है।
पुरी समुद्र तट पर अपनी शानदार रेत कलाकृतियों के लिए दुनिया भर में मशहूर पटनायक कहते हैं, ‘‘मैंने रेत और रंगों की जुगलबंदी की है। मैं इन दोनों माध्यमों, से अपने अतीत और वर्तमान, को एक साथ मिलाना चाहता था।’’
पटनायक (48) ने अपने अतीत को याद करते हुए ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि 10 साल की उम्र में बाल मज़दूरी करते हुए, वह अपनी मामूली कमाई रंगों और ब्रशों पर खर्च कर देते थे। लेकिन वह अपनी इस आदत को बरकरार नहीं रख पाए और जल्द ही पुरी समुद्र तट की रेत ने उनका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कर लिया, और फिर उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
पटनायक ने खेद जताते हुए कहा, ‘‘मैंने केवल पांचवीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है। जिस समय मुझे स्कूल बैग उठाना चाहिए था, उस समय मुझे किसी के लिए काम करके जीविका कमाने के लिए मजबूर होना पड़ा।’’
रेत कलाकार ने कहा, ‘‘लेकिन उन्हें कला में सुकून मिला, और ओडिशा के तट उनके लिए खुला कैनवास बन गए। प्राकृतिक आपदाओं से जूझते हुए, उन्होंने अपनी कुछ सबसे अद्भुत क्षणिक और क्षणभंगुर कृतियां रचीं, चाहे वे प्रमुख हस्तियों को श्रद्धांजलि देने की बात हो या व्यापक समाज को प्रभावित करने वाले मुद्दों के बारे में जागरूकता फैलाने की।’’
उन्होंने कहा कि हाल के वर्षों में उनके प्रशंसकों के अनुरोध पर असली कैनवास की ओर उनका ध्यान गया। पटनायक कहते हैं, ‘‘वे मेरी कुछ कलाकृतियां अपने साथ ले जाना चाहते थे। यहां तक कि सुधा मूर्ति ने मेरे प्रयासों की सराहना की और इस ओर ध्यान दिलाया।’’
पटनायक बताते हैं, ‘‘कला की पूरी दुनिया अब स्थूलता पर चलती है। मुझे लगा कि मुझे अपने पीछे एक विरासत छोड़नी चाहिए, कुछ ऐसा जिससे लोग मुझे याद रखें।’’
पटनायक की मुंबई में यह पहली प्रदर्शनी है। इसमें उन्होंने अपनी रचनात्मकता में स्थायित्व लाने का प्रयास किया है, तथा प्रकृति को उसकी संपूर्ण महिमा में तथा जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को उजागर करने के लिए ऐक्रेलिक, रेत और टिशू पेपर के संयोजन का उपयोग किया है।
उन्होंने कहा, ‘‘मैंने पिछले सात-आठ सालों में 55 मिक्स्ड-मीडिया कैनवस बनाए हैं। हालांकि रेत की मूर्तियां बनाने में मुझे बस एक-दो दिन लगते हैं, ये पेंटिंग्स सालों के आत्ममंथन और चिंतन का नतीजा हैं। इन्हें कैनवास पर उतारने से पहले मैंने इनके बारे में सपने भी देखे थे।’’
पटनायक कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं पता कि मैं ऐसी कितनी पेंटिंग बना पाऊंगा। लेकिन मैं चाहता हूं कि मेरा काम अगले 100 सालों तक लोगों को प्रेरित करता रहे।’’
उनकी पेंटिंग 18 से 23 नवंबर तक मुंबई में प्रदर्शित की जाएंगी।
भाषा धीरज