पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी पर्यावरण कानून के लिए अभिशाप : न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां
सुरेश प्रशांत
- 18 Nov 2025, 09:02 PM
- Updated: 09:02 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश उज्जल भुइयां ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) के मुद्दे पर असहमति जताते हुए मंगलवार को कहा कि ऐसी मंजूरियां पर्यावरण कानून के लिए “अभिशाप” हैं, क्योंकि ये एहतियाती सिद्धांत और सतत विकास की आवश्यकता, दोनों के विपरीत हैं।
शीर्ष अदालत ने बहुमत (2:1) के फैसले से 16 मई के अपने उस फैसले को वापस ले लिया, जिसमें केंद्र को पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया गया था।
प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने मई के फैसले को वापस लेने का आदेश दिया और मामले को नये सिरे से पुनर्विचार के लिए एक उपयुक्त पीठ के समक्ष रखने का निर्देश दिया।
न्यायमूर्ति भुइयां ने राष्ट्रीय राजधानी में वायु प्रदूषण का उल्लेख किया और कहा, ‘‘दिल्ली की ‘घातक’ धुंध हमें हर दिन पर्यावरण प्रदूषण के खतरों की याद दिलाती है।’’ उन्होंने ‘पुनर्विचार निर्णय’ को ‘‘पीछे की ओर बढ़ा एक कदम’’ बताया।
न्यायमूर्ति भुइयां ने अपने 96 पृष्ठों के फैसले में कहा, “पर्यावरण न्यायशास्त्र में पूर्वव्यापी पर्यावरणीय प्रभाव (ईसी) जैसी कोई अवधारणा नहीं है। इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता। यह एक अभिशाप है। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यह पर्यावरण के लिए हानिकारक है और इससे अपूरणीय पारिस्थितिक क्षरण हो सकता है।”
उन्होंने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पर्यावरण को विकास के विरुद्ध खड़ा करके एक झूठी कहानी गढ़ी जा रही है।
उन्होंने आगे कहा, ‘‘यह पूरी तरह से अस्थिर द्वंद्व है, क्योंकि पारिस्थितिकी और विकास एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं। दोनों ही सतत विकास की संवैधानिक संरचना का हिस्सा हैं। बार-बार दोहराए जाने का जोखिम उठाते हुए, यह फिर कहा जाता है कि विकास और पर्यावरण के बीच कोई विरोधाभास नहीं है।’’
न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि देश के सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय के रूप में, उच्चतम न्यायालय का संविधान और उसके अंतर्गत बनाए गए कानूनों के तहत पर्यावरण की रक्षा करने का कर्तव्य और दायित्व है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस देश में विकसित हुए सुदृढ़ पर्यावरणीय न्यायशास्त्र से पीछे हटना उचित नहीं है, वह भी ऐसे लोगों द्वारा दायर की गई पुनर्विचार याचिका पर, जिन्होंने कानून के शासन के प्रति जरा भी सम्मान नहीं दिखाया है।’’
न्यायमूर्ति ए.एस. ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने 16 मई को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) और संबंधित प्राधिकारियों को उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंज़ूरी (ईसी) देने से रोक दिया था, जो पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करती पाई गई हों।
भाषा सुरेश