दंवा कंपनियों के अनैतिक तौर-तरीके: लोगों को उचित उपचार मिलना चाहिए: उच्चतम न्यायालय
संतोष माधव
- 18 Nov 2025, 09:57 PM
- Updated: 09:57 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि दवा विपणन के लिए समान संहिता के तहत प्रक्रियाएं इतनी मजबूत होनी चाहिए कि धोखाधड़ी का शिकार होने वाले किसी भी उपभोक्ता के लिए अनैतिक तौर-तरीके के खिलाफ उचित उपचार सुलभ हो।
न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि ऐसे उचित उपाय होने चाहिए जहां उपभोक्ताओं के पास अपनी शिकायत दर्ज कराने के लिए एक सुविधाजनक तंत्र हो और यह सुनिश्चित हो कि गलती करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की जाए।
शीर्ष अदालत एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें अनुरोध किया गया है कि दवा विपणन के तौर-तरीकों के लिए समान संहिता होनी चाहिए जिससे दवा कंपनियों की कथित अनैतिक तरीकों पर अंकुश लगाया जा सके।
केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने कहा कि सरकार ने दवाओं के मूल्य निर्धारण पर अंकुश लगाने और ऐसे तरीकों को विनियमित करने के उद्देश्य से कई नीतियां पेश की हैं।
उन्होंने ‘फार्मास्युटिकल्स मार्केटिंग प्रैक्टिसेज के लिए समान संहिता’ (यूसीपीएमपी), 2024 का हवाला दिया, जो दवा कंपनियों को स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों या उनके परिवार के सदस्यों को उपहार और यात्रा सुविधाएं देने से रोकती है।
पीठ ने पूछा, ‘‘लेकिन अगर आपने कोई संहिता बनाई है, तो उसमें उचित उपाय क्यों नहीं होने चाहिए जिससे उपभोक्ताओं के पास अपनी शिकायतें दर्ज कराने और गलती करने वाली कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए एक सुविधाजनक तंत्र हो।’’
नटराज ने यूसीपीएमपी के तहत शिकायत दर्ज कराने और जुर्माने की प्रक्रिया का ज़िक्र करते हुए कहा कि इस संबंध में एक स्वतंत्र पोर्टल बनाया जा सकता है।
उन्होंने औषधि एवं प्रसाधन सामग्री अधिनियम, 1940 का भी ज़िक्र किया, जो दवाओं के आयात, निर्माण, वितरण और बिक्री को नियंत्रित करता है।
पीठ ने कहा कि यूसीपीएमपी के तहत प्रक्रिया ‘‘इतनी मजबूत होनी चाहिए कि धोखाधड़ी का शिकार होने वाले हर व्यक्ति या उपभोक्ता के लिए उचित उपचार सुलभ हो सके।’’
मूल्य निर्धारण के पहलू पर नटराज ने कहा कि एक अलग तंत्र और विनियमन मौजूद है। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय पारिख ने कहा कि यूसीपीएमपी-2024 केवल एक स्वैच्छिक संहिता है।
पीठ ने नटराज से कहा कि वे इस बारे में निर्देश लें कि क्या सरकार की ओर से इन गतिविधियों की देखभाल के लिए कोई वैधानिक व्यवस्था लाने की कोई पहल की गई है।
पीठ ने पारिख से याचिका में उठाए गए मुद्दों पर सुझाव देने को भी कहा। पीठ ने कहा कि विधि अधिकारी सुझावों पर निर्देश प्राप्त कर सकते हैं। पीठ ने मामले की सुनवाई 16 दिसंबर के लिए स्थगित कर दी।
याचिका में आरोप लगाया गया है कि यद्यपि इसे ‘बिक्री संवर्धन’ (सेल्स प्रमोशन) कहा जाता है, लेकिन वास्तव में दवाओं की बिक्री में वृद्धि के बदले चिकित्सकों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ (उपहार, मनोरंजन की व्यवस्था, प्रायोजित विदेश यात्राएं, आतिथ्य और अन्य लाभ) दिए जाते हैं।
इसमें दावा किया गया है कि ऐसा कोई प्रभावी (कानूनी रूप से बाध्यकारी) कानून मौजूद नहीं है जो दवा कंपनियों द्वारा चिकित्सकों और स्वास्थ्यकर्मियों के बीच दवाओं के प्रचार-प्रसार (प्रमोशन) को नियंत्रित करता हो, इसिलए ऐसे अनैतिक तौर-तरीके बेरोक-टोक जारी हैं।
भाषा संतोष