न्यायालय ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी पर रोक के फैसले को वापस लिया, एक न्यायाधीश की असहमति
सुरेश माधव
- 18 Nov 2025, 10:07 PM
- Updated: 10:07 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को बहुमत का फैसला सुनाते हुए अपने 16 मई के उस निर्णय को वापस ले लिया, जिसमें पूर्व प्रभाव से पर्यावरण मंजूरी देने का विरोध किया गया था।
इस नये निर्णय के परिणामस्वरूप अब केंद्र सरकार और अन्य प्राधिकार उन परियोजनाओं को भारी जुर्माना भरने की शर्त पर पर्यावरणीय मंजूरी दे सकेंगे, जिन्होंने पर्यावरण मानकों का उल्लंघन किया है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन ने अपने अलग-अलग, लेकिन सहमति के फैसलों में कहा कि यदि 16 मई का वह निर्णय वापस नहीं लिया गया, जिसमें केंद्र को पूर्व प्रभाव से पर्यावरणीय मंजूरी देने पर रोक लगाई गई थी, तो कई महत्वपूर्ण सार्वजनिक परियोजनाएं रुक जाएंगी या उन्हें ध्वस्त करनी पड़ेंगी, जिससे हजारों करोड़ रुपये व्यर्थ हो जाएंगे।
पीठ में शामिल तीसरे न्यायाधीश उज्ज्वल भुइयां ने अलग से असहमति का फैसला लिखा। न्यायमूर्ति भुइयां ने पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी (ईसी) के मुद्दे पर असहमति जताते हुए कहा कि ऐसी मंजूरियां पर्यावरण कानून के लिए “अभिशाप” हैं, क्योंकि ये एहतियाती सिद्धांत और सतत विकास की आवश्यकता, दोनों के विपरीत हैं।
पीठ का 2:1 का यह निर्णय वनशक्ति फैसले के खिलाफ दायर लगभग 40 पुनर्विचार और संशोधन याचिकाओं पर आया है।
कुल 84 पृष्ठों के अपने निर्णय में प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि 16 मई 2025 का फैसला वापस लिया जाता है, और संबंधित रिट याचिकाएं तथा अपील फिर से सुनवाई के लिए रजिस्ट्री के समक्ष भेजी जा रही हैं।
प्रधान न्यायाधीश ने रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि मामले को उनके समक्ष प्रशासनिक स्तर पर रखा जाए, ताकि केंद्र सरकार की अधिसूचनाओं और कार्यालय ज्ञापनों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर दोबारा सुनवाई के लिए आवश्यक आदेश जारी किए जा सकें।
न्यायमूर्ति ए एस ओका (अब सेवानिवृत्त) और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने 16 मई को अपने फैसले में पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय और संबंधित प्राधिकारियों को उन परियोजनाओं को पूर्वव्यापी पर्यावरणीय मंजूरी देने से रोक दिया था, जो पर्यावरणीय मानदंडों का उल्लंघन करती पाई गई थीं।
सीजेआई ने कहा, ‘‘अगर मंज़ूरी की समीक्षा नहीं की गई तो 20,000 करोड़ रुपये की सार्वजनिक परियोजनाओं को ध्वस्त करना पड़ेगा। अपनी व्यवस्था में मैंने फैसला वापस लेने की अनुमति दी है। मेरे फैसले की मेरे भाई न्यायमूर्ति भुइयां ने आलोचना की है।’’ इस फैसले में कहा गया है कि समीक्षाधीन निर्णय प्रमुख कानूनी मिसालों पर विचार किए बिना पारित किया गया था।
विभिन्न निर्णयों का उल्लेख करते हुए प्रधान न्यायाधीश ने कहा, "...यद्यपि इस न्यायालय ने माना है कि पूर्वव्यापी प्रभाव से पर्यावरण मंजूरी सामान्यतः नहीं दी जानी चाहिए, लेकिन असाधारण परिस्थितियों में उन्हें दी जा सकती है।’’
प्रधान न्यायाधीश ने अपना निर्णय दो मुख्य आधारों पर आधारित किया, पहला- न्यायिक अनुशासन में गंभीर त्रुटि और दूसरा- जनहित पर इसका विनाशकारी प्रभाव पड़ा।
उन्होंने कहा कि पिछले निर्णय में सतर्कता का अभाव (पर इनक्यूरियम) था, क्योंकि इसमें अन्य मामलों में समान क्षमता वाली पीठों द्वारा दिए गए कम से कम तीन बाध्यकारी उदाहरणों पर विचार नहीं किया गया था।
न्यायमूर्ति चंद्रन ने सीजेआई से सहमति जताते हुए लिखा कि पिछली पीठ द्वारा इन महत्वपूर्ण निर्णयों पर ध्यान न देना ही (याचिका पर) पुनर्विचार का पर्याप्त आधार है। उन्होंने पुनर्विचार याचिका को स्वीकार करना “आवश्यक और समीचीन” बताया।
न्यायमूर्ति भुइयां ने इस पर कड़ी असहमति जताते हुए कहा कि पूर्वव्यापी मंजूरी का पर्यावरण कानून में कोई प्रावधान नहीं है।
उन्होंने कहा कि ‘‘पर्यावरण कानून में घटना के बाद दी जाने वाली मंजूरी जैसी कोई अवधारणा नहीं है’’ और उन्होंने इस विचार को ‘‘एक घोर अपवाद, एक अभिशाप, पर्यावरणीय न्यायशास्त्र के लिए हानिकारक’’ बताया।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा कि अदालत ने ‘‘पाया है कि 2013 की अधिसूचना के साथ-साथ 2021 के कार्यालय ज्ञापन में योजना भारी जुर्माना लगाने पर पर्यावरणीय मंज़ूरी देने की अनुमति देने की थी।’’
सीजेआई की अध्यक्षता वाली पीठ ने नौ अक्टूबर को कपिल सिब्बल, मुकुल रोहतगी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। ये अधिवक्ता विभिन्न औद्योगिक और अवसंरचना संस्थाओं के साथ-साथ सरकारी निकायों की ओर से पेश हुए थे और विवादित फैसले की समीक्षा या संशोधन के पक्ष में थे।
भाषा सुरेश