उच्चतम न्यायालय ने न्यायाधिकरण सुधार अधिनियम के अहम प्रावधानों को रद्द किया
जोहेब अविनाश
- 19 Nov 2025, 09:14 PM
- Updated: 09:14 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने केंद्र सरकार को बड़ा झटका देते हुए बुधवार को न्यायाधिकरणों के सदस्यों और पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित 2021 न्यायाधिकरण सुधार कानून के प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया और कहा कि "संसद मामूली बदलावों के साथ इन्हें फिर से लागू करके न्यायिक फैसले को दरकिनार नहीं कर सकती।”
शीर्ष अदालत ने अध्यादेश के समान प्रावधानों को कानून के रूप में पेश करने के लिए केंद्र के खिलाफ तीखी टिप्पणी की।
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने 137 पृष्ठ के अपने फैसले में कहा, "हम उन मुद्दों पर इस अदालत के निर्देशों को बार-बार अस्वीकार करने के भारत सरकार के रवैये से असहमति जताते हैं, जिन्हें पहले ही कई निर्णयों के माध्यम से सुलझा लिया गया है।”
पीठ ने कहा, “यह सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण है कि न्यायाधिकरणों की स्वतंत्रता और कामकाज को लेकर इस न्यायालय की ओर से तय किए गए स्पष्ट सिद्धांतों को लागू करने के बजाय, विधायिका ने ऐसे प्रावधान फिर से पेश किए, जिनकी वजह से अलग-अलग कानूनों और नियमों के जरिए वही संवैधानिक वाद-विवाद फिर शुरू हो गए हैं।”
पीठ ने कहा कि विवादित प्रावधान शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं और उन्हें वापस नहीं लाया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा कि लंबित मामलों से निपटना केवल न्यायपालिका की जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि यह जिम्मेदारी सरकार के अन्य अंगों को भी उठानी होगी।
पीठ ने कहा कि संसद ने पहले से ही न्यायालय द्वारा रद्द किए गये प्रावधानों को पुनः लागू करके बाध्यकारी न्यायिक मिसालों की ‘‘विधायी रूप से अवहेलना’’ का प्रयास किया।
प्रधान न्यायाधीश ने फैसले में कहा, ‘‘हमने अध्यादेश और 2021 के अधिनियम के प्रावधानों की तुलना की है और यह दर्शाता है कि पहले ही खारिज किए जा चुके सभी प्रावधानों को मामूली बदलाव के साथ फिर से लागू किया गया है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस प्रकार हमारा मानना है कि 2021 अधिनियम के प्रावधानों को बरकरार नहीं रखा जा सकता क्योंकि यह शक्तियों के पृथक्करण और न्यायिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। यह किसी भी खामी को दूर किए बिना और बाध्यकारी निर्णय के विपरीत जाकर विधायी अतिक्रमण के समान है… यह संविधान के अनुरूप नहीं है। इसलिए, इसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द किया जाता है।’’
शीर्ष अदालत ने न्यायाधिकरण सुधार (युक्तिकरण और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 11 नवंबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
सरकार 2021 में अधिनियम लाई जिसमें फिल्म प्रमाणन अपीलीय न्यायाधिकरण सहित कुछ अपीलीय न्यायाधिकरणों को समाप्त कर दिया गया और विभिन्न न्यायाधिकरणों के न्यायिक एवं अन्य सदस्यों की नियुक्ति, कार्यकाल से संबंधित विभिन्न शर्तों में संशोधन किया गया।
भाषा
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