न्यायालय ने केंद्र से अंग प्रतिरोपण पर राष्ट्रीय नीति, समान नियम बनाने को कहा
वैभव रंजन
- 19 Nov 2025, 02:18 PM
- Updated: 02:18 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को अंगदान और आवंटन के लिए एक पारदर्शी एवं सक्षम प्रणाली बनाने के लिए राज्यों के परामर्श से एक राष्ट्रीय नीति और समान नियम बनाने के संबंध में कई निर्देश जारी किए।
प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने इंडियन सोसायटी ऑफ ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर ये निर्देश पारित किए।
प्रधान न्यायाधीश ने अपने आदेश में केंद्र से अनुरोध किया कि वह आंध्र प्रदेश को मानव अंग प्रतिरोपण अधिनियम, 1994 में 2011 के संशोधनों को अपनाने के लिए राजी करे।
उन्होंने यह भी निर्देश दिया कि कर्नाटक, तमिलनाडु और मणिपुर जैसे राज्य, जिन्होंने अभी तक मानव अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण नियम, 2014 को नहीं अपनाया है, इस मुद्दे के ‘महत्व’ पर जोर देते हुए इसे शीघ्रता से अपनाएं।
पीठ ने केंद्र से अंग प्रतिरोपण के लिए ‘‘आदर्श आवंटन मानदंड’’ वाली एक राष्ट्रीय नीति विकसित करने को कहा।
पीठ ने कहा कि इस नीति में लिंग और जातिगत पूर्वाग्रह के मुद्दों पर ध्यान दिया जाना चाहिए और राज्य-वार विसंगतियों को समाप्त करने के लिए ‘‘देश भर के अंगदाताओं के लिए एक समान मानदंड’’ स्थापित किए जाने चाहिए।
शीर्ष अदालत ने इस बात का संज्ञान लिया कि मणिपुर, नगालैंड, अंडमान निकोबार और लक्षद्वीप जैसे राज्यों में राज्य अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण संगठन (एसओटीटो) का अभाव है। पीठ ने केंद्र से राज्यों से परामर्श के बाद राष्ट्रीय अंग प्रतिरोपण कार्यक्रम के तहत इन निकायों का गठन करने को कहा।
जीवित रहते हुए अंगदान करने वालों को ‘शोषण’ से बचाने के मुद्दे पर, पीठ ने केंद्र सरकार से कहा कि ऐसे लोगों के कल्याण के लिए दिशानिर्देश विकसित किये जाएं ताकि अंगदान के बाद उनकी देखभाल की जा सके और उनका उत्पीड़न रोका जा सके।
उसने सरकार को राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रतिरोपण संगठन (एनओटीटीओ) के परामर्श से जन्म और मृत्यु पंजीकरण प्रपत्रों (फॉर्म 4 और 4ए) में संशोधन करने का भी निर्देश दिया ताकि स्पष्ट रूप से यह दर्शाया जा सके कि क्या मृत्यु ‘मस्तिष्कीय मृत्यु’ थी और क्या परिवार को अंगदान का विकल्प प्रदान किया गया था।
मंगलवार को, जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता ने देश भर में 2014 के नियमों की उपयोगिता के बारे में एकरूपता की कमी के मुद्दे पर दलील रखना शुरू किया, क्योंकि आंध्र प्रदेश और कर्नाटक जैसे कुछ राज्य इसके बजाय अपने मौजूदा कानूनों पर निर्भर हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ वकील के. परमेश्वर ने कहा कि आज की तारीख में दाताओं और प्राप्तकर्ताओं के लिए एक समेकित राष्ट्रीय डेटाबेस का अभाव चिंताजनक है और राज्यों में प्रक्रिया को धीमा कर रहा है।
उन्होंने कहा कि अंग प्रतिरोपण आज तक केवल एक निश्चित वर्ग के लोगों के लिए ही सुलभ है, क्योंकि वर्ग और लैंगिक असमानताएं कायम हैं।
कम से कम 90 प्रतिशत अंग प्रतिरोपण निजी अस्पतालों में होते हैं, जबकि सरकारी अस्पतालों को अंगदान रजिस्ट्री में मुश्किल से ही नुमाइंदगी मिलती है।
इससे पहले 21 अप्रैल को, न्यायालय ने केंद्र को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों और लोक स्वास्थ्य सचिवों की एक बैठक बुलाने और अंग प्रतिरोपण कानूनों को अपनाने और लागू करने के साथ-साथ एनओटीटीओ दिशानिर्देशों के अनुपालन पर विस्तृत आंकड़े एकत्र करने का निर्देश दिया था। इन कानूनों में 1994 का अधिनियम, इसका 2011 का संशोधन और 2014 के नियम शामिल हैं।
भाषा वैभव