अकेली महिलाएं संपत्ति विवाद की आशंका दूर करने के लिए अपना वसीयत बनाएं : न्यायालय
धीरज नरेश
- 19 Nov 2025, 05:58 PM
- Updated: 05:58 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उन सभी महिलाओं से अपील की जिनकी संतान या पति नहीं हैं, कि वे अपने माता-पिता और ससुराल वालों के बीच संभावित मुकदमेबाजी से बचने के लिए वसीयत बनाएं।
शीर्ष अदालत ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम-1956 का हवाला देते हुए कहा कि उस समय संसद ने यह मान लिया होगा कि महिलाओं के पास स्व-अर्जित संपत्ति नहीं होगी, लेकिन इन दशकों में महिलाओं की प्रगति को कम करके नहीं आंका जा सकता।
पीठ ने कहा, ‘‘इस देश में हिंदू महिलाओं सहित महिलाओं की शिक्षा, रोजगार और उद्यमिता ने उन्हें स्व-अर्जित संपत्ति बनाने के लिए प्रेरित किया है।’’
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ यदि किसी हिंदू महिला की मृत्यु बिना वसीयत के और उसके पुत्र, पुत्री और पति के अभाव में हो जाती है, तो ऐसी स्व-अर्जित संपत्ति केवल उसके पति के उत्तराधिकारियों को ही मिलेगी, तो संभवतः जहां तक मायके वालों का सवाल है, यह उनके लिए परेशानी का कारण बन सकता है। हम इस संबंध में भी कोई टिप्पणी नहीं करते हैं।’’
न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति आर महादेवन की पीठ ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(बी) को चुनौती देने के लिए एक महिला वकील द्वारा दायर जनहित याचिका का निस्तारण करते हुए यह सुझाव दिया।
अधिनियम की धारा 15(1)(बी) के अनुसार, जब किसी हिंदू महिला की बिना वसीयत के मृत्यु हो जाती है, तो उसकी संपत्ति उसके माता-पिता से पहले उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलती है।
अधिवक्ता स्निधा मेहरा द्वारा दायर याचिका में दलील दी गई कि यह प्रावधान मनमाना है तथा संविधान के अनुच्छेद 14, 15 और 21 का उल्लंघन करता है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।
केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने जनहित याचिका का विरोध करते हुए कहा कि ये ऐसे प्रश्न हैं जिन्हें प्रभावित पक्षों की ओर से उठाया जाना चाहिए और याचिकाकर्ता द्वारा इन पर आपत्ति नहीं की जा सकती।
नटराज ने कहा कि यह प्रावधान 1956 से है और संसद ने ऐसी स्थिति पर विचार नहीं किया होगा कि एक हिंदू महिला के पास स्व-अर्जित संपत्ति होगी।
शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि यदि किसी हिंदू महिला की मृत्यु बिना वसीयत के हो जाती है और उसके माता-पिता या उनके उत्तराधिकारी उसकी संपत्ति पर दावा करते हैं, तो पक्षकारों को अदालत में कोई भी मामला दायर करने से पहले मुकदमे-पूर्व की मध्यस्थता से गुजरना होगा।
पीठ ने कहा कि मध्यस्थता से निकले समाधान को अदालत का आदेश माना जाना चाहिए।
शीर्ष अदालत ने पहले टिप्पणी की थी कि वह हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधानों को चुनौती देने वाले मामलों की सुनवाई करते समय सावधानी बरतेगी और वह हिंदू सामाजिक ढांचे तथा हजारों वर्षों से अस्तित्व में रहे इसके मूल सिद्धांतों को नुकसान पहुंचाने के प्रति सतर्क रहेगी।
शीर्ष अदालत ने कहा था कि यद्यपि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन ‘‘सामाजिक संरचना और महिलाओं को अधिकार देने के बीच संतुलन’’ होना चाहिए।
भाषा धीरज