न्यायपालिका की आलोचना से आपत्ति नहीं, लेकिन व्यापक आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए: न्यायालय
सुभाष धीरज
- 19 Nov 2025, 09:46 PM
- Updated: 09:46 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को कहा कि उसे न्यायपालिका की आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन किसी भी तरह के व्यापक आरोप नहीं लगाए जाने चाहिए।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सामाजिक कार्यकर्ता प्रदीप शर्मा को आगाह किया, जिन्होंने पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर कुछ आरोप लगाए हैं।
पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वकील से कहा, ‘‘आपने कई अच्छे मुद्दे उठाए हैं, लेकिन आप किसी पर भी व्यापक आरोप नहीं लगा सकते। हमें न्यायपालिका की आलोचना से कोई आपत्ति नहीं है, लेकिन यह उचित तरीके से होनी चाहिए।’’
वकील ने पीठ को बताया कि उच्च न्यायालय ने शर्मा द्वारा बिना शर्त माफी मांगने पर अवमानना का आरोप हटाते हुए, पौधारोपण का निर्देश दिया है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने टिप्पणी की कि चंडीगढ़ को हरियाली की सख्त जरूरत है और यह अच्छी बात है कि उच्च न्यायालय ने ऐसा आदेश दिया।
आदेश में कहा गया, ‘‘याचिकाकर्ता के वकील ने सूचित किया है कि 15 सितंबर 2025 के आदेश का सम्मान करते हुए, याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष बिना शर्त माफ़ी और एक शपथपत्र प्रस्तुत किया था। उदारता का परिचय देते हुए, उच्च न्यायालय ने बिना शर्त माफी स्वीकार कर ली और याचिकाकर्ता को अवमानना की कार्यवाही से मुक्त कर दिया है।’’
शीर्ष अदालत ने उस याचिका का निस्तारण कर दिया, जिसमें शर्मा ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी थी।
पंद्रह सितंबर को, शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ अधिवक्ता देवदत्त कामत की इस दलील पर गौर किया कि शर्मा को अपने परिवार के सदस्यों द्वारा उच्च न्यायालय के समक्ष हलफनामे के माध्यम से दिये गए वचन का उल्लंघन करते हुए, 2023 से 2025 के बीच ईमेल भेजने की अपनी गलती का सचमुच में पछतावा है।
पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 29 मई 2023 के अपने आदेश में इस वचन को विधिवत रूप से पुनः प्रस्तुत किया था।
कामत ने दलील दी थी कि याचिकाकर्ता उच्च न्यायालय के साथ-साथ इस न्यायालय में भी हलफनामे के माध्यम से बिना शर्त माफ़ी मांगने के लिए तैयार और इच्छुक है।
पीठ ने कहा, ‘‘हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि कोई भी ईमेल सार्वजनिक नहीं किया गया था, फिर भी याचिकाकर्ता एक वचन देना चाहता है कि वह भविष्य में ऐसा नहीं करेगा।’’
भाषा सुभाष