अस्सी प्रतिशत से अधिक दिव्यांग जनों के पास स्वास्थ्य बीमा नहीं है: एनजीओ श्वेत पत्र
राखी माधव
- 20 Nov 2025, 05:20 PM
- Updated: 05:20 PM
नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) भारत में 80 प्रतिशत से अधिक दिव्यांगजन बीमा दायरे से बाहर हैं। बृहस्पतिवार को जारी एक श्वेत पत्र में यह जानकारी दी गयी।
श्वेत पत्र के अनुसार, कानूनी संरक्षणों के बावजूद बीमा के लिए आवेदन करने वाले आधे से अधिक व्यक्तियों के आवेदन बिना किसी स्पष्टीकरण के ही खारिज कर दिए जाते है।
नेशनल सेंटर फॉर प्रमोशन ऑफ एम्प्लॉयमेंट फॉर डिसेबल्ड पीपल (एनसीपीईडीपी) द्वारा जारी “सभी के लिए समावेशी स्वास्थ्य कवरेज : भारत में स्वास्थ्य बीमा एवं भेदभाव” रिपोर्ट को बृहस्पतिवार को एक गोलमेज बैठक में पेश किया गया। इस बैठक में नीति निर्माताओं, बीमा क्षेत्र के प्रतिनिधियों और दिव्यांग अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।
देशभर के 34 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में 5,000 से अधिक नमूनों के साथ दिव्यांगजनों पर किए गए सर्वेक्षण के आधार पर, अध्ययन में आगाह किया गया है कि “गहरी प्रणालीगत असमानताएं” अब भी लगभग 16 करोड़ दिव्यांग भारतीयों को सार्वजनिक और निजी दोनों, बीमा योजनाओं से बाहर रखती हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, 80 प्रतिशत उत्तरदाताओं के पास कोई स्वास्थ्य बीमा नहीं था, जबकि बीमा के लिए आवेदन करने वालों में से 53 प्रतिशत ने बताया कि उनके आवेदन खारिज कर दिए गए।
उत्तर देने वाले कई लोगों ने बताया कि उन्हें केवल उनकी दिव्यांगता के कारण बीमा देने से इनकार कर दिया गया। ऑटिज़्म, मनोसामाजिक एवं बौद्धिक दिव्यांगता और थैलेसीमिया जैसे रक्त विकारों वाले व्यक्तियों के बीमा के लिए आवेदन अस्वीकृति की दर विशेष रूप से अधिक पाई गई।
रिपोर्ट में कहा गया कि संविधान में दिए गए प्रावधानों, दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016 और भारतीय बीमा विनियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीएआई) के बार-बार जारी निर्देशों के बावजूद यह स्थिति बनी हुई है।
शोधकर्ताओं ने महंगे प्रीमियम, डिजिटल मंच की पहुंच में कठिनाई और उपलब्ध योजनाओं के प्रति व्यापक जागरूकता की कमी को कवरेज के प्रमुख अवरोधों के रूप में रेखांकित किया।
रिपोर्ट के जारी होने के दौरान सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव मनमीत नंदा ने कहा कि सरकार सहायक प्रौद्योगिकी को सशक्त बनाने और विभिन्न मंत्रालयों के बीच समन्वय को बेहतर करने पर काम कर रही है।
उन्होंने कहा कि “आईआरडीएआई की भूमिका को स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय तथा दिव्यांगजन सशक्तिकरण विभाग के साथ मजबूत रूप से जोड़ने और समन्वित करने की आवश्यकता है, क्योंकि यह किसी एक मंत्रालय का काम नहीं है।”
नंदा ने यह भी कहा कि बीमा कंपनियों को वार्षिक दिव्यांगजन कवरेज लक्ष्य पूरा करने के लिए बाध्य किया जा सकता है, जिसकी निगरानी डिजिटल डैशबोर्ड के माध्यम से की जाए।
उन्होंने यह भी प्रस्ताव दिया कि 'यूनिक डिसेबिलिटी आईडी' (यूडीआईडी) डेटाबेस को बीमा प्रक्रियाओं से जोड़ा जाए, ताकि अस्वीकृतियों पर नजर रखी जा सके और प्रक्रिया को सरल बनाया जा सके।
रिपोर्ट के निष्कर्षों को “नैतिक और संवैधानिक चुनौती” बताते हुए, एनसीपीईडीपी के कार्यकारी निदेशक अरमान अली ने कहा कि किफायती बीमा से लगातार दूर रखा जाना “केवल तंत्रगत विफलता नहीं, बल्कि अधिकारों का उल्लंघन है।”
अली ने कहा, “जब सरकार आयुष्मान भारत (पीएम-जेएवाई) का विस्तार कर 70 वर्ष से ऊपर के सभी वरिष्ठ नागरिकों को इसमें सम्मेलित कर रही है, तो दिव्यांगजन अब भी इससे बाहर हैं।”
श्वेत पत्र ने आयुष्मान भारत के तहत सभी दिव्यांग व्यक्तियों को तुरंत शामिल करने की सिफारिश की है, जिसमें आयु और आय मानदंड लागू न हों और यह सरकार द्वारा वरिष्ठ नागरिकों के लिए किए गए 2024 के विस्तार के अनुरूप हो।
अन्य प्रमुख सुझावों में मानसिक स्वास्थ्य, पुनर्वास और सहायक तकनीकों के लिए बढ़ी हुई बीमा कवरेज, आईआरडीएआई में एक दिव्यांगजन समावेशन समिति का गठन, निजी बीमाकर्ताओं में समान और गैर-भेदभावपूर्ण प्रीमियम मानक तथा सभी बीमा प्रक्रियाओं में अनिवार्य पहुंच-योग्यता शामिल हैं।
रिपोर्ट ने बीमाकर्ताओं और स्वास्थ्यकर्मियों के लिए जागरूकता कार्यक्रमों के विस्तार का भी आग्रह किया।
भाषा
राखी