ग्यारह दिनों तक ईरान में फंसे रहने के बाद बंगाल के पर्वतारोही आखिरकार अपने घर पहुंचे
राजकुमार अविनाश
- 24 Jun 2025, 07:06 PM
- Updated: 07:06 PM
(सौगात मुखोपाध्याय)
कोलकाता, 24 जून (भाषा) एअर इंडिया का एक विमान सोमवार सुबह करीब आठ बजे जब दिल्ली से कोलकाता पहुंचा तो एक यात्री अपनी भावनाओं पर काबू नहीं पा रहा था।
कोलकाता के शौकिया पर्वतारोही और भूगोल के प्रोफेसर 40 वर्षीय फल्गुनी डे को ईरान के संघर्ष-प्रभावित क्षेत्रों से भागने के लिए 11 दिनों की अनिश्चितता एवं बदहवासी का सामना करना पड़ा। उन्हें अपनी पत्नी और ढाई साल की बेटी के पास लौटने के लिए युद्ध-ग्रस्त ईरान की सीमा पार करने के वास्ते लगभग 3,000 किलोमीटर की सड़क यात्रा करनी पड़ी।
राहत और खुशी से अभिभूत डे ने भारत सरकार के प्रति आभार जताया और कहा कि उन्हें खुशी है कि ईरान में उनके बुरे सपने का आखिरकार अंत हो गया।
भारत सरकार ने पश्चिम एशिया के संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों से अब तक जिन 2,295 नागरिकों को ‘ऑपरेशन सिंधु’ के तहत निकाला है उनमें डे भी शामिल हैं।
ईरान में भारतीय दूतावास के प्रयासों की बदौलत डे उन 292 भारतीय यात्रियों में शामिल थे, जिन्हें निजी स्वामित्व वाली ईरानी एयरलाइन ‘महान एयर’ की विशेष उड़ान में बिठाया गया। यह विमान सोमवार को स्थानीय समयानुसार रात करीब 11 बजे मशहद अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से उड़ा और मंगलवार को भारतीय समयानुसार सुबह करीब चार बजे दिल्ली पहुंचा।
डे फिर दिल्ली से कोलकाता के लिए एअर इंडिया की उड़ान में सवार हुए।
डे ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘ चूंकि उड़ान संचालक एयरलाइन ईरानी थी, इसलिए हम पाकिस्तानी हवाई क्षेत्र से गुजर पाये, जो वर्तमान में भारतीय एयरलाइनों के लिए बंद है। और केवल तीन घंटे में हम दिल्ली पहुंच गये।’’
डे 16 जून से पड़ोसी देशों में जाने की उम्मीद में ईरान की एक सीमा चौकी से दूसरी सीमा चौकी तक चक्कर काट रहे थे, जब उन्होंने सड़क मार्ग से तेहरान से भागने का प्रयास किया था लेकिन एक के बाद एक देशों द्वारा उनके आवेदनों को खारिज कर दिया गया।
‘पीटीआई-भाषा’ तब से डे की परेशानियों पर बारीकी से नज़र रख रही थी और खबर दे रही थी, जब वह 11 जून को तेहरान लौटे थे। उससे पहले शहर के उत्तरपूर्वी हिस्से में ’माउंट दमावंद’ की ज्वालामुखी चोटी पर चढ़ने का उनका प्रयास विफल हो गया था।
उन्हें 13 जून को ईरान से उड़ान भरनी थी, लेकिन इजराइल-ईरान युद्ध के मद्देनजर तेहरान हवाई अड्डे को बंद कर दिये जाने के कारण वह फंस गये थे।
‘पीटीआई-भाषा’ ने यह भी बताया था कि इजराइली बमबारी के बाद तेहरान से भागने की कोशिश में कैसे डे 500 किलोमीटर की दुर्गम यात्रा कर 17 जून को ईरान के आस्तारा बार्डर पहुंचे लेकिन अजरबैजान ने विशेष आव्रजन ‘कोड’ के अभाव में उन्हें अपने यहां आने नहीं दिया।
डे ने बताया, ‘‘मैंने अस्तारा में अंतरराष्ट्रीय सीमा क्रॉसिंग टर्मिनल पर यात्रियों से संबंधित लॉबी में पांच रातें बिताईं, क्योंकि मेरे पास होटल में ठहरने के लिए पैसे नहीं थे। मैंने वहां सड़क किनारे खाने-पीने की दुकानों पर खाना खाया।’’
डे ने कहा, ‘‘अजरबैजान जाने की अनुमति नहीं मिलने के बाद, मैंने आर्मेनिया के लिए वीज़ा आवेदन किया, जहां से मैं वापस घर के लिए उड़ान भर सकता था। लेकिन उन्होंने (आर्मेनियाई अधिकारियों ने) भी मेरा आवेदन अस्वीकार कर दिया। मैं 21 जून को सड़क मार्ग से आर्मेनिया सीमा तक 600 किलोमीटर की यात्रा की योजना बना चुका था, लेकिन मुझे एहसास हुआ कि इससे कोई फायदा नहीं है। इसलिए मैंने वहीं टैक्सी ली और ईरानी शहर मशहद के लिए 20 घंटे तक 1,600 किलोमीटर की निरंतर यात्रा पर चल पड़ा। वहां भारतीय अधिकारी अपने नागरिकों के लिए निकासी की व्यवस्था कर रहे थे।’’
लेकिन दुःस्वप्न अभी खत्म नहीं हुआ था। डे को ईरानी पुलिस ने मशहद से करीब 75 किलोमीटर आगे नेशाबुर में रोक लिया, उनकी गहन तलाशी ली और दो घंटे से अधिक समय तक उनसे पूछताछ की।
डे ने कहा, ‘‘उन्होंने मेरे सामान की हर वस्तु की तलाशी ली, मेरी डायरी की प्रविष्टियों को देखने के लिए अनुवादकों को बुलाया और यह सुनिश्चित करने के लिए कि मैं कोई विदेशी जासूस तो नहीं हूं, मेरे मोबाइल फोन के ऐप्स भी चेक किए। मैं आधी रात के बाद मशहद में अपने होटल पहुंचा।’’
भारतीय दूतावास ने उन्हें मशहद में दो दिन ठहराया और फिर उनके स्वदेश लौटने की व्यवस्था की।
भाषा
राजकुमार