न्यायालय ने विधेयकों पर निर्णय के लिए समयसीमा को लेकर राष्ट्रपति के संदर्भ पर सुनवाई का समय तय किया
गोला मनीषा
- 29 Jul 2025, 11:43 AM
- Updated: 11:43 AM
नयी दिल्ली, 29 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रपति द्वारा भेजे गए उस संदर्भ पर सुनवाई के लिए मंगलवार को समय तय किया, जिसमें यह सवाल उठाया गया है कि क्या विधानसभा से पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति द्वारा निर्णय लेने के लिए कोई समयसीमा निर्धारित की जा सकती है। न्यायालय ने इस पर 19 अगस्त से सुनवाई शुरू करने का प्रस्ताव रखा।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय पीठ ने केंद्र और राज्यों को 12 अगस्त तक अपनी लिखित दलीलें दाखिल करने का निर्देश दिया।
पीठ ने पक्षकारों से निर्धारित समय का सख्ती से पालन करने को कहा। पीठ ने कहा कि वह सबसे पहले 19 अगस्त को एक घंटे के लिए केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों द्वारा राष्ट्रपति संदर्भ की स्वीकार्यता पर सवाल उठाने वाली प्रारंभिक आपत्तियों पर सुनवाई करेगी।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा और न्यायमूर्ति ए एस चंदुरकर भी शामिल हैं।
न्यायालय ने कहा कि राष्ट्रपति के संदर्भ का समर्थन करने वाले केंद्र और राज्यों की दलीलें 19, 20, 21 और 26 अगस्त को सुनी जाएंगी, जबकि इसका विरोध करने वालों की दलीलें 28 अगस्त और दो, तीन और नौ सितंबर को सुनी जाएंगी।
उसने कहा कि यदि कोई प्रत्युत्तर होगा तो उस पर 10 सितंबर को सुनवाई की जाएगी।
उच्चतम न्यायालय ने 22 जुलाई को कहा था कि राष्ट्रपति के संदर्भ में जो मुद्दा उठाया गया है वह ‘‘पूरे देश पर प्रभाव’’ डालने वाला है।
मई में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अनुच्छेद 143(1) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए शीर्ष अदालत से यह जानना चाहा था कि क्या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर विचार करते समय राष्ट्रपति द्वारा विवेकाधिकार का प्रयोग करने के लिए न्यायिक आदेशों द्वारा समयसीमा निर्धारित की जा सकती है।
संविधान का अनुच्छेद 143 (1) राष्ट्रपति की उच्चतम न्यायालय से परामर्श करने की शक्ति से संबंधित है।
राष्ट्रपति का यह निर्णय आठ अप्रैल को उच्चतम न्यायालय के उस फैसले के संदर्भ में आया है जिसमें न्यायालय ने तमिलनाडु सरकार द्वारा पारित विधेयकों पर राज्यपाल की शक्तियों को लेकर उठाए गए सवाल पर निर्णय दिया था।
उच्चतम न्यायालय ने पहली बार यह निर्धारित किया कि राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति के विचारार्थ रखे गए विधेयकों पर ऐसा संदर्भ प्राप्त होने की तिथि से तीन महीने के भीतर निर्णय लिया जाना चाहिए।
पांच पृष्ठों के संदर्भ में राष्ट्रपति मुर्मू ने उच्चतम न्यायालय से प्रश्न पूछे और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर निर्णय लेने में अनुच्छेद 200 और 201 के तहत राज्यपालों एवं राष्ट्रपति की शक्तियों के संबंध में उसकी राय जानने का प्रयास किया।
फैसले में सभी राज्यपालों के लिए राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा तय की गई है और कहा गया है कि राज्यपालों को संविधान के अनुच्छेद 200 के तहत अपने समक्ष प्रस्तुत किसी भी विधेयक के संबंध में अपने विवेकाधिकार से कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं है और उन्हें मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह का अनिवार्य रूप से पालन करना होगा।
इसमें कहा गया है कि अगर राष्ट्रपति राज्यपाल द्वारा विचार के लिए भेजे गए किसी विधेयक पर अपनी सहमति नहीं देते हैं, तो राज्य सरकारें सीधे उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटा सकती हैं।
भाषा गोला