मेधा पाटकर मानहानि मामले में डिजिटल तरीके से पेश होने के लिए सत्र अदालत जाएं: उच्च न्यायालय
नेत्रपाल मनीषा
- 07 Apr 2025, 04:04 PM
- Updated: 04:04 PM
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को सामाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर से कहा कि वह दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना की मानहानि से जुड़े मामले में सजा सुनाए जाने के सिलसिले में डिजिटल तरीके से पेश होने की अनुमति लेने के लिए सत्र अदालत का रुख करें।
सक्सेना ने 23 साल पहले यह मामला दायर किया था जब वह गुजरात में एक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) के प्रमुख थे।
न्यायमूर्ति शालिंदर कौर ने कहा कि याचिका समय पूर्व दायर की गई है और पाटकर डिजिटल तरीके से पेश होने के लिए सत्र अदालत में आवेदन दाखिल कर सकती हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘वकील सत्र अदालत के समक्ष उचित आवेदन पेश करने के लिए स्वतंत्र हैं, जिस पर विचार किया जाएगा।’’
इसने दोषसिद्धि के खिलाफ पाटकर की याचिका पर 19 मई की तारीख निर्धारित की।
नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) की 70 वर्षीय नेता ने सत्र अदालत के दो अप्रैल के फैसले को चुनौती दी है, जिसमें दोषसिद्धि के मजिस्ट्रेट अदालत के निर्णय को बरकरार रखा गया था।
पाटकर ने 8 अप्रैल को दलीलों और सजा के आदेश के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने का निर्देश दिए जाने के खिलाफ भी याचिका दायर की।
मजिस्ट्रेट अदालत ने 1 जुलाई 2024 को उन्हें भारतीय दंड संहिता की धारा 500 (मानहानि) के तहत दोषी पाते हुए पांच महीने के साधारण कारावास की सजा सुनाई थी और 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था।
पाटकर के वकील ने उच्च न्यायालय में दलील दी कि मजिस्ट्रेट अदालत के फैसले के खिलाफ उनकी अपील खारिज होने के बाद सत्र अदालत को मामले में सजा पर आदेश पारित करने और उनकी व्यक्तिगत उपस्थिति के निर्देश का कोई अधिकार नहीं है।
सक्सेना ने पाटकर के खिलाफ मामला तब दर्ज कराया था जब वह ‘नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज’ के अध्यक्ष थे। यह मामला सक्सेना के खिलाफ 24 नवंबर 2000 को एक ‘‘मानहानिकारक प्रेस विज्ञप्ति’’ जारी किए जाने से जुड़ा है।
पिछले साल 24 मई को मजिस्ट्रेट अदालत ने माना था कि पाटकर द्वारा सक्सेना को ‘‘कायर’’ कहा जाना और हवाला लेनदेन में उनकी संलिप्तता का आरोप लगाया जाना न केवल मानहानिकारक था, बल्कि उनके बारे में नकारात्मक धारणा पैदा करने पर केंद्रित था।
इसने कहा था कि यह आरोप कि शिकायतकर्ता द्वारा गुजरात के लोगों और उनके संसाधनों को विदेशी हितों के लिए ‘‘गिरवी’’ रखा जा रहा है, उनकी ईमानदारी और सेवा पर सीधा हमला था।
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश विशाल सिंह ने दो अप्रैल को मानहानि मामले में पाटकर की दोषसिद्धि को बरकरार रखा था।
भाषा नेत्रपाल