वक्फ समिति ने सत्तारूढ़ गठबंधन के संशोधनों को स्वीकार किया, विपक्ष के सारे संशोधन खारिज
ब्रजेन्द्र माधव वैभव
- 27 Jan 2025, 09:48 PM
- Updated: 09:48 PM
नयी दिल्ली, 27 जनवरी (भाषा) वक्फ (संशोधन) विधेयक पर विचार विमर्श के लिए गठित संसद की संयुक्त समिति द्वारा यह प्रस्ताव किए जाने की संभावना है कि मौजूदा ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ संपत्ति, विवाद में नहीं होने या सरकारी सुविधा के अंतर्गत आने की स्थिति में बनी रहेगी लेकिन नए कानून के प्रभावी होने से पहले उन्हें पंजीकृत होना चाहिए।
इससे, वक्फ निकायों को उनके असत्यापित दावों में थोड़ी राहत मिल सकती है।
समिति ने सोमवार को हुई एक बैठक में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी संशोधनों को स्वीकार कर लिया और विपक्षी सदस्यों के संशोधनों को खारिज कर दिया।
सूत्रों ने बताया कि समिति में शामिल विपक्षी सदस्यों ने वक्फ (संशोधन) विधेयक के सभी 44 प्रावधानों में संशोधन का प्रस्ताव रखा था और उन्होंने दावा किया कि समिति की ओर से प्रस्तावित कानून विधेयक के ‘दमनकारी’ चरित्र को बरकरार रखेगा और मुस्लिमों के धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास करेगा।
हालांकि स्वीकृत संशोधन विधेयक की आलोचना करने वाले मुस्लिम निकायों को कुछ राहत देते हैं, जिसमें विधवाओं और अनाथों सहित अन्य के लिए कल्याणकारी उपायों पर निर्णय लेने का अधिकार वक्फ बोर्डों पर छोड़ना शामिल है। लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया गया है। वक्फ विधेयक के आलोचक इस पर आपत्ति जता सकते हैं।
भाजपा सांसद जगदंबिका पाल की अध्यक्षता वाली संयुक्त समिति की बैठक में विपक्षी सदस्यों ने एक बार फिर जोरदार विरोध किया और पाल पर लोकतांत्रिक प्रक्रिया को ‘चोट’ पहुंचाने का आरोप लगाया।
सूत्रों ने बताया कि समिति बुधवार को रिपोर्ट स्वीकार करेगी, जिसमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और एआईएमआईएम जैसे विपक्षी दलों के सदस्य अपनी असहमति जता सकते हैं।
उन्होंने कहा कि संसद का बजट सत्र 31 जनवरी से शुरू होने जा रहा है और सत्तारूढ़ भाजपा नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सत्र के पहले चरण में विधेयक पारित करा सकता है क्योंकि उसके पास लोकसभा और राज्यसभा दोनों में बहुमत है।
संशोधनों में से एक संशोधन यह है कि वक्फ बोर्ड में अब दो के बजाय चार गैर-मुस्लिम सदस्य भी हो सकते हैं। इस पर मुस्लिम समूहों और विपक्षी दलों की ओर से और आपत्ति की जा सकती है।
सूत्रों ने बताया कि समिति द्वारा पारित संशोधनों में से एक में कहा गया है, 'इस उपधारा के तहत नियुक्त बोर्ड के कुल सदस्यों (पदेन सदस्यों को छोड़कर) में से दो गैर मुस्लिम होने चाहिए'।
"पदेन सदस्यों को छोड़कर" का उल्लेख विधेयक में नहीं था।
द्रमुक के ए राजा ने आरोप लगाया कि समिति की कार्यवाही को ‘मजाक’ बना दिया गया है और ‘रिपोर्ट इस समय तक तैयार की जा चुकी है’।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर इसे संसद की मंजूरी मिल जाती है तो द्रमुक और खुद मेरी तरफ से, उच्चतम न्यायालय से नए कानून को निरस्त कराने के लिए अनुरोध किया जाएगा।’’
पाल ने हालांकि आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि समिति ने सभी संशोधनों पर लोकतांत्रिक तरीके से विचार किया।
उन्होंने कहा कि बहुमत का दृष्टिकोण भारी पड़ा। उन्होंने कहा कि स्वीकृत संशोधन प्रस्तावित कानून को बेहतर और अधिक प्रभावी बनाएंगे।
उन्होंने कहा कि सरकार समिति द्वारा किए गए बदलावों को स्वीकार करने के लिए बाध्य है।
सूत्रों ने बताया कि भाजपा और उसके सहयोगियों द्वारा समर्थित और समिति द्वारा पारित किए गए अन्य संशोधनों में सरकारी संपत्ति के विवाद का सर्वेक्षण संबंधित जिला कलेक्टर से कराए जाने के अधिकार को समाप्त करने का निर्णय शामिल है। इस संशोधन के समर्थन में भाजपा और उसके सहयोगियों के 16 मत पड़े जबकि विरोध में विपक्ष के 10 सदस्य रहे।
भाजपा सांसद बृजलाल द्वारा प्रस्तावित और स्वीकृत किए गए संशोधन में कहा गया है कि राज्य सरकार कानून के मुताबिक जांच करने के लिए कलेक्टर रैंक से ऊपर के किसी अधिकारी को अधिसूचना के जरिए नामित कर सकती है।
कई मुस्लिम निकायों ने कलेक्टर को दिए गए अधिकार पर आपत्ति जताई थी। उन्होंने तर्क दिया था कि कलेक्टर राजस्व रिकॉर्ड के प्रमुख भी होते हैं, इसलिए उनके द्वारा कोई भी जांच निष्पक्ष नहीं हो सकती क्योंकि वह अपने कार्यालय के दावे के अनुसार चलेंगे।
विधेयक ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ की अवधारणा को हटा देता है, जहां संपत्तियों को केवल धार्मिक उद्देश्यों के लिए उनके दीर्घकालिक उपयोग के आधार पर वक्फ माना जा सकता था। भाजपा सांसद निशिकांत दुबे द्वारा प्रस्तुत और समिति द्वारा स्वीकृत एक संशोधन में ऐसी मौजूदा सुविधाओं के लिए कुछ छूट दी गई है।
इसमें कहा गया है कि ‘उपयोगकर्ता द्वारा वक्फ’ संपत्ति के रूप में बनी रहेगी, सिवाय इसके कि जब ये विवादित हों या सरकारी सुविधा के अंतर्गत हों।
निशिकांत दुबे ने बाद में ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा,‘‘गरीब मुसलमान को हक दिलाने तथा कांग्रेस पार्टी की वोट बैंक की राजनीति के कारण हिन्दू समाज को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साज़िश को बेनक़ाब कर आज संसद की संयुक्त समिति ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक पारित किया। अब यह क़ानून बनेगा।’’
सूत्रों ने कहा कि हालांकि संशोधन में यह स्पष्ट किया गया है कि ऐसी मौजूदा संपत्तियों का नया कानून लागू होने से पहले पंजीकरण होना जरूरी है।
विधेयक में कहा गया है कि केवल कम से कम पांच साल तक इस्लाम का पालन करने वाला व्यक्ति वक्फ घोषित कर सकता है, जो इस्लामी कानून के तहत धार्मिक या धर्मार्थ उद्देश्यों के लिए विशेष रूप से समर्पित संपत्तियों को संदर्भित करता है।
समिति द्वारा पारित एक संशोधन में कहा गया है कि ऐसे व्यक्ति को यह दिखाना या प्रदर्शित करना चाहिए कि वह पांच साल से धर्म का पालन कर रहा है।
विधेयक में मौजूदा कानून के तहत पंजीकृत प्रत्येक वक्फ के लिए प्रस्तावित कानून के लागू होने से छह महीने की अवधि के भीतर अपनी वेबसाइट पर संपत्ति का विवरण घोषित करना अनिवार्य बना दिया गया है।
सूत्रों ने बताया कि एक और स्वीकृत संशोधन अब ‘मुतवल्ली’ (केयरटेकर) को अवधि बढ़ाने का अधिकार देगा, बशर्ते राज्य में वक्फ ट्रिब्यूनल संतुष्ट हो।
सूत्रों ने बताया कि भाजपा सांसद संजय जायसवाल द्वारा प्रस्तावित और समिति द्वारा स्वीकृत संशोधन में मुस्लिम कानून और न्यायशास्त्र की जानकारी रखने वाले एक व्यक्ति को ऐसे न्यायाधिकरणों के सदस्य के रूप में शामिल करने की बात कही गई है।
पाल पर निशाना साधते हुए तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने दावा किया, ‘‘सब कुछ पहले से तय था। हमें कुछ भी कहने की अनुमति नहीं थी। किसी भी नियम और प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया। हम संशोधनों पर खंडवार चर्चा करना चाहते थे लेकिन हमें इसकी अनुमति नहीं दी गई। अध्यक्ष ने संशोधन पेश किए और फिर हमारी बातों को सुने बिना उन्हें घोषित कर दिया। यह लोकतंत्र के लिए बुरा दिन है।’’
कुल मिलाकर, समिति के सदस्यों द्वारा सैकड़ों संशोधन प्रस्तावित किए गए थे। समिति द्वारा विचार के लिए लिए जाने से पहले संशोधनों को समेकित किया गया और उन्हें संदर्भित खंडों से जोड़ा गया।
भाषा ब्रजेन्द्र माधव