ओएनओएस उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाएगा: कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस
संतोष पारुल
- 23 Feb 2025, 05:09 PM
- Updated: 05:09 PM
(गुजन शर्मा)
नयी दिल्ली, 23 फरवरी (भाषा) भारत की ‘वन नेशन, वन सब्सक्रिप्शन’ (ओएनओएस) पहल उस उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षिक सामग्री तक पहुंच को लोकतांत्रिक बनाएगी, जिसका वहन पहले केवल धनी संस्थान ही कर सकते थे। कैंब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस (सीयूपी) के अकादमिक प्रकाशन की प्रबंध निदेशक मैंडी हिल ने यह बात कही।
‘पीटीआई-भाषा’ को दिए साक्षात्कार में हिल ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय शिक्षा जगत की क्षमता का विस्तार करना केवल पहुंच के बारे में नहीं है, बल्कि शोधकर्ताओं को वैश्विक ज्ञान अर्थव्यवस्था में सार्थक योगदान देने के लिए सशक्त बनाने के बारे में है।
हिल हाल ही में भारत में इस बात पर चर्चा करने के लिए आई थीं कि कैसे सीयूपी ओएनओएस से जुड़ी सरकार की महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने में सहायता कर सकता है और आगे की योजना बना सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘नयी शिक्षा नीति (एनईपी) के कई घटक हैं। हालांकि, ओएनओएस हमारे पत्रिका प्रकाशन व्यवसाय के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। यह पहल सुनिश्चित करती है कि भारत भर के शोधकर्ताओं को, चाहे वे किसी भी संस्थान में हों, उच्च गुणवत्ता वाली शैक्षणिक सामग्री तक समान पहुंच मिले।’’
हिल ने कहा, ‘‘पहले केवल अमीर संस्थान ही व्यापक सदस्यता ले सकते थे, जबकि अन्य के पास सीमित या कोई पहुंच नहीं थी। ‘ओएनओएस’ इस पहुंच को लोकतांत्रिक बनाता है। यह भारतीय शिक्षाविदों को सक्षम बनाता है कि वे अपने शोध ‘आउटपुट’ की गुणवत्ता और मात्रा दोनों में सुधार कर सकें।’’
केंद्र ने दिसंबर में ‘एक राष्ट्र, एक सदस्यता’ पहल शुरू की थी, जिसके तहत पहले चरण में शोधकर्ताओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग, चिकित्सा, गणित, प्रबंधन, सामाजिक विज्ञान और मानविकी विषय से जुड़ी 3,400 अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाएं उपलब्ध कराई जाएंगी।
‘ओएनओएस’ का समन्वय ‘सूचना एवं पुस्तकालय नेटवर्क’ (आईएनएफएलआईबीएनयीटी) करेगा, जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) का एक स्वायत्त अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र है।
हिल ने जोर देकर कहा कि कैंब्रिज का ध्यान अकादमिक प्रकाशन पर है, विशेष रूप से शोध पत्रिकाओं पर जो छात्रों के बजाय शोधकर्ताओं पर केंद्रित हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘हमारा पत्रिका (जर्नल) कार्यक्रम एनईपी के लक्ष्यों के साथ अच्छी तरह से संरेखित है, विशेष रूप से शोधकर्ताओं को उच्च-गुणवत्ता वाली जानकारी तक पहुंच प्रदान करने में। ओएनओएस से पहले, केंद्रीय विश्वविद्यालयों के पास अक्सर अपनी डिजिटल लाइब्रेरी होती थी, जो अलग-अलग स्तर की पहुंच प्रदान करती थी।’’
हिल ने कहा, ‘‘कुछ संस्थानों ने हमारे पूरे कार्यक्रम की सदस्यता ली, अन्य ने चुनिंदा शीर्षकों की, और कुछ के पास बिल्कुल भी पहुंच नहीं थी। ओएनओएस सार्वजनिक संस्थानों को समान पहुंच सुनिश्चित करता है, जो एक परिवर्तनकारी कदम है।’’
भावी योजनाओं के बारे में पूछे जाने पर हिल ने कहा कि ‘ओएनओएस’ सर्वव्यापी पहुंच प्रदान करता है, लेकिन भारतीय शोधकर्ताओं को उच्च गुणवत्ता वाली पत्रिकाओं में अधिक प्रकाशन करने में मदद करना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।
उन्होंने कहा, ‘‘फिलहाल हमें भारत से बड़ी संख्या में प्रविष्टियां प्राप्त होती हैं, लेकिन स्वीकृति दर कम बनी हुई है। इस समस्या से निपटने के लिए, हमारा लक्ष्य लेखक कार्यशालाओं, स्पष्ट मार्गदर्शन और खुली चर्चाओं के माध्यम से प्रकाशन मानकों में सुधार के बारे में शिक्षाविदों का समर्थन करना है।’’
हिल ने कहा कि गुणवत्ता हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता बनी हुई है और हम भारतीय शोधकर्ताओं की मदद करना चाहते हैं, ताकि वे उन मानदंडों को हासिल कर सकें।
भाषा संतोष