दलितों पर व्यंगात्मक नाटक : कर्नाटक उच्च न्यायालय ने छात्रों के खिलाफ प्राथमिकी रद्द की
धीरज दिलीप
- 03 Mar 2025, 09:44 PM
- Updated: 09:44 PM
बेंगलुरु, तीन मार्च (भाषा)कर्नाटक उच्च न्यायालय ने दलितों को लेकर व्यंग्यात्मक नाटक की वजह से बेंगलुरु स्थित एक महाविद्यालय के सात छात्रों के खिलाफ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम के तहत दर्ज आपराधिक मामले को रद्द कर दिया।
अदालत ने कहा कि छात्रों का नाटक व्यंग्यात्मक था और उसमें अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदाय के सदस्यों को सार्वजनिक रूप से अपमानित करने की मंशा नहीं थी।
अदालत ने अपने हालिया आदेश में कहा कि प्राथमिकी एससी/एसटी समुदाय के किसी सदस्य द्वारा दर्ज नहीं कराई गई थी और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि छात्रों ने जानबूझकर दलित समुदाय के सदस्यों को अपमानित या धमकाने की कोशिश की थी।
न्यायमूर्ति एस आर कृष्ण कुमार ने कहा कि महाविद्यालय उत्सव के दौरान प्रस्तुत किया गया नाटक ‘‘व्यंग्य/मनोरंजन’’ के अंतर्गत आता है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत संरक्षित है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है।
उच्च न्यायालय ने उच्चतम न्यायालय के कई निर्णयों का हवाला देते हुए कहा कि मामले को जारी रखने की अनुमति देना ‘‘कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग’’ होगा।
मामला फरवरी 2023 का है, तब कर्नाटक उच्च न्यायालय ने जैन विश्वविद्यालय के प्रबंधन अध्ययन केंद्र के छात्रों के खिलाफ जांच पर रोक लगा दी थी।
पुलिस द्वारा दर्ज प्राथमिकी में 20 से 21 वर्ष की आयु के छात्रों के साथ-साथ दो संकाय सदस्यों, निदेशक नीलकांत बोरकर और सहायक प्रोफेसर प्रवीण थोकदार को भी नामजद किया गया था।
यह विवाद तब शुरू हुआ, जब थिएटर ग्रुप ‘द डेलरॉयज बॉयज’ के छात्रों ने एक कॉलेज कार्यक्रम में आरक्षण के विषय पर ‘मैड ऐड्स’ नाम का नाटक प्रस्तुत किया। इस कार्यक्रम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया, जिसमें डॉ. बी.आर. आंबेडकर और दलितों के बारे में कथित तौर पर अपमानजनक टिप्पणी होने के कारण इसकी आलोचना हुई।
घटना सामने आने के बाद समाज कल्याण विभाग के सहायक निदेशक मधुसूदन के एन ने 10 फरवरी 2023 को सिद्धपुरा पुलिस थाना में प्राथमिकी दर्ज कराई।
भाषा धीरज