हमारी अनुमति के बिना उदयनिधि के खिलाफ कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी: न्यायालय
सिम्मी नरेश
- 06 Mar 2025, 02:49 PM
- Updated: 02:49 PM
नयी दिल्ली, छह मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को आदेश दिया कि ‘‘सनातन धर्म को खत्म करने’’ संबंधी टिप्पणी को लेकर तमिलनाडु के उपमुख्यमंत्री एम उदयनिधि स्टालिन के खिलाफ उसकी अनुमति के बिना कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जानी चाहिए।
प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति संजय कुमार की पीठ ने कहा कि एक ही मुद्दे पर कई शिकायतें दर्ज नहीं की जा सकतीं। इसके साथ ही न्यायालय ने मौजूदा प्राथमिकियों की सुनवाई कर रही अदालतों में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने से स्टालिन को दी गई छूट संबंधी अंतरिम आदेश की अवधि भी बढ़ा दी।
पीठ स्टालिन की उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें उन्होंने सभी प्राथमिकियों को एक साथ जोड़ने और शिकायतों को एक स्थान पर स्थानांतरित किए जाने का अनुरोध किया था।
पीठ ने लंबित मामले में दायर उनकी याचिका पर उन राज्यों को नोटिस जारी किए जहां नयी प्राथमिकियां दर्ज की गई थीं।
पीठ के आदेश में कहा गया है, ‘‘नए जोड़े गए प्रतिवादियों (राज्यों) को नोटिस दिए जाने की तारीख से 15 दिन के भीतर जवाब दाखिल करने की छूट दी जाती है और यदि कोई प्रत्युत्तर हो तो 15 दिनों के बाद उसे दाखिल किया जाना चाहिए। अंतरिम आदेश जारी रहेगा और संशोधित रिट याचिका में उल्लिखित मामलों पर समान रूप से लागू होगा। हम निर्देश देते हैं कि न्यायालय की अनुमति के बिना कोई और मामला दर्ज न किया जाए।’’
स्टालिन की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने कहा कि महाराष्ट्र के अलावा पटना, जम्मू और बेंगलुरु में भी प्राथमिकियां दर्ज की गई हैं। उन्होंने तर्क दिया कि सभी मामलों को उस स्थान यानी तमिलनाडु में स्थानांतरित किया जा सकता है जहां कथित घटना हुई थी।
सिंघवी ने कहा कि स्टालिन के खिलाफ बिहार में एक नया मामला दर्ज किया गया है और लंबित याचिका में वहां के शिकायतकर्ताओं को पक्षकार बनाने के लिए संशोधन याचिका दायर की गई है।
उन्होंने टीवी प्रस्तोता अर्नब गोस्वामी, ‘ऑल्ट न्यूज’ के सह-संस्थापक मोहम्मद जुबैर और नेता नूपुर शर्मा के मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि एक घटना से उत्पन्न मामलों को अलग-अलग जगहों पर जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
सिंघवी ने कहा, ‘‘नूपुर शर्मा के मामले में शब्दों को बहुत अधिक आक्रामक माना जाता है। न्यायालय ने अन्य सभी मामलों को उस स्थान पर स्थानांतरित कर दिया था जहां पहली बार प्राथमिकी दर्ज की गई थी। इस मामले में यही समाधान है।’’
महाराष्ट्र की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मौजूदा मामले का हवाला देते हुए कहा कि ‘‘सनातन धर्म उन्मूलन सम्मेलन’’ में उपमुख्यमंत्री ने कहा था कि सनातन धर्म को मलेरिया, कोरोना, डेंगू आदि की तरह खत्म किया जाना चाहिए।
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘कृपया इस बात को समझें कि अगर किसी अन्य राज्य का मुख्यमंत्री इस्लाम जैसे किसी विशेष धर्म के बारे में ऐसी ही बातें कहता है कि उसे खत्म कर दिया जाना चाहिए, तो इसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।’’
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम मामले के गुण-दोष पर विचार नहीं कर रहे... केवल एक ही सवाल है कि क्या इन्हें एक ही स्थान पर स्थानांतरित किया जाना चाहिए।’’
मेहता ने कहा कि केवल इसलिए कि हिंदुओं ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, नेता को ऐसा कहने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘हम नहीं चाहेंगे कि उच्चतम न्यायालय किसी भी शब्द पर टिप्पणी करे, उसका मुकदमे पर असर पड़ता है।’’
सिंघवी ने मेहता की दलीलों पर आपत्ति जताते हुए कहा कि वह ‘‘अन्य श्रोताओं के लिए बोल रहे थे।’’
मेहता ने कहा, ‘‘नहीं, मेरे कोई और श्रोता नहीं है, मैं सिंघवी की तरह संवाददाता सम्मेलन नहीं कर सकता।’’
सिंघवी ने पलटवार करते हुए कहा, ‘‘आप अभी अदालत में ऐसा कर रहे हैं।’’
इस मामले में आगे की सुनवाई 28 अप्रैल को होगी।
द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) के नेता ने सितंबर 2023 में एक सम्मेलन में कहा था कि सनातन धर्म सामाजिक न्याय एवं समानता के खिलाफ है और इसका ‘‘उन्मूलन’’ किया जाना चाहिए। उन्होंने सनातन धर्म की तुलना कोरोना वायरस, मलेरिया और डेंगू से करते हुए कहा था कि इसे नष्ट कर दिया जाना चाहिए।
भाषा सिम्मी