आपदा प्रबंधन योजनाओं में लू को भी शामिल करें : संसदीय समिति
मनीषा माधव
- 19 Mar 2025, 04:54 PM
- Updated: 04:54 PM
नयी दिल्ली, 19 मार्च (भाषा) संसद की एक स्थायी समिति ने सुझाव दिया है कि केंद्र अपनी आपदा प्रबंधन योजनाओं में लू जैसी ‘नयी और उभरती’ आपदाओं को शामिल करे।
गृह मामलों की विभाग संबंधी स्थायी संसदीय समिति ने पिछले सप्ताह राज्यसभा में पेश की गई एक रिपोर्ट में आपदाओं की आधिकारिक सूची की नियमित समीक्षा और इसे अद्यतन करने के लिए एक प्रणाली स्थापित करने की भी सिफारिश की है।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘‘समिति ने सिफारिश की है कि मंत्रालय अपनी आपदा प्रबंधन योजनाओं में लू आदि के कारण होने वाली नई और उभरती हुई आपदाओं को शामिल कर सकता है। यह अधिसूचित आपदाओं की सूची की आवधिक समीक्षा और इसे अद्यतन के लिए एक औपचारिक तंत्र स्थापित करने की सिफारिश भी करती है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि अधिनियम प्रासंगिक बना रहे और उभरते आपदा जोखिमों के प्रति विशेषज्ञों, हितधारकों और प्रभावित समुदायों के परामर्श के माध्यम से उत्तरदायी हो।’’
भाजपा के राज्यसभा सदस्य राधा मोहन दास अग्रवाल की अध्यक्षता वाली 31 सदस्यीय समिति ने मंत्रालय से जलवायु परिवर्तन और आपदाओं की बढ़ती आवृत्ति को ध्यान में रखते हुए दीर्घकालिक आपदा तैयारियों के लिए अध्ययन और योजना बनाने का भी आग्रह किया।
इसके अलावा समिति ने क्षति को कम करने और पुनर्निर्माण में तेजी लाने के लिए अस्पतालों, स्कूलों और परिवहन प्रणालियों सहित आपदा-रोधी बुनियादी ढांचे में अधिक निवेश की सिफारिश की।
पर्यावरण संगठन ‘ग्रीनपीस इंडिया’ की जलवायु प्रचारक अमृता एस नायर ने कहा कि लू को अधिसूचित आपदाओं की सूची में शामिल करने की संसदीय समिति की सिफारिश एक स्वागत योग्य और लंबे समय से अपेक्षित कदम है, जो लू की बढ़ती गंभीरता को उजागर करता है।
उन्होंने कहा ‘‘यह सुनिश्चित करता है कि लू को आपदा प्रबंधन और रोकथाम, शमन तथा क्षतिपूर्ति सहित प्रतिक्रिया में प्राथमिकता दी जाए। इस कदम को वास्तव में प्रभावी बनाने के लिए, यह सुनिश्चित करना होगा कि वित्तीय पहलुओं और कार्यान्वयन में कोई कमी न हो।’’
नायर ने ‘ग्रीष्म कार्य योजना’ (हीट एक्शन प्लान) के लिए एक समर्पित ‘ग्रीष्म बजट’ के साथ-साथ जवाबदेही के लिए कानूनी रूप से बाध्यकारी और समयबद्ध लक्ष्यों का आह्वान किया।
उन्होंने इन प्रयासों की निगरानी करने और एकीकृत प्रतिक्रिया के लिए विभागों में समन्वय सुनिश्चित करने के लिए एक विशेष निकाय स्थापित करने की भी सिफारिश की।
उन्होंने कहा ‘‘हमें इस कदम को प्रभावी और सार्थक बनाने के लिए नीति से लेकर कार्रवाई तक एक समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है।’’
वर्तमान में, राष्ट्रीय आपदा मोचन कोष (एनडीआरएफ) और राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) सहायता के लिए पात्र आपदाओं की अधिसूचित सूची में चक्रवात, सूखा, भूकंप, आग, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटना, कीट हमले, पाला और शीत लहर शामिल हैं।
इसके अतिरिक्त, राज्य सरकारें अपने वार्षिक एसडीआरएफ आवंटन के 10 प्रतिशत तक का उपयोग, कुछ शर्तों पर, स्थानीय संदर्भ में महत्वपूर्ण मानी जाने वाली प्राकृतिक आपदाओं के लिए तत्काल राहत प्रदान करने में कर सकती हैं, भले ही वे केंद्र द्वारा अधिसूचित सूची में शामिल न हों।
राज्यों ने पहले केंद्र से अनुरोध किया था कि वे हाथी के हमले, बिजली, लू, नदी और तटीय कटाव, और जापानी इन्सैफेलाइटिस, निपाह और कोविड-19 महामारी जैसी सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों को एसडीआरएफ और एनडीआरएफ फंडिंग के लिए पात्र सूची में जोड़ें।
केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने हाल ही में लोकसभा को बताया कि 15वें वित्त आयोग ने लू को शामिल करने के लिए अधिसूचित आपदाओं की सूची का विस्तार करने के राज्यों के अनुरोधों की जांच की थी, लेकिन उसे इसमें कोई महत्वपूर्ण बात नहीं लगी।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार, 2013 से 10 साल की अवधि में भारत में अत्यधिक गर्मी और लू के कारण 10,635 लोगों की जान गई।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार, पिछले साल भारत में असाधारण रूप से भीषण गर्मी पड़ी, जिसमें 536 दिन लू वाले दर्ज किए गए। लू वाले दिनों की यह संख्या 14 वर्षों में सबसे अधिक थी।
आधिकारिक आंकड़ों से पता चला है कि सबसे गर्म और सबसे लंबी लू अवधि के दौरान, भारत में 41,789 संदिग्ध लू के मामले और 143 लू संबंधित मौतें दर्ज की गईं।
आईएमडी ने बेहद करीब आ चुकी गर्मी में भी देश के अधिकतर हिस्सों में सामान्य से अधिक अधिकतम और न्यूनतम तापमान का अनुमान लगाया है।
भाषा मनीषा