उपभोक्ता आयोग बीमा पॉलिसी के तहत मुआवजा राशि पर फिर से गौर करे: न्यायालय
रमण अजय
- 07 Apr 2025, 08:19 PM
- Updated: 08:19 PM
नयी दिल्ली, सात अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निपटान आयोग (एनसीडीआरसी) को निर्देश दिया कि वह 2005 में एक कंपनी को हुए नुकसान के लिए बीमा पॉलिसी के तहत दी जाने वाली मुआवजा राशि पर नये सिरे से विचार करे।
न्यायाधीश संजय कुमार और न्यायाधीश ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ एनसीडीआरसी के अगस्त, 2022 के आदेश के खिलाफ बीमा कंपनी की अपील पर सुनवाई करते हुए यह बात कही।
एनसीडीआरसी ने माना कि बीमा कंपनी आगरा की कंपनी को अपनी पॉलिसी के तहत मुआवजा देने के लिए उत्तरदायी है। कंपनी को कारखाने का ‘शेड’ ढहने के कारण नुकसान हुआ था।
न्यायालय ने कहा कि कंपनी ने बीमा प्रदाता से आग और विशेष खतरों के खिलाफ एक व्यापक बीमा पॉलिसी ले रखी थी और यह पॉलिसी 30 जून, 2005 से 29 जून, 2006 तक प्रभावी थी। एक अगस्त, 2005 को भारी बारिश के कारण कारखाना शेड ढह गया और संयंत्र, मशीनरी, भंडार और इमारतों को नुकसान पहुंचा।
पीठ ने कहा कि कंपनी ने 91 लाख रुपये का बीमा दावा किया। इसके बाद बीमा कंपनी ने एक सर्वेक्षक नियुक्त किया, जिसने नुकसान का आकलन 8.89 लाख रुपये किया।
बीमा कंपनी ने दावे को खारिज करते हुए तर्क दिया कि नुकसान बीमाकृत ‘बाढ़’ के जोखिम के कारण नहीं हुआ था और इसलिए यह पॉलिसी के दायरे से बाहर है।
कंपनी ने दावे को खारिज किए जाने के बाद एनसीडीआरसी से संपर्क किया। कंपनी ने कहा कि उसने एक स्वतंत्र सर्वेक्षक को नियुक्त किया है जिसने पुष्टि की है कि नुकसान बाढ़ के कारण हुआ है और नुकसान का आकलन 46.97 लाख रुपये किया है।
कंपनी ने एनसीडीआरसी में तर्क दिया कि उसके परिसर का 2003 में जीर्णोद्धार किया गया था और बीमित शेड/फैक्ट्री की इमारतें अच्छी स्थिति में थीं, जिससे दीवारों के कमजोर होने या रिसाव के कारण ढहने की संभावना नहीं थी।
एनसीडीआरसी ने बीमाकर्ता को कंपनी को 46.97 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत में बीमा कंपनी ने कहा कि वह पॉलिसी के तहत मुआवजा देने की अपनी जिम्मेदारी से पीछे नहीं हट रही है, लेकिन एनसीडीआरसी ने मुआवजे की राशि के बारे में उचित तरीके से विचार नहीं किया।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने इस बात पर गौर किया कि अपीलकर्ता (बीमा कंपनी) के सर्वेक्षक ने नुकसान का आकलन बहुत कम 8,89,176 रुपये किया, पर एनसीडीआरसी यह नहीं मान सकता कि अपीलकर्ता, कंपनी के सर्वेक्षक के एकतरफा 46,97,085 रुपये के बढ़े हुए आकलन को चुपचाप स्वीकार कर लेगा।’’
न्यायालय ने कहा कि एनसीडीआरसी ने दावे की मात्रा तय करने में स्वतंत्र रूप से अपना दिमाग नहीं लगाया और कंपनी द्वारा प्रस्तुत सर्वेक्षक की रिपोर्ट में आकलन से इनकार करने में बीमा कंपनी की कथित विफलता पर ‘आंख बंद कर काम किया’।
पीठ ने कहा, ‘‘जैसा कि पहले बताया गया है, यह धारणा निराधार और गलत थी।’’
न्यायालय ने प्रतिवादी को हुए नुकसान के लिए बीमा पॉलिसी के तहत मुआवजा राशि पर नए सिरे से विचार करने के लिए मामले को एनसीडीआरसी को भेज दिया। इसने एनसीडीआरसी से मामले को प्राथमिक आधार पर शीघ्र निर्णय लेने को कहा।
भाषा रमण