ऐसे पुस्तकालय जहां नहीं रहना होता चुप, बोलकर और गतिविधियों के साथ पढ़ी जाती हैं किताबें
वैभव धीरज
- 18 Apr 2025, 08:18 PM
- Updated: 08:18 PM
(तस्वीरों के साथ)
(मनीष सैन)
नयी दिल्ली, 18 अप्रैल (भाषा) अलमारियों में बड़ी संख्या में सजी किताबें, मदद के लिए तैयार कर्मचारी और जिज्ञासु बच्चे कहीं हों तो यह जाहिर तौर पर एक पुस्तकालय है। लेकिन ऐसे पुस्तकालय हों तो कैसा हो, जहां ‘शांत रहें’ के बोर्ड या बच्चों को चुप रहने के लिए कहने के बजाय जोर से कहानियां सुनाई जा रही हों और ढेर सारे खेल खेले जा रहे हों।
दक्षिण दिल्ली के खिड़की एक्सटेंशन में ऐसा ही एक पुस्तकालय भारत भर के ऐसे 230 से अधिक पुस्तकालयों में से एक है। ‘कनेक्टेड टू द फ्री लाइब्रेरीज नेटवर्क’ (एफएलएन) ने पुस्तकालयों को ऐसे सामुदायिक स्थानों के रूप में परिकल्पित किया है जहां गतिविधियों, कहानियों, नाटक, खेल, बातचीत और बहुत सारी पढ़ाई के माध्यम से बच्चों के बीच जुड़ाव को प्रोत्साहित किया जाता हो।
उदाहरण के लिए, पिछले दिनों एक दोपहर को, नोएडा की ‘किस्सागढ़ एक्टिव लाइब्रेरी’ में कुछ किशोर सादत हसन मंटो की विभाजन पर आधारित कहानी ‘खोल दो’ नाटक का मंचन कर रहे थे। कुछ किलोमीटर दूर, तुगलकाबाद गांव की ‘किताबी दोस्त लाइब्रेरी’ में कुछ बच्चे एक-दूसरे को कहानियां सुना रहे थे, कुछ आकृतियां बना रहे थे और खेलने के लिए अगला खेल चुन रहे थे।
शहर के दूसरे हिस्से में, खिड़की एक्सटेंशन स्थित ‘कम्युनिटी लाइब्रेरी प्रोजेक्ट’ (टीसीएलपी) के बच्चे भी कुछ अलग तरह का खेल खेल रहे थे।
पुस्तकालयों से पारंपरिक रूपी से जुड़ी माने जाने वाली गंभीरता इन “निःशुल्क, स्वतंत्र और जमीनी स्तर के पुस्तकालयों” में गायब हो जाती है। इन्हें कुछ युवक और युवतियां संचालित कर रहे हैं जो कभी खुद इसके शुरुआती सदस्य थे।
किस्सागढ़ के संस्थापक कपिल पांडे ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हम इसे सक्रिय पुस्तकालय कहते हैं क्योंकि हम पुस्तकालय में बात न करने के विचार को बदलना चाहते थे और इसे सक्रिय और गतिविधि आधारित रखना चाहते थे।’’
रुचि से कहानीकार और पेशे से डिजाइनर, पांडे ने 2014 में औपचारिक रूप से इस सक्रिय पुस्तकालय शृंखला की शुरुआत की।
दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में दो केंद्रों में संचालित होने वाले इस पुस्तकालय में लगभग 10,000 किताबें हैं और इसके 300 से ज्यादा सदस्य हैं, जिनमें से 50-60 रोजाना आते हैं।
चाहे 17 वर्षीय कंचन हो, जो पुलिस बल में शामिल होना चाहती है, या नौ वर्षीय सत्यम कुमार जो डॉक्टर बनना चाहता है, या फिर पांच साल का तंशु, सभी की अनेक आकांक्षाएं हैं और उन्हें शब्दों से प्यार भी उतना है।
‘खोल दो’ में सकीना का मुख्य किरदार निभाने वाली कंचन कुछ साल पहले जब पुस्तकालय से जुड़ी थी, तब वह शांत और संकोची थी। अब, वह छोटे बच्चों को खुद की खोज की ऐसी ही यात्रा पर ले जाती हैं।
उसने कहा, ‘‘मैं कभी किसी से बात नहीं करती थी, ज़्यादातर किताबें समझ नहीं पाती थी। अब, मैं दूसरे बच्चों को पढ़ना और अभिनय करना सिखा सकती हूं।’’
पांडे के अनुसार, नाटक के ज़रिए सीखने से बच्चों को ‘समस्या के बारे में सोचने के बजाय, उसके साथ रहकर सोचने’ में मदद मिलती है।
पियाली धर ने कोविड-19 लॉकडाउन के कारण सीखने में आ रहीं समस्या को दूर करने के लिए 2021 में ‘किताबी दोस्त’ की स्थापना की, जिसमें जोर से पढ़ना, प्रश्नोत्तरी और विज्ञान के प्रयोग जैसी गतिविधियां शामिल हैं।
पुस्तकालय के सदस्यों को पुस्तक रिपोर्ट लिखने और अपनी खुद की कहानियां बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
भाषा वैभव