नीतीश कटारा हत्याकांड: न्यायालय ने एक दोषी की रिहाई के खिलाफ दिल्ली सरकार की दलील पर आश्चर्य जताया
सुभाष माधव
- 22 Apr 2025, 06:51 PM
- Updated: 06:51 PM
नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को दिल्ली सरकार के इस रुख पर आपत्ति जताई कि 2002 के नीतीश कटारा हत्याकांड में, बिना किसी छूट के 20 साल की जेल की सजा काट रहे एक दोषी को उसकी कैद की अवधि पूरी होने के बाद भी रिहा नहीं किया जा सकता।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां की पीठ ने दिल्ली सरकार की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) अर्चना पाठक दवे की इस दलील पर आश्चर्य जताया कि सुखदेव यादव उर्फ पहलवान की स्वत: रिहाई नहीं हो सकती।
पीठ ने कहा, ‘‘हम एक व्यक्ति की स्वतंत्रता से संबंधित मामले पर विचार कर रहे हैं। उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक ने दोषसिद्धि को बरकरार रखा है। अवधि तय की गई है। यदि हम पाते हैं कि उसे कानूनी रूप से स्वीकार्य अवधि से अधिक समय तक हिरासत में रखा गया है, तो वह हिरासत अवैध होगी। प्रत्येक दिन की हिरासत अवैध होगी।’’
दोषी की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता सिद्धार्थ मृदुल ने कहा कि उनके मुवक्किल ने 9 मार्च 2025 को सजा की अवधि पूरी कर ली।
उन्होंने दोषी को 9 मार्च से आगे हिरासत में रखने के किसी भी कानूनी औचित्य से इनकार किया और कहा कि दिल्ली सरकार ने सजा की अपनी व्याख्या में गलती की है।
हालांकि, दवे ने दलील दी कि 20 साल के बाद स्वतः रिहाई नहीं हो सकती और आजीवन कारावास का मतलब है जीवन पर्यंत जेल में रहना।
एएसजी ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता ने शीर्ष अदालत में दायर याचिका में अपनी रिहाई का अनुरोध नहीं किया, बल्कि ‘फरलो’ का आग्रह किया।
‘फरलो’ जेल से एक अस्थायी रिहाई है, न कि पूरी सजा का निलंबन या छूट। यह आमतौर पर उन लंबी अवधि के कैदियों को दी जाती है जिन्होंने अपनी सजा का एक हिस्सा पूरा कर लिया है।
इसके बाद उच्चतम न्यायालय ने कहा, ‘‘हमने इस मामले की सुनवाई दोपहर करीब ढाई बजे शुरू की। 24 फरवरी और 28 मार्च 2025 के दो आदेशों से स्पष्ट संकेत मिलता है कि अदालत को दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले के प्रभावी हिस्से के कार्यान्वयन पर विचार करना था।’’
पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता के दलील पेश करने और एएसजी द्वारा आधे घंटे तक दलील दिये जाने के बाद, एएसजी ने कहा कि याचिकाकर्ता ने अपनी विशेष अनुमति याचिका में, वास्तविक 20 साल की सजा काटने के बाद रिहा किये जाने का अनुरोध नहीं किया है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस प्रकार, यह दलील दी जा रही है कि यह न्यायालय इस प्रश्न पर विचार नहीं कर सकता।’’
शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेशों को ‘‘बिल्कुल स्पष्ट’’ मानते हुए कहा कि रिहाई के मुद्दे पर विचार किया जाएगा, इसलिए न्यायालय ने यादव को याचिका में संशोधन करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने कहा, ‘‘अपराह्न (करीब) 3:15 बजे, चूंकि हमें लगा कि इस मामले में समय लगेगा, इसलिए हमने मामला सूची से शेष मामलों को हटा दिया और कहा कि शेष मामलों पर सुनवाई नहीं की जाएगी। इसलिए, आधे घंटे तक दलीलें पेश किये जाने के बाद भी इस तरह की प्रारंभिक आपत्ति उठाना अन्य वादियों के साथ अन्याय है।’’
‘‘कड़ी आपत्ति’’ को ध्यान में रखते हुए पीठ ने याचिकाकर्ता को तीन दिनों के भीतर याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी और सुनवाई 7 मई के लिए निर्धारित कर दी।
पीठ ने 24 फरवरी को दिल्ली सरकार की इस दलील पर सवाल उठाया था कि वह मामले में 20 साल की जेल की सजा पूरी होने के बाद भी यादव को रिहा नहीं करेगी।
यादव की याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय के नवंबर 2024 के आदेश को चुनौती दी गई थी, जिसमें उसे तीन सप्ताह के लिए ‘फरलो’ पर रिहा करने के अनुरोध वाली उसकी याचिका खारिज कर दी गई थी।
तीन अक्टूबर 2016 को, शीर्ष अदालत ने कटारा के अपहरण और हत्या के मामले में विकास और उसके फुफेरे भाई विशाल को बिना किसी छूट के 25 साल की जेल की सजा सुनाई थी। वहीं, मामले में सह-दोषी यादव को 20 साल जेल की सजा सुनाई गई थी।
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