बार काउंसिल में अपना पद गंवाने के बाद मुस्लिम सदस्य वक्फ बोर्ड के लिए अपात्र : उच्चतम न्यायालय
सुभाष रंजन
- 22 Apr 2025, 09:32 PM
- Updated: 09:32 PM
नयी दिल्ली, 22 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि यदि राज्य बार काउंसिल का कोई मुस्लिम सदस्य बार में किसी पद पर अब नहीं है तो वह राज्य वक्फ बोर्ड में सेवा देने के लिए पात्र नहीं है।
न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश और न्यायमूर्ति राजेश बिंदल की पीठ इस प्रश्न पर विचार कर रही है कि जो व्यक्ति बार काउंसिल का मुस्लिम सदस्य नहीं रह गया है, क्या वह वक्फ बोर्ड का सदस्य बना रह सकता है।
मणिपुर उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ के निर्णय को निरस्त करते हुए शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘(वक्फ) बोर्ड का सदस्य बनने के लिए दो शर्तें हैं। पहली शर्त यह है कि उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से होना चाहिए और दूसरी यह कि संसद, राज्य विधानसभा का सदस्य या बार काउंसिल का सक्रिय सदस्य होना चाहिए। अगर कोई व्यक्ति इन शर्तों को पूरा नहीं करता है, तो वह बोर्ड के पद पर बना नहीं रह सकता है।’’
यह मामला मोहम्मद फिरोज अहमद खालिद की अपील से संबंधित है। मणिपुर बार काउंसिल में उनके चुने जाने के बाद फरवरी 2023 में उन्हें मणिपुर वक्फ बोर्ड का सदस्य नियुक्त किया गया था। उन्होंने एक अन्य व्यक्ति की जगह ली, जिसने दिसंबर 2022 में चुनाव के बाद बार काउंसिल में अपना पद खो दिया था।
उच्च न्यायालय के एकल न्यायाधीश ने खालिद की नियुक्ति को बरकरार रखा था, हालांकि खंड पीठ ने निर्णय को पलट दिया। खंडपीठ ने यह फैसला सुनाया कि कानून में, बार काउंसिल के सदस्य को बार काउंसिल का सदस्य न रहने पर वक्फ बोर्ड में अपना पद खाली करने की आवश्यकता नहीं बताई गई है।
न्यायमूर्ति सुंदरेश ने 25 पन्नों का फैसला लिखते हुए, खंड पीठ के फैसले से असहमति जताई।
शीर्ष अदालत ने फैसले में स्पष्ट किया कि बार काउंसिल के किसी पूर्व सदस्य के नाम पर वक्फ बोर्ड की सदस्यता के लिए तभी विचार किया जा सकता है, जब वर्तमान में बार काउंसिल में कोई सेवारत मुस्लिम सदस्य न हो - जो कि वक्फ अधिनियम की धारा 14(2) के दूसरे प्रावधान के तहत एक विशेष अपवाद है।
परिणामस्वरूप, शीर्ष अदालत ने एकल न्यायाधीश के फैसले को बहाल कर दिया तथा राज्य वक्फ बोर्ड के सदस्य के रूप में खालिद की नियुक्ति को बरकरार रखा।
इसने कहा, ‘‘हमने यह भी पाया कि वर्तमान में, अपीलकर्ता संबंधित बार काउंसिल में एकमात्र मुस्लिम सदस्य हैं। इस तथ्य को मणिपुर राज्य ने उन्हें बोर्ड के सदस्य के रूप में नियुक्त करते समय सही तरीके से ध्यान में रखा। किसी भी मामले में, बार काउंसिल में उनकी सदस्यता के आधार पर बोर्ड का सदस्य होने के लिए अपीलकर्ता की पात्रता के संबंध में कोई विवाद नहीं है।’’
भाषा सुभाष