हम अनिश्चित समय में जी रहे, ‘निष्पक्ष एवं प्रतिनिधि’ वैश्विक व्यवस्था देखना लोगों की इच्छा: जयशंकर
संतोष नेत्रपाल
- 04 Aug 2025, 10:23 PM
- Updated: 10:23 PM
नयी दिल्ली, चार अगस्त (भाषा) विदेश मंत्री एस जयशंकर ने सोमवार को कहा कि ‘‘हम जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं’’ और हमारी सामूहिक इच्छा एक निष्पक्ष एवं प्रतिनिधि वैश्विक व्यवस्था देखने की है, न कि ‘‘कुछ लोगों के प्रभुत्व वाली’’।
उन्होंने यहां बिम्सटेक पारंपरिक संगीत महोत्सव ‘सप्तसुर’ के उद्घाटन समारोह में अपने संबोधन में कहा कि इस प्रयास को अकसर ‘राजनीतिक या आर्थिक पुनर्संतुलन’ के रूप में व्यक्त किया जाता है।
बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिए बंगाल की खाड़ी पहल (बिम्सटेक) एक क्षेत्रीय संगठन है जिसकी स्थापना 1997 में बैंकॉक घोषणापत्र पर हस्ताक्षर के साथ हुई थी।
शुरुआत में बिस्टेक (बांग्लादेश, भारत, श्रीलंका, थाईलैंड आर्थिक सहयोग) के नाम से जाना जाने वाला यह संगठन अब बिम्सटेक के नाम से जाना जाता है और इसमें सात सदस्य देश शामिल हैं। इस संगठन में 1997 में म्यांमा और 2004 में भूटान और नेपाल को भी शामिल किया गया।
अपने संबोधन में जयशंकर ने क्षेत्रीय समूह के विभिन्न सदस्य देशों से आए महोत्सव के प्रतिभागियों का स्वागत किया।
उन्होंने कहा कि यह संगीत समारोह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में की गई प्रतिबद्धता के अनुरूप है। बैंकॉक में अप्रैल में आयोजित छठे बिम्सटेक शिखर सम्मेलन में कई पहलों की घोषणा की गई थी जिनमें 2025 में भारत में बिम्सटेक पारंपरिक संगीत समारोह की मेजबानी की बात भी शामिल थी।
जयशंकर ने कहा, ‘‘हम जटिल और अनिश्चित समय में जी रहे हैं, और हमारी सामूहिक इच्छा एक निष्पक्ष और प्रतिनिधि वैश्विक व्यवस्था देखने की है, न कि कुछ लोगों के वर्चस्व वाली। इस खोज को अक्सर राजनीतिक या आर्थिक पुनर्संतुलन के रूप में व्यक्त किया जाता है।’’
अपने भाषण में उन्होंने यह भी कहा कि समाजों के लिए सम्मान और गरिमा सुनिश्चित करने का जरिया सांस्कृतिक कौशल भी हो सकता है।
उन्होंने कहा, ‘‘इस संदर्भ में परंपराओं का एक विशेष महत्व है, क्योंकि अंततः वे पहचान को परिभाषित करती हैं। अगर हम भविष्य को आकार देने के बारे में आश्वस्त होना चाहते हैं, तो हमें उसके प्रति आश्वस्त होना चाहिए जो हम हैं। और हमारे जैसे देशों के लिए परंपराएं वास्तव में शक्ति का एक बड़ा स्रोत हैं।’’
भाषा संतोष