न्यायपालिका को पारदर्शी बनाना प्रधान न्यायाधीश की जिम्मेदारी: उच्चतम न्यायालय
नेत्रपाल धीरज
- 07 Aug 2025, 09:46 PM
- Updated: 09:46 PM
नयी दिल्ली, सात अगस्त (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने किसी भी न्यायिक कदाचार पर कार्रवाई करने के प्रधान न्यायाधीश के अधिकार का बचाव करते हुए बृहस्पतिवार को कहा कि वह ‘‘केवल एक डाकघर’’ नहीं हो सकते, बल्कि यह सुनिश्चित करना उनकी नैतिक जिम्मेदारी है कि न्यायपालिका पारदर्शी, कुशल और संवैधानिक रूप से उचित तरीके से काम करे।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘हमें यह कहने में कोई संकोच नहीं है कि प्रधान न्यायाधीश समिति और राष्ट्रपति/प्रधानमंत्री के बीच महज एक डाकघर नहीं हैं कि रिपोर्ट बिना किसी टिप्पणी/सिफारिश के आगे भेज दी जाए। संस्थागत हित और विश्वसनीयता बनाए रखने की व्यापक योजना में, यह पता लगाने के लिए कि क्या कोई न्यायाधीश कदाचार में लिप्त है, प्रधान न्यायाधीश स्पष्ट रूप से एक महत्वपूर्ण व्यक्ति हैं, यदि सबसे महत्वपूर्ण नहीं तो कम से कम एक महत्वपूर्ण व्यक्ति तो हैं ही।’’
यह टिप्पणी इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश यशवंत वर्मा की याचिका पर निर्णय करते समय की गई, जिनके खिलाफ उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेषज्ञ समिति ने दिल्ली उच्च न्यायालय में न्यायाधीश पद पर तैनात रहने के दौरान उनके आधिकारिक आवास से नकदी की जली हुई गड्डियां मिलने पर एक कठोर रिपोर्ट दायर की थी।
न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति ए जी मसीह की पीठ ने कहा, ‘‘प्रक्रिया के अनुसार, किसी न्यायाधीश के खिलाफ शिकायत या उस उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद, जिसके वह न्यायाधीश हैं, प्रधान न्यायाधीश को शिकायत/रिपोर्ट की प्रकृति और उसके साथ सहायक सामग्री, यदि कोई हो, पर विचार करना होता है।’’
यह उल्लेख करते हुए कि प्रक्रिया का ईमानदारी से पालन किया गया, शीर्ष अदालत ने वर्मा की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने नकदी विवाद में उन्हें कदाचार का दोषी करार देने वाली आंतरिक जांच रिपोर्ट को अमान्य करने का आग्रह किया था।
उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि यदि प्रधान न्यायाधीश को लगता है कि मामले में गहन जांच की आवश्यकता है, तो उन्हें आंतरिक जांच के लिए एक समिति गठित करनी होगी।
पीठ ने कहा, ‘‘जांच रिपोर्ट में न्यायाधीश के खिलाफ आरोपों को गंभीर पाया भी जा सकता है और नहीं भी, जिससे किसी कार्रवाई की आवश्यकता हो। हालांकि, यदि ऐसा होता है, तो प्रधान न्यायाधीश का दायित्व है कि वह रिपोर्ट राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को भेजें। हमें यह मानने का कोई औचित्य नहीं दिखता कि रिपोर्ट भेजते समय प्रधान न्यायाधीश अपने विचार नहीं दे सकते।’’
इसने कहा, ‘‘प्रमुख न्यायिक अधिकारी के रूप में प्रधान न्यायाधीश की यह नैतिक जिम्मेदारी है कि वह यह सुनिश्चित करें कि देश की न्यायपालिका पारदर्शी, कुशल और संवैधानिक रूप से उचित तरीके से काम करे।’’
न्यायाधीशों को न्यायिक आचरण में सावधानी बरतने और विवेक का प्रयोग करने की सलाह देते हुए शीर्ष अदालत ने कहा कि हर स्तर के न्यायिक अधिकारी, और विशेष रूप से न्यायपालिका के उच्च स्तर के न्यायाधीशों का देश के लोगों के प्रति ‘‘बड़ा दायित्व’’ है।
भाषा नेत्रपाल