खेल प्रशासन विधेयक समय की मांग और सही दिशा में उठाया गया कदम: एनएसएफ
आनन्द सुधीर
- 12 Aug 2025, 07:11 PM
- Updated: 07:11 PM
नयी दिल्ली, 12 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय खेल प्रशासन विधेयक का कानून बनने का मार्ग प्रशस्त होने पर देश के राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएफएस) और भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) की अध्यक्ष पी टी उषा ने मंगलवार को इस ऐतिहासिक नीति का स्वागत किया और इसे सही दिशा में उठाया गया एक कदम बताया क्योंकि भारत 2036 ओलंपिक की मेजबानी की दावेदारी की तैयारी कर रहा है।
लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों से पारित होने के बाद यह विधेयक कानून बनने वाला है। इसका मकसद भारत के खेल प्रशासन में सुधार और मानकीकरण करना है, जिससे राष्ट्रीय खेल महासंघों (एनएसएफ) और भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) में सुशासन के लिए एक स्पष्ट ढांचा तैयार होगा।
इस तरह भारत खेल प्रशासन को सुचारू करने के लिए औपचारिक कानून रखने वाले अमेरिका, ब्रिटेन, चीन और जापान जैसे देशों में शामिल हो जाएगा।
अखिल भारतीय टेनिस संघ (एआईटीए) के अंतरिम सचिव सुंदर अय्यर ने पीटीआई को बताया, ‘‘यह निश्चित रूप से अच्छा है क्योंकि इससे चीजें काफी स्पष्ट हो जाएंगी। सभी को नियमों और विनियमों के एक ही खाके का पालन करना होगा। इससे पहले अलग-अलग खेल संघों के लिए अलग-अलग नियम होते थे।
अय्यर ने हालांकि कहा कि कार्यकारी समिति में सीटों को सीमित करना एक आदर्श स्थिति नहीं है।
उन्होंने कहा, ‘‘भारत एक बड़ा देश है, इसलिए कार्यकारी समिति को 15 सदस्यों तक सीमित रखना मुश्किल होगा। इसमें से चार से पांच सदस्य असाधारण योग्यता वाले खिलाड़ियों और एथलीट आयोग के सदस्यों के पास चली जाएगी, इसलिए व्यावहारिक रूप से 36 राज्यों में से आप कार्यकारी समिति में केवल 10-11 सदस्य ही रख सकते हैं। यह बहुत मुश्किल है। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए था, संख्या अधिक होनी चाहिए थी।’’
भारतीय ओलंपिक संघ की अध्यक्ष और राज्य सभा की मनोनित सदस्य पीटी उषा ने भी इस विधेयक का समर्थन करते हुए कहा कि कहा कि इससे दशकों से चला आ रहा ठहराव दूर होगा और देश के खेल प्रशासन में ‘‘पारदर्शिता और जवाबदेही’’ सुनिश्चित होगी।
उन्होंने राज्यसभा में कहा, ‘‘आज का दिन व्यक्तिगत और राष्ट्रीय महत्व का है। मुझे इस दिन का लंबे समय से इंतज़ार था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ यह विधेयक पारदर्शिता, जवाबदेही और लैंगिक समानता लाएगा तथा एथलीटों को सशक्त बनाएगा और प्रायोजकों तथा महासंघों के बीच विश्वास पैदा करेगा। यह विधेयक न्याय और निष्पक्षता से जुड़ा हुआ है।’’
भारतीय भारोत्तोलन महासंघ के अध्यक्ष सहदेव यादव ने कहा, ‘‘ यह विधेयक 2036 के ओलंपिक के लिए प्रधानमंत्री के दृष्टिकोण के अनुरूप है। यह संघों में कानूनी मामलों की संख्या को कम करेगा और खेलों को समृद्ध होने देगा। यह लंबे समय तक चलने वाली अदालती कार्रवाई पर होने वाले अनावश्यक खर्च को भी बचाएगा।’’
अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष कल्याण चौबे ने इससे होने वाले फायदे का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘ कई राष्ट्रीय खेल संघ अदालती मुकदमों के बोझ तले दबे हैं। भारतीय ओलंपिक संघ 350 से अधिक मामलों में शामिल है। इस विधेयक में प्रस्तावित पंचाट (ट्रिब्यूनल) से काफी पैसे की बचत हो सकती है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘यह राष्ट्रीय नामों और प्रतीकों, जैसे ‘भारत’ या भारतीय’ जैसे शब्दों का खेल संगठनों द्वारा उपयोग किए जाने पर भी ध्यान देगा और किसी महासंघ या संघ की आड़ में समानांतर निकायों को बनने से रोक पाएगा।’’
भारतीय एथलेटिक्स महासंघ के प्रवक्ता आदिल सुमरिवाला ने कहा, ‘‘ इससे एनएसएफ में बेहतर शासन आएगा। लगभग सभी एनएसएफ अदालती मामलों से प्रभावित हैं। हर दूसरे न्यायालय में चुनावों को चुनौती दी जाती है। कई अदालतों को (खेलों के बारे में) बहुत कम जानकारी है। विभिन्न अदालतों ने एक ही मामले में अलग-अलग फैसले दिए हैं, जिससे चीजें और भी जटिल हो जाती हैं। बीसीसीआई के लिए एक फैसला, आईओए के लिए उस तरह के ही मामले में अलग फैसला और एआईएफएफ के लिए अलग फैसला।’’
उन्होंने कहा, ‘‘ पहले यह खेल संहिता था इसलिए लोग इसमें अपने मुताबिक हेरफेर कर लेते थे लेकिन विधेयक और फिर कानून बनने के बाद ऐसा संभव नहीं होगा।
भारतीय बैडमिंटन संघ के सचिव संजय मिश्रा और हॉकी इंडिया के अध्यक्ष दिलीप टिर्की ने भी इस विधेयक को ऐतिहासिक करार दिया।
मिश्रा ने कहा, ‘‘यह भारत के खेल ढांचे को वैश्विक सर्वोत्तम प्रथाओं तक पहुंचने की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है। इससे पारदर्शिता, खिलाड़ियों के कल्याण और जवाबदेह शासन जैसे मुद्दों पर सुधार होगा।
टिर्की ने कहा, ‘‘ यह सुधार खिलाड़ियों और सभी हितधारकों के बीच नया विश्वास जगाएगा, जिससे वैश्विक मानकों के अनुरूप एक शासन मॉडल तैयार होगा।’’
भारतीय टेबल टेनिस महासंघ के महासचिव कमलेश मेहता ने इसे ‘सही दिशा में एक बड़ा कदम’ करार देते हुए कहा, ‘‘यह विधेयक विवादों के निपटारे सहित सभी पहलुओं पर ध्यान देता है जो महत्वपूर्ण है क्योंकि किसी भी संगठन में मतभेद होना स्वाभाविक है। अब, इन मतभेदों को तेजी से सुलझाया जा सकता है।’’
भाषा आनन्द