केंद्र ने बाढ़ के मैदान का क्षेत्रीकरण संबंधी दिशानिर्देश जारी किए
रवि कांत अविनाश
- 13 Aug 2025, 08:55 PM
- Updated: 08:55 PM
नयी दिल्ली, 13 अगस्त (भाषा) केंद्र ने बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में विकास को विनियमित करने के लिए विभिन्न राज्यों के साथ एक राष्ट्रव्यापी रूपरेखा एवं दिशानिर्देश साझा किए हैं।
इसके तहत बाढ़ के मैदानों का त्रिस्तरीय वर्गीकरण शुरू करना, संवेदनशील क्षेत्रों में उच्च जोखिम वाली गतिविधियों पर रोक लगाना तथा सीमांकन, निगरानी और पर्यावरण सुरक्षा के लिए एक समान मानक निर्धारित करना शामिल है।
इस कदम का उद्देश्य बाढ़ से होने वाली क्षति को रोकना, जलवायु लचीलेपन में सुधार करना तथा यह सुनिश्चित करना है कि बाढ़ के मैदानों में मानवीय गतिविधियों पर सख्त नियंत्रण हो।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि जल शक्ति मंत्रालय के बाढ़ मैदान क्षेत्रीकरण पर तकनीकी दिशा-निर्देशों को पिछले महीने मंत्री सी आर पाटिल की मंजूरी से अंतिम रूप दिया गया था। इन दिशा-निर्देशों को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को कार्यान्वयन के लिए भेज दिया गया है।
नये मानदंडों के तहत बाढ़ के मैदानों को बाढ़ की आवृत्ति के आधार पर संरक्षित, विनियामक और चेतावनी क्षेत्रों में वर्गीकृत किया जाएगा, तथा प्रत्येक श्रेणी में गतिविधियों पर कड़े प्रतिबंध होंगे।
'संरक्षित क्षेत्रों' में स्थायी निर्माण, अपशिष्ट निपटान और खतरनाक सामग्रियों के भंडारण पर प्रतिबंध रहेगा, सिवाय आवश्यक सार्वजनिक बुनियादी ढांचे जैसे पुल, तटबंध और बाढ़ सुरक्षा कार्यों के लिए।
दिशा-निर्देशों के मुताबिक, ‘‘संरक्षित क्षेत्र ऐसे बाढ़ क्षेत्र हैं जहां सबसे अधिक बाढ़ आती है। यह उस क्षेत्र से मेल खाता है जहां पांच साल में एक बार बाढ़ आती है। इस क्षेत्र में निर्दिष्ट गतिविधियों/निर्माण को छोड़कर किसी भी गतिविधि/निर्माण की अनुमति नहीं होगी।’’
जब तक बाढ़ के मैदानों का मानचित्रण पूरा नहीं हो जाता, तब तक नदी के किनारे से 100 मीटर के दायरे में राष्ट्रव्यापी विकास निषेध क्षेत्र लागू रहेगा।
अमेरिका, ब्रिटेन, न्यूजीलैंड और बांग्लादेश की सर्वोत्तम वैश्विक प्रथाओं को अपनाते हुए, उभरते खतरों से निपटने के लिए रूपरेखा की समय-समय पर समीक्षा की जाएगी।
भारत, बांग्लादेश के बाद दूसरा सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित देश है, जहां हर साल बाढ़ के कारण औसतन 1,654 लोगों की जान जाती है, छह लाख से अधिक मवेशी मारे जाते हैं तथा 75 लाख हेक्टेयर कृषि भूमि पर फसल नष्ट हो जाती है।
दिशानिर्देश तैयार करने वाले केन्द्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) ने इस बात पर जोर दिया कि तटबंधों और जलाशयों जैसे पारंपरिक उपाय पूर्ण सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकते, तथा इनके साथ गैर-संरचनात्मक हस्तक्षेप भी किया जाना चाहिए।
भाषा रवि कांत