‘शोले’ के 50 साल: गब्बर सिंह के रूप में हिंदी सिनेमा के सबसे यादगार खलनायक का उदय हुआ
संतोष अविनाश
- 15 Aug 2025, 05:08 PM
- Updated: 05:08 PM
नयी दिल्ली, 15 अगस्त (भाषा) सलीम-जावेद ने पचास साल से भी अधिक समय पहले जब फिल्म ‘शोले’ की कल्पना की थी, तो सर्वप्रथम एक खूंखार डाकू के किरदार को गढ़ा गया था। लेकिन उन्होंने शायद ही कभी सोचा होगा कि सितारों से सजी इस फिल्म में एक नए कलाकार द्वारा निभाई गई भूमिका सिनेमा जगत में इतिहास रच देगी।
‘गब्बर सिंह’ का किरदार दर्शकों द्वारा पहले देखे गए किसी भी खलनायक से बिल्कुल अलग था, जिसे अमजद खान ने अपनी पहली प्रमुख भूमिका में बखूबी निभाया था। ‘गब्बर सिंह’ एक क्रूर, अप्रत्याशित और निर्दयी अपराधी था जो बेहिचक हत्या करता था, डर का मखौल उड़ाता था और क्रूरता के जरिये मनोरंजन करता था।
फिल्म इतिहासकार, लेखक और पुराभिलेखविद एस एम एम औसजा ने कहा कि खान की भूमिका शानदार ढंग से लिखी गई थी और अभिनेता ने इसे बड़ी कुशलता से निभाया था।
औसजा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘गब्बर सिंह के किरदार में हास्य-विनोद का भी एक तत्व है। सलीम-जावेद ने इसे बखूबी गढ़ा है। पहली बार मुख्य भूमिका निभा रहे अमजद खान ने असाधारण रूप से अच्छा प्रदर्शन किया। अगर कोई किरदार पीढ़ियों तक इतना यादगार प्रभाव छोड़ता है, तो इसका एक बड़ा श्रेय कलाकार के अभिनय को जाता है।’’
फिल्म में जब गब्बर पहली बार दिखाई देता है (लगभग एक घंटे बाद), तो दर्शक उसे चट्टानों पर चलते हुए और अपने गुर्गों से यह पूछते हुए देखते हैं, ‘‘कितने आदमी थे?’’ वे रामगढ़ से खाली हाथ लौटे थे।
गब्बर एक डरावने बैकग्राउंड संगीत के बीच गुस्से से चिल्लाता है, ‘‘वो दो और तुम तीन... फिर भी वापस आ गए... खाली हाथ... क्या समझ कर आए थे? सरदार बहुत खुश होगा, शाबाशी देगा, क्यूं? धिक्कार है।’’
अगले दो घंटों में, वह रामगढ़ गांव के प्रति क्रूरता बरतता है, बिना किसी पछतावे के हत्या करता है, लोगों का मनोबल तोड़ता है और डर का जीता जागता प्रतीक बनकर उभरता है।
‘पीटीआई-भाषा’ को दिए एक साक्षात्कार में अख्तर ने कहा कि जब उन्होंने कहानी पर काम करना शुरू किया, तो उनके दिमाग में सिर्फ एक डाकू था।
उन्होंने कहा, ‘‘हमने बसंती या राधा के बारे में नहीं सोचा था, हमारे दिमाग में बस एक डाकू था। लेकिन धीरे-धीरे जब कहानी आगे बढ़ी, तो कई किरदार सामने आए और हमें लगा कि यह एक बेहतरीन मल्टी-स्टारर फिल्म हो सकती है।’’
वर्ष 2024 की वृत्तचित्र शृंखला ‘एंग्री यंग मैन’ में (जिसमें महान पटकथा लेखक जोड़ी के फिल्मी करियर को दिखाया गया है) सलीम खान ने बताया कि कैसे गब्बर की भूमिका एक वास्तविक किरदार से प्रेरित था।
उन्होंने वृत्तचित्र शृंखला में कहा, ‘‘मेरे पिता एक आला दर्जे के पुलिस अधिकारी थे। हम गब्बर सिंह नाम के एक डाकू की कहानियां सुनते थे। वह लोगों को मारता था और उनकी नाक भी काट देता था। वास्तविक जीवन से प्रेरित किसी भी चीज का एक अलग प्रभाव होता है।’’
खान ने कहा कि इस किरदार के लिए उनकी पहली पसंद अभिनेता डैनी डेन्जोंगपा थे और इस किरदार के लिए उन्हें साइन भी कर लिया गया था। लेकिन उन्होंने फिल्म छोड़ दी और फिरोज खान की ‘धर्मात्मा’ की शूटिंग के लिए विदेश चले गए क्योंकि ‘शोले’ के निर्माण में लगातार देरी हो रही थी।
बच्चन और संजीव कुमार (जिन्होंने बाद में ठाकुर की भूमिका निभाई), दोनों ही खलनायक की भूमिका निभाना चाहते थे क्योंकि उन्हें इसके संभावित प्रभाव का एहसास था। बच्चन ने 2007 में राम गोपाल वर्मा की बहुचर्चित फिल्म ‘राम गोपाल वर्मा की आग’ के साथ अपनी इच्छा पूरी की।
10 साल पहले एक सार्वजनिक कार्यक्रम में बच्चन ने याद किया कि कैसे उन्होंने पटकथा सुनने के बाद गब्बर का किरदार निभाना चाहा था। उन्होंने कहा था, ‘‘मैंने सलीम-जावेद से कहा कि मैं गब्बर का किरदार निभाना चाहता हूं। और जिसने भी कहानी सुनी, वे सभी यह किरदार निभाना चाहते थे क्योंकि यह एक बेहतरीन किरदार था। लेकिन अंत में रमेश जी ने कहा कि मैं गब्बर का नहीं, जय का किरदार निभाऊंगा।’’
उन्होंने कहा, ‘‘अमजद खान सेट पर आए और सलीम और जावेद साहब ने उनकी सिफारिश की थी। उन्होंने उन्हें मंच पर अभिनय करते देखा था और उनके काम से परिचित थे। मैंने कभी नहीं सोचा था कि वह इस किरदार के साथ न्याय नहीं कर पाएंगे। हालांकि शुरुआती दिनों में कई लोगों को लगा कि उनकी आवाज ठीक नहीं है, लेकिन वह आवाज लोकप्रिय हो गई।’’
अपनी 2000 में प्रकाशित पुस्तक ‘शोले: द मेकिंग ऑफ अ क्लासिक’ में फिल्म पत्रकार अनुपमा चोपड़ा ने लिखा है कि प्रसिद्ध अभिनेता जयंत के छोटे बेटे अमजद खान उस समय संघर्ष कर रहे थे। लेकिन थिएटर में उनकी अच्छी पकड़ थी और यहीं पर वह अख्तर की नजर में आ गये थे।
लेकिन सलीम खान ने ही इस भूमिका के लिए अभिनेता से संपर्क किया क्योंकि वह उनके पिता को जानते थे। बांद्रा बैंडस्टैंड पर उनकी मुलाकात हुई थी।
अनुपमा ने लिखा, ‘‘सलीम ने एक अभिनेता के रूप में अमजद के हुनर के बारे में सुना था और शारीरिक रूप से वह इस भूमिका के लिए उपयुक्त लग रहे थे। उन्होंने अमजद से कहा, ‘मैं तुमसे कोई वादा नहीं कर सकता, लेकिन एक बड़ी फिल्म में एक भूमिका है। मैं तुम्हें निर्देशक के पास ले चलूंगा। अगर आपको यह भूमिका मिल जाए, आपकी कोशिश से या आपकी किस्मत से, तो मैं आपको बता दूंगा, यह सबसे बेहतरीन है।’’
अभिनेता ने दाढ़ी बढ़ाई और अपने दांत काले करवाए, इस किरदार में पूरी तरह डूब गए जिससे उन्हें अपार लोकप्रियता और प्रशंसक मिले। इसके बाद उन्होंने ‘इनकार’, ‘सत्ते पे सत्ता’, ‘हम किसी से कम नहीं’ और ‘नसीब’ जैसी फिल्मों में खलनायक की भूमिकाएं निभाईं।
बच्चों के साथ-साथ वयस्कों के बीच गब्बर की लोकप्रियता की वजह को समझने की कोशिश के तहत अख्तर ने कहा कि शायद इसका कुछ लेना-देना इस बात से था कि वह नैतिकता या डर से कितना आजाद था।
उन्होंने वृत्तचित्र शृंखला में कहा, ‘‘बच्चों ने गब्बर सिंह को क्यों पसंद किया? यहां तक कि बड़े भी उसे पसंद करते थे। एक निर्दयी आदमी जिसकी क्रूरता का कोई भावनात्मक या नैतिक औचित्य नहीं था। वह नैतिकता से पूरी तरह मुक्त है, जो हमारे चारों ओर रस्सी की तरह कसी हुई है। किसी अवचेतन स्तर पर, हम इस बात की सराहना करते हैं कि यह व्यक्ति स्वतंत्र है।’’
अपने आकर्षक और अलंकारिक सवालों, खास तरह की हंसी और शेखी बघारने के अंदाज के साथ गब्बर एक ऐसा खलनायक है जो लोगों की स्मृति में आज भी जिंदा है।
भाषा संतोष