‘शोले’ के 50 साल: ‘वीरू’ को ग्रामीण परोसते थे मछली, बदले में अभिनेता अपनी बिरयानी दे देते थे
संतोष सुरेश
- 15 Aug 2025, 07:05 PM
- Updated: 07:05 PM
मुंबई, 15 अगस्त (भाषा) वर्ष 1975 में स्वतंत्रता दिवस पर रिलीज होने से बहुत पहले ही, शोले के कलाकारों और क्रू ने नवी मुंबई के कई गांवों के निवासियों को मंत्रमुग्ध कर दिया था। इन गांवों ने अपने ग्रामीण परिवेश के बूते फिल्म निर्माताओं को आकर्षित किया था।
आधी सदी बाद पनवेल-उरण मार्ग के किनारे बसे गांवों के निवासी अब भी फिल्म की शूटिंग की यादों को संजोए हुए हैं, भले ही शहरीकरण ने उन ‘लाइट, कैमरा, एक्शन’ से जुड़े स्थलों का चेहरा बदल दिया है।
इस क्षेत्र के प्रमुख समुदाय- अग्री और कोली- आजीविका के लिए धान की खेती और मछली पकड़ने पर निर्भर थे, लेकिन 1972 के आसपास इस क्षेत्र में शुरू हुई शूटिंग के दौरान वे हर दिन सेट पर उमड़ पड़ते थे।
संजय शेलार (62) ने याद करते हुए कहा, ‘‘वीरू का किरदार निभाने वाले धर्मेंद्र कभी-कभी स्थानीय लोगों के साथ घुलमिल जाते थे और अग्री लोगों द्वारा परोसी जाने वाली ‘जावला सुकट’ (सूखी मछली) और ‘तंदुल भाकरी’ (चावल के आटे की रोटी) का आनंद लेते थे। धर्मेंद्र अपनी बिरयानी या अपने लिए खासतौर पर बनाए गए खाने का स्थानीय लोगों के साथ आदान-प्रदान करते थे।’’
सिर्फ सुपरस्टार ही नहीं, क्रू के सदस्य भी स्थानीय लोगों के साथ खूब घुलते-मिलते थे। उन्होंने बताया कि वे अपना पेय पदार्थ गांव वालों को देते थे।
शेलार ने बताया कि रमेश सिप्पी की इस उत्कृष्ट कृति के कई दृश्य पनवेल-उरण मार्ग पर फिल्माए गए थे। हालांकि, शोले का अधिकतर हिस्सा बेंगलुरु से लगभग 50 किलोमीटर दूर एक पथरीली पहाड़ी शृंखला में फिल्माया गया था।
अभिनेता धर्मेंद्र, संजीव कुमार, अमिताभ बच्चन, जया बच्चन और हेमा मालिनी सहित फिल्म के क्रू पुराने पनवेल के प्रवीण होटल में रुकते थे। शेलार ने बताया कि होटल के पीछे घोड़ों को रखने के लिए जगह बनाई गई थी।
उन्होंने बताया कि जिस दृश्य में ‘बसंती’ (हेमा मालिनी) ‘जय’ (अमिताभ बच्चन) और ‘वीरू’ को रेलवे स्टेशन से रामगढ़ ले जाती हैं, उसे पनवेल रेलवे स्टेशन के पास फिल्माया गया था।
वीरू द्वारा पिस्तौल से आमों पर निशाना साधने वाला दृश्य चिंचपाड़ा के आम के बाग में फिल्माया गया था। इस दृश्य में वीरू बसंती को निशानेबाजी सिखाने के बहाने उसके साथ छेड़खानी करने की कोशिश करता है, जिससे एक पेड़ के नीचे आराम फरमा रहा ‘जय’ मजाक में कहता है, ‘‘लग गया निशाना।’’ आज उस आम के बाग की जगह एक वाहन गैराज ने ले ली है।
शेलार ने बताया कि वह ऐतिहासिक दृश्य, जिसमें गब्बर सिंह (अमजद खान) गुट के डकैत चलती ट्रेन को लूटने की कोशिश करते हैं, घोड़े पर सवार होकर उसका पीछा करते हैं, गोलियां चलाते हैं और जय एवं वीरू से लड़ते हैं, वह पूरी तरह से पनवेल-उरण रेलवे लाइन पर ‘बंबावी पाड़ा’ के पास फिल्माया गया था, जिसे आमतौर पर बॉम्बे पाड़ा के नाम से जाना जाता है।
बंबावी गांव के 82-वर्षीय निवासी जनार्दन नामा पाटिल को इस इलाके में शोले की शूटिंग अच्छी तरह याद है। उन्होंने उस दृश्य को याद किया, जिसमें घोड़े ट्रेन का पीछा करते हैं, वीरू डकैतों से लड़ता है, और जलता हुआ कोयला एक वैगन पर फेंका जाता है, जिससे आग लग जाती है।
पाटिल ने मुस्कुराते हुए कहा, ‘‘यह तथ्य कि लोग 50 साल बाद भी शूटिंग स्थल पर जाते हैं, शोले की असली सफलता है।’’ उन्होंने आगे कहा कि यह फिल्म उनके गांवों में चर्चा का एक प्रमुख विषय है।
भाषा संतोष