सिद्धरमैया ने स्वतंत्रता दिवस संबोधन के दौरान आरएसएस की तारीफ को लेकर प्रधानमंत्री की आलोचना की
संतोष माधव
- 15 Aug 2025, 10:20 PM
- Updated: 10:20 PM
बेंगलुरु, 15 अगस्त (भाषा) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) को ‘दुनिया का सबसे बड़ा एनजीओ’ बताने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर निशाना साधते हुए कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया ने शुक्रवार को उन पर 140 करोड़ भारतीयों के नेता के बजाय ‘लाल किले की प्राचीर से आरएसएस प्रचारक के रूप में संबोधित’ करने का आरोप लगाया।
सिद्धरमैया ने दावा किया कि आरएसएस ‘दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक लाभ अर्जित करने वाला, नफरत फैलाने वाला और सबसे विभाजनकारी संगठन है।
उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस एक अपंजीकृत और कर ना देने वाला संगठन है जो भारतीयों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा करने की साजिश रचता है।
इससे पहले मोदी ने आरएसएस के 100 साल पूरे होने को ‘दुनिया के सबसे बड़े एनजीओ’ की ‘बेहद गौरवशाली और शानदार’ यात्रा बताया और राष्ट्र के प्रति उनकी सेवा के लिए इसके स्वयंसेवकों को सलाम किया। 79वें स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि देश का निर्माण केवल सरकार द्वारा नहीं, बल्कि समाज के सभी लोगों के प्रयासों से होता है।
मोदी की टिप्पणियों का हवाला देते हुए सिद्धरमैया ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में दावा किया, ‘‘स्पष्ट कर दें: आरएसएस कोई गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) नहीं है। यह एक अपंजीकृत, कर ना देने वाला संगठन है जो राजनीतिक लाभ और नफरत पर फलता-फूलता है और भारतीयों को बांटने की साज़िश रचता है।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि लाल किला ‘भाजपा की रैली का मंच नहीं’ बल्कि एक ऐतिहासिक महत्व का स्थान है जहां से प्रधानमंत्री को सभी नागरिकों के लिए बोलना चाहिए, न कि अपनी पार्टी के मूल संगठन का प्रचार करना चाहिए।
सिद्धरमैया ने आरोप लगाया, ‘‘आरएसएस की प्रशंसा करके प्रधानमंत्री मोदी ने एक आरएसएस प्रचारक के रूप में बात की, न कि 140 करोड़ लोगों के नेता के रूप में।’’ उन्होंने इस टिप्पणी को ‘आरएसएस को खुश करने की एक हताश चाल’ बताया, जब मोदी ‘राजनीतिक रूप से कमजोर और उसके समर्थन पर निर्भर’ हैं।
मुख्यमंत्री ने दावा किया कि मोदी ने एक ऐसे संगठन का समर्थन करके पूरे देश की ओर से बोलने का ‘नैतिक अधिकार खो दिया है’ जिसकी ‘स्वतंत्रता संग्राम में कोई भूमिका नहीं थी, जिसने तिरंगे का विरोध किया और एक समान एवं समावेशी भारत के विचार के विरुद्ध काम किया।’
उन्होंने आरएसएस को एक ऐसा संगठन बताया जिसकी विचारधारा ने महात्मा गांधी की हत्या को प्रेरित किया और जिस पर ‘नफरत फैलाने’ के लिए तीन बार प्रतिबंध लगाया गया था। सिद्धरमैया ने आरएसएस पर हिंदू धर्म (विविधता और सहिष्णुता का पर्याय) को एक संकीर्ण दृष्टिकोण में बदलने का आरोप लगाया, जो इससे बाहर के लोगों को दोयम दर्जे का नागरिक मानकर व्यवहार करता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि आरएसएस ने ‘दशकों से सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा दिया है और उसे हवा दी है’ और ‘अपने नेटवर्क के जरिए युवाओं के दिमाग को भ्रष्ट किया है।’
उन्होंने पूछा कि क्या प्रधानमंत्री यह नहीं देखते कि इसका ‘वर्चस्ववादी दृष्टिकोण समानता को नकारता है, सद्भाव को विषाक्त करता है और संविधान का खंडन करता है।’’ उन्होंने कहा, ‘‘स्वतंत्रता दिवस उन लोगों को सम्मानित करने का समय है जिन्होंने भारत को एकजुट किया।’’
उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी ने एक ऐसी ताकत का महिमामंडन किया जो ध्रुवीकरण पर फलती-फूलती है, अंग्रेजों के साथ मिलीभगत करती है और उनके अधिनायकवाद को प्रतिबिंबित करती है।
भाषा संतोष