केरल के राज्यपाल ने कुलपति चयन प्रक्रिया से मुख्यमंत्री को हटाने का अनुरोध किया
राजकुमार नरेश
- 02 Sep 2025, 06:12 PM
- Updated: 06:12 PM
नई दिल्ली, दो सितंबर (भाषा) केरल के राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय का रुख कर उससे एपीजे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय के कुलपतियों की चयन प्रक्रिया से मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन को बाहर रखने का अनुरोध किया।
राज्यपाल ने कहा कि दोनों विश्वविद्यालयों में से किसी (उनसे संबंधित अधिनियम) ने भी चयन प्रक्रिया में मुख्यमंत्री की किसी भी भूमिका की कोई परिकल्पना नहीं कर रखी है। राज्यपाल राज्य संचालित दोनों विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं।
याचिका में दोनों विश्वविद्यालयों के कुलपतियों की नियुक्ति की पूरी चयन प्रक्रिया में मुख्यमंत्री की भूमिका का विस्तार से उल्लेख किया गया और ‘पश्चिम बंगाल राज्य बनाम डॉ. सनत कुमार घोष एवं अन्य’ मामले का हवाला दिया गया, जिसके निर्देश वर्तमान मामले में लागू किए गए थे।
याचिका में कहा गया कि कलकत्ता विश्वविद्यालय अधिनियम, 1979 की धारा 8 (1) के अनुसार, चयन प्रक्रिया में राज्य के मंत्री की भूमिका होगी।
राज्यपाल ने कहा, ‘‘ चूंकि मंत्री पश्चिम बंगाल में कुलपतियों की नियुक्ति की चयन प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं, इसलिए इस अदालत ने मुख्यमंत्री को भी उक्त प्रक्रिया का हिस्सा बना दिया।’’
याचिका में लेकिन यह बात उठायी गयी है कि संबंधित विश्वविद्यालय अधिनियमों - ए पी जे अब्दुल कलाम प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय अधिनियम और केरल डिजिटल विश्वविद्यालय अधिनियम - में कुलपतियों की नियुक्ति के लिए सिफारिश हेतु चयन प्रक्रिया के भाग के रूप में उच्च शिक्षा मंत्री या राज्य सरकार को शामिल करने का कोई प्रावधान नहीं था।
याचिका में कहा गया है, ‘‘इसलिए विनम्र निवेदन है कि कुलपतियों के चयन के लिए मुख्यमंत्री की भूमिका संबंधी जो बातें 18 अगस्त के आदेश में कही गयी हैं, उसमें इस अदालत द्वारा संशोधन वांछनीय है।’’
शीर्ष अदालत ने 18 अगस्त को उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सुधांशु धूलिया को दोनों विश्वविद्यालयों में कुलपतियों के चयन के लिए समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया था और कहा था कि उनके (कुलपतियों के) चयन में मुख्यमंत्री की भूमिका है।
हालांकि, याचिका में तर्क दिया गया कि चयन प्रक्रिया में मुख्यमंत्री के रहने से इस सिद्धांत का उल्लंघन होगा कि ‘किसी व्यक्ति को स्वयं अपने मामले में निर्णय नहीं करना चाहिए’, जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) विनियमों में निहित मानदंड है।
आवेदन में कहा गया है, ‘‘मुख्यमंत्री राज्य के कार्यकारी प्रमुख होने के नाते सरकार द्वारा प्रबंधित और विश्वविद्यालय से संबद्ध कई सरकारी कॉलेजों से जुड़े हैं। इसलिए, यूजीसी नियमों के अनुसार, कुलपतियों की नियुक्ति में उनकी कोई भूमिका नहीं हो सकती।’’
राज्यपाल ने कहा कि वह कुलपति नियुक्तियों को अंतिम रूप देने के लिए गठित खोज-एवं-चयन समिति के अध्यक्ष के रूप में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश सुधांशु धूलिया की नियुक्ति के संबंध में 18 अगस्त के आदेश में संशोधन की अपील नहीं कर रहे हैं और न्यायाधीश द्वारा समिति का नेतृत्व करने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है।
हालांकि, याचिका में कहा गया है कि राज्यपाल राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामांकित व्यक्तियों की भागीदारी के विरोध में हैं।
राज्यपाल ने 18 अगस्त के आदेश में संशोधन की मांग करते हुए कहा कि, ‘‘चयनित उम्मीदवारों के नामों का पैनल खोज-एवं-चयन समिति द्वारा कुलाधिपति को प्रस्तुत किया जाए, जिसमें नामों को उनके वर्णानुक्रम में व्यवस्थित किया जाए और कुलपति का चयन करने का विशेषाधिकार कुलाधिपति के पास हो।’’
भाषा
राजकुमार