न्यायपालिका ने मानवीय गरिमा को मूल अधिकार और संविधान की आत्मा माना: प्रधान न्यायाधीश गवई
आशीष सुरेश
- 03 Sep 2025, 10:35 PM
- Updated: 10:35 PM
नयी दिल्ली, तीन सितंबर (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने बुधवार को कहा कि न्यायपालिका ने हमेशा मानवीय गरिमा को संविधान की आत्मा के रूप में महत्व दिया है और इसे एक मूलभूत अधिकार के रूप में मान्यता दी है।
प्रधान न्यायाधीश ने यहां ग्यारहवें डॉ. एलएम सिंघवी स्मृति व्याख्यान में कहा कि मानवीय गरिमा एक व्यापक सिद्धांत है, जो संविधान की मूल भावना और दर्शन को रेखांकित करता है और प्रस्तावना में व्यक्त मूल मूल्यों- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय को आकार देता है।
न्यायमूर्ति गवई 'मानव गरिमा संविधान की आत्मा: 21वीं सदी में न्यायिक चिंतन' विषय पर बोल रहे थे।
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की उपस्थिति में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों, वकीलों, शिक्षाविदों और सांसदों की एक सभा को संबोधित करते हुए, प्रधान न्यायाधीश ने कहा, ‘‘मैं कहूंगा कि न्यायपालिका ने संविधान की आत्मा के रूप में मानवीय गरिमा पर जोर दिया है। इसने मानवीय गरिमा को एक व्यापक सिद्धांत माना है, जो संविधान की मूल भावना और दर्शन को रेखांकित करता है, जो प्रस्तावना में व्यक्त मूल मूल्यों- स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व और न्याय को आकार देता है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘विभिन्न निर्णयों में उच्चतम न्यायालय ने लगातार यह कहा है कि मानव गरिमा एक मौलिक अधिकार और एक मानक दृष्टिकोण है, जिसके माध्यम से सभी मौलिक अधिकारों को समझा जाना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि व्यवहार में इसका अर्थ यह है कि गरिमा एक मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में कार्य करती है, जो अधिकारों को जोड़ती है, जिससे न्यायपालिका संवैधानिक न्यायनिर्णयन के लिए सुसंगत और समग्र ढांचा विकसित कर सकती है।
उन्होंने डॉ. एलएम सिंघवी के योगदान की सराहना करते हुए कहा, ‘‘इसका इस्तेमाल न केवल नागरिकों के सम्मानजनक अस्तित्व की रक्षा के लिए किया गया है, बल्कि अधिकारों का विस्तार, व्याख्या और सामंजस्य स्थापित करने के लिए एक संवैधानिक उपकरण के रूप में भी किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि संविधान द्वारा प्रदत्त सुरक्षा सार्थक और व्यापक हो।’’
सीजेआई गवई ने सह-मेजबान ओपी जिंदल विश्वविद्यालय और दिवंगत डॉ. एलएम सिंघवी के पुत्र वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी को स्मृति व्याख्यान देने का अवसर देने के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि कुल मिलाकर, उच्चतम न्यायालय मानव गरिमा न्यायशास्त्र को विकसित करने में सुसंगत रहा है।
भाषा आशीष