दिल्ली की अदालत ने अदाणी एंटरप्राइजेज के खिलाफ लेख हटाने के आदेश को रद्द किया
वैभव नरेश
- 19 Sep 2025, 03:25 PM
- Updated: 03:25 PM
नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) दिल्ली की एक अदालत ने चार पत्रकारों को अदाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड (एईएल) के खिलाफ कथित मानहानिकारक लेखों को हटाने के लिए कहने वाले आदेश को यह कहते हुए रद्द कर दिया कि एक अंतरिम एकपक्षीय आदेश द्वारा लेखों को हटाने का प्रभाव ‘व्यापक’ था और इसका ‘बिना सुनवाई के ही मुकदमे का फैसला सुनाने जैसा प्रभाव’ था।
गत 18 सितंबर को जारी और शुक्रवार सुबह उपलब्ध कराए गए अपने आदेश में अदालत ने कहा, ‘‘मैं पाता हूं कि यह मामला छह सितंबर के आदेश पर रोक लगाने के लिए उपयुक्त है, क्योंकि अपीलकर्ताओं को सुने बिना ही अधीनस्थ अदालत द्वारा व्यापक निर्देश पारित कर दिए गए हैं।’’
एईएल की मानहानि शिकायत पर कार्रवाई करते हुए, एक दीवानी न्यायाधीश ने चार पत्रकारों सहित 10 प्रतिवादियों को निर्देश दिया कि वे निर्धारित अवधि के भीतर वेबसाइटों सहित विभिन्न मंचों पर पहले से प्रकाशित विवादास्पद सामग्री, जैसे लेख और सोशल मीडिया पोस्ट को हटा लें।
जिला न्यायाधीश आशीष अग्रवाल ने दीवानी न्यायाधीश के निर्णय को दी गई चुनौती संबंधी तर्कों को सुना और कहा कि जब तक अपीलकर्ता के पक्ष को नहीं सुना जाता, दीवानी अदालत इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंच सकती कि पत्रकारों ने ‘असत्यापित, गलत और गैरजिम्मेदाराना बयान’ दिए।
जिला अदालत ने कहा कि दीवानी अदालत का आदेश ‘टिकाऊ नहीं’ है और उन्होंने अपीलकर्ताओं और एईएल का पक्ष सुनने के बाद नया आदेश पारित करने को कहा।
न्यायाधीश पत्रकार रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयासकांत दास और आयुष जोशी द्वारा दीवानी अदालत के छह सितंबर के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें उन्हें एईएल के खिलाफ कथित असत्यापित और मानहानिकारक सामग्री प्रकाशित या प्रसारित करने से रोक दिया गया था। वकील वृंदा ग्रोवर उनकी ओर से पेश हुईं।
अदालत ने कहा, ‘‘जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती और कम से कम प्रथम दृष्टया यह निर्धारित नहीं हो जाता कि लेख गलत, मानहानिकारक और असत्यापित हैं, तब तक इन लेखों को सार्वजनिक डोमेन से हटाया नहीं जा सकता, नहीं तो ऐसा करने से संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) का उल्लंघन होगा और यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गंभीर हनन होगा।’’
अदालत ने कहा कि दीवानी न्यायाधीश के आदेश के माध्यम से एईएल को मुकदमे के दायरे में उन लेखों को लाकर इसका दायरा बढ़ाने की स्वतंत्रता दी गई जिन्हें भविष्य में अन्य लोगों द्वारा लिखा जा सकता था, जबकि उनके मानहानिकारक होने का अभी तक पता भी नहीं चला है।
इसमें कहा गया है, ‘‘वादी (एईएल) को शिकायत में संशोधन करने के लिए नहीं कहा गया है ताकि भविष्य में लिखे जा सकने वाले उक्त लेखों को चुनौती दी जा सके। वादी को यह अधिकार दिया गया है कि वह अपनी इस राय के आधार पर उन आलेखों को सीधे हटवा सकता है कि वे प्रतिकूल हैं।’’
हालांकि, अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि जब उन लेखों के लेखक ने किसी भी निर्देश की अवहेलना की और उन्हें अवमानना के लिए दोषी ठहराया गया, तो संभवतः न्यायिक निर्धारण हो सकता है कि क्या लेख वास्तव में मानहानिकारक था।
मामले में परंजॉय गुहा ठाकुरता, रवि नायर, अबीर दासगुप्ता, अयासकांत दास, आयुष जोशी, बॉब ब्राउन फाउंडेशन, ड्रीमस्केप नेटवर्क इंटरनेशनल प्राइवेट लिमिटेड, गेटअप लिमिटेड, डोमेन डायरेक्टर्स प्राइवेट लिमिटेड प्रतिवादी हैं।
भाषा वैभव