दिल्ली पुलिस ने उच्चतम न्यायालय में उमर खालिद, शरजील इमाम की जमानत याचिकाओं का विरोध किया
देवेंद्र माधव
- 30 Oct 2025, 06:45 PM
- Updated: 06:45 PM
नयी दिल्ली, 30 अक्टूबर (भाषा) दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में दिल्ली में हुए दंगों के कथित षडयंत्र से संबंधित यूएपीए मामले में कार्यकर्ताओं उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का बृहस्पतिवार को उच्चतम न्यायालय में विरोध किया।
पुलिस ने कहा कि आरोपियों ने ‘‘शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन’’ की आड़ में ‘‘सत्ता परिवर्तन अभियान’’ (रिजीम चेंज ऑपरेशन) के जरिए देश की संप्रभुता और अखंडता पर हमला करने की साजिश रची।
दिल्ली पुलिस ने बृहस्पतिवार को दायर एक हलफनामे में दलील दी कि कथित अपराधों में देश को अस्थिर करने का जानबूझकर किया गया प्रयास शामिल है, जिसके लिए ‘‘जमानत नहीं बल्कि जेल’’ उचित है।
पुलिस ने कहा कि उसने आरोपियों के खिलाफ प्रत्यक्ष, दस्तावेजी और तकनीकी साक्ष्य एकत्र किए हैं, जो सांप्रदायिक आधार पर देशव्यापी दंगों को अंजाम देने में उनकी गहरी और संगठित संलिप्तता को दर्शाते हैं।
खालिद, इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं पर शुक्रवार को न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ के समक्ष सुनवाई होनी है।
खालिद, इमाम और बाकी आरोपियों पर फरवरी 2020 के दंगों के कथित "मास्टरमाइंड" होने के आरोप में गैरकानूनी गतिविधिया (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से ज्यादा घायल हुए थे।
नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और राष्ट्रीय नागरिक पंजी के विरोध में हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी थी।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता द्वारा रची गई और क्रियान्वित की गई साजिश का उद्देश्य सांप्रदायिक सद्भाव को नष्ट करके देश की संप्रभुता और अखंडता पर प्रहार करना था; भीड़ को न केवल सार्वजनिक व्यवस्था को भंग करने के लिए उकसाना था, बल्कि उन्हें सशस्त्र विद्रोह के लिए भड़काना भी था।’’
दिल्ली पुलिस ने कहा कि आरोपियों ने अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के दौरे के दौरान सांप्रदायिक तनाव भड़काने की साजिश रची ताकि ‘‘अंतरराष्ट्रीय मीडिया’’ का ध्यान आकर्षित किया जा सके और सीएए के मुद्दे को वैश्विक बनाया जा सके।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘दस्तावेजों और रिकॉर्ड में मौजूद सामग्री निस्संदेह यह साबित करती हैं कि यह साजिश पूर्व-नियोजित थी और इसे उसी समय अंजाम देने का षडयंत्र किया गया था जब अमेरिका के राष्ट्रपति भारत का आधिकारिक दौरा करने वाले थे।’’
इसमें कहा गया है, ‘‘ऐसा इसलिए किया गया ताकि 'अंतरराष्ट्रीय मीडिया’ का ध्यान आकर्षित किया जा सके और सीएए के मुद्दे को भारत में मुस्लिम समुदाय के खिलाफ कार्रवाई के रूप में चित्रित करके इसे वैश्विक मुद्दा बनाया जा सके।’’
दिल्ली पुलिस ने कहा कि रिकॉर्ड पर मौजूद साक्ष्यों से पता चलता है कि इस साजिश को पूरे भारत में दोहराने और क्रियान्वित करने की कोशिश की गई थी और जो अपराध भारत की अखंडता की जड़ों पर प्रहार करते हैं, उनमें ‘‘जमानत नहीं बल्कि जेल’’ का नियम है।
इसमें कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप प्रथम दृष्टया सत्य हैं। वर्तमान मामले में, विशेष रूप से अपराध की गंभीरता को देखते हुए, केवल देरी के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती, जिसके लिए याचिकाकर्ता स्वयं जिम्मेदार हैं।’’
दिल्ली पुलिस ने उन पर जानबूझकर मुकदमे में देरी करने का भी आरोप लगाया।
इसने कहा कि याचिकाकर्ताओं ने अपनी दुर्भावनापूर्ण चाल के जरिये मामले में जांच और मुकदमे में देरी करने और उसे पटरी से उतारने के लिए हर संभव प्रयास किया है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मुकदमा शुरू होने में जो देरी हुई है, वह पूरी तरह से याचिकाकर्ताओं की वजह से है। माननीय उच्च न्यायालय और विशेष अदालत, दोनों ने ही न्यायिक निष्कर्ष दिए हैं, जिनमें विस्तार से बताया गया है कि कैसे याचिकाकर्ताओं ने मिलकर इस मामले में आरोप तय नहीं होने दिए।’’
दिल्ली पुलिस ने कहा कि आरोपियों की यह "व्यापक दलील" कि मामले में 900 से अधिक गवाह हैं और इसलिए वर्तमान मामले में सुनवाई के पूरा होने की कोई संभावना नहीं है, प्रथम दृष्टया भ्रामक है।
हलफनामे में कहा गया है, ‘‘यह कहा गया है कि आरोप-पत्र में उल्लेखित कई गवाह ऐसे हैं जिनके बयान पहले से ही रिकॉर्ड पर हैं। यह भी बताया गया है कि जैसे ही सुनवाई शुरू होगी, इन गवाहों की संख्या को आवश्यकतानुसार घटा दिया जायेगा।’’
उच्चतम न्यायालय ने 22 सितंबर को दिल्ली पुलिस को नोटिस जारी कर जवाब मांगा था।
कार्यकर्ताओं ने दो सितंबर को पारित दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है।
उच्च न्यायालय ने खालिद और इमाम समेत नौ लोगों को जमानत देने से इनकार करते हुए कहा था कि विरोध प्रदर्शनों की आड़ में "षड्यंत्रकारी" तरीके से हिंसा की अनुमति नहीं दी जा सकती।
खालिद और इमाम के अलावा, जिन लोगों की जमानत खारिज की गई थी उनमें फातिमा, हैदर, मोहम्मद सलीम खान, शिफा उर रहमान, अतहर खान, अब्दुल खालिद सैफी और शादाब अहमद शामिल हैं।
एक अन्य आरोपी तस्लीम अहमद की जमानत याचिका दो सितंबर को उच्च न्यायालय की एक अन्य पीठ ने खारिज कर दी थी।
भाषा
देवेंद्र