ठाणे की अदालत ने धर्म परिवर्तन के आरोप में गिरफ्तार अमेरिकी नागरिक और दो भारतीयों को जमानत दी
राखी पवनेश
- 31 Oct 2025, 10:27 PM
- Updated: 10:27 PM
ठाणे, 31 अक्टूबर (भाषा) महाराष्ट्र के ठाणे जिले की एक अदालत ने एक अमेरिकी नागरिक और दो भारतीय सह-आरोपियों को जमानत दे दी है, जिन्हें इस महीने की शुरुआत में कथित धर्म परिवर्तन करवाने के प्रयास के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।
अदालत ने कहा कि आरोपियों को जेल में रखने से कोई "सार्थक उद्देश्य" पूरा नहीं होगा।
भिवंडी शहर के अतिरिक्त सत्र न्यायालय के न्यायाधीश एन एल काले ने आरोपियों को जमानत दी। आरोपियों पर महाराष्ट्र के अंधविश्वास निवारण अधिनियम के उल्लंघन का भी मामला था। अदालत ने कानूनी सिद्धांत पर अमल करते हुए कहा कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद''।
अदालत ने 29 अक्टूबर को यह फैसला सुनाया, जिसकी प्रति 31 अक्टूबर को उपलब्ध कराई गई।
अदालत द्वारा जारी आदेश की प्रति के अनुसार, अमेरिकी नागरिक जेम्स लियोनार्ड वॉटसन (58) और उनके सह-आरोपी साईंनाथ गणपति सर्पे (42) तथा मनोज गोविंद कोल्हा (35), दोनों स्थानीय निवासी, को प्रत्येक को 30,000 रुपये के जमानती बांड पर रिहा करने को कहा।
भिवंडी तालुका थाने में दर्ज इस मामले में तीनों आरोपियों पर भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), महाराष्ट्र मानव बलि तथा अन्य अमानवीय, अनिष्ट एवं अघोरी प्रथाएं और काला जादू निवारण अधिनियम, 2013 तथा विदेशी अधिनियम, 1946 (जो वॉटसन पर लागू किया गया) की धाराओं के तहत आरोप लगाए गए थे।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया था कि तीन अक्टूबर को ठाणे जिले के भुइशेत गांव में एक प्रार्थना सभा के दौरान आरोपित सक्रिय रूप से ईसाई धर्म का प्रचार कर रहे थे और हिंदू समुदाय के लोगों को धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य करने का प्रयास कर रहे थे।
अभियोजन पक्ष ने दावा किया कि आरोपित वहां उपस्थित लोगों को 'वाइन' दे रहे थे और यह आश्वासन दे रहे थे कि इससे उनकी समस्याएं दूर होंगी और बीमारियां ठीक हो जाएंगी।
प्राथमिकी में यह भी आरोप लगाया गया कि तीनों ने नाबालिग बच्चों को निशाना बनाया और "ईसाई धर्म के प्रचार के लिए नाबालिग लड़कियों को जबरन 'वाइन' पिलाने का प्रयास किया"।
वॉटसन पर यह आरोप लगाया गया कि उन्होंने अपने बिजनेस वीजा की शर्तों का उल्लंघन करते हुए धार्मिक प्रचार में हिस्सा लिया।
जमानत मंजूर करते हुए न्यायाधीश के.के. काले ने कहा कि उक्त आरोपों के लिए अधिकतम सजा सात वर्ष से अधिक नहीं है।
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि प्राथमिकी में दर्ज सामग्री के अलावा ऐसा कोई ठोस प्रमाण वर्तमान में उपलब्ध नहीं है जिससे यह साबित हो कि आवेदक (वॉटसन) ने नाबालिग लड़कियों को धर्म परिवर्तन के उद्देश्य से जबरन वाइन पिलाई थी।
अदालत ने कहा, “रिकॉर्ड से स्पष्ट है कि आवेदक के संबंध में जांच का अधिकांश भाग पूरा हो चुका है। अभियोजन पक्ष ने आरोप लगाया है कि आवेदक ने विदेशी अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन किया है लेकिन रिकॉर्ड पर प्रस्तुत दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि आवेदक ने वैध पासपोर्ट और वीजा के साथ भारत में प्रवेश किया था। चूंकि आरोपित अपराधों के लिए निर्धारित सजा सात वर्ष से अधिक नहीं है, इसलिए ये निष्कर्ष लागू होते हैं।”
अदालत ने कहा, “आरोपित अपराधों और उनके लिए निर्धारित सजा को देखते हुए, जांच पूरी होने तक आवेदक (विदेशी नागरिक) को जेल में रखना न तो कानून सम्मत होगा और न ही उचित होगा।”
अदालत ने कहा, “कई निर्णयों में माननीय उच्चतम न्यायालय तथा मुंबई उच्च न्यायालय ने यह दिशा-निर्देश दिए हैं कि "जमानत नियम है और जेल अपवाद"। आरोपित अपराधों के लिए निर्धारित सजा को देखते हुए यह सिद्धांत वर्तमान आवेदक पर भी लागू होता है। आवेदकों (तीनों आरोपितों) को जेल में रखने से कोई सार्थक उद्देश्य पूरा नहीं होगा।”
जमानत की शर्तों के तहत न्यायाधीश ने तीनों आरोपियों को निर्देश दिया कि वे संबंधित पुलिस थाने (जहां प्राथमिकी दर्ज की गई है) में हर बुधवार को एक महीने तक या आरोपपत्र दाखिल होने तक अपनी उपस्थिति दर्ज कराएं और अभियोजन साक्ष्यों से छेड़छाड़ न करें।
वॉटसन को एक अतिरिक्त शर्त के तहत यह निर्देश दिया गया कि वह अपने वीजा की अवधि पूरी होने या मामले के निपटारे तक अदालत से पूर्व अनुमति लिए बिना विदेश यात्रा नहीं करेंगे।
भाषा राखी