महाराष्ट्र सरकार समुद्र से प्राप्त भूमि के ‘वास्तविक लाभार्थियों’ का ब्योरा प्रस्तुत करे: न्यायालय
संतोष माधव
- 03 Nov 2025, 10:31 PM
- Updated: 10:31 PM
नयी दिल्ली, तीन नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को मुंबई में बांद्रा-वर्ली ‘सी-लिंक’ के निर्माण के लिए समुद्र के एक हिस्से को पाटकर प्राप्त की गई भूमि के ‘वास्तविक लाभार्थियों’ का ब्योरा मांगा। अधिकारियों को व्यावसायिक विकास का कार्य करने से रोकने का अनुरोध करने वाली एक याचिका पर संज्ञान लेते हुए न्यायालय ने यह जानकारी मांगी।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत, न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, ‘‘हम जानना चाहते हैं कि असली लाभार्थी कौन हैं। इसके पीछे असली खिलाड़ी कौन हैं? हम जानना चाहते हैं।’’
मेहता ने कहा कि केंद्र ने परियोजना के लिए पर्यावरणीय मंजूरी दे दी है और इसमें कोई अनियमितता नहीं हुई है।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि बंबई उच्च न्यायालय ने 26 अगस्त को याचिका खारिज कर दी थी और कहा था कि पुनः प्राप्त भूमि पर आलीशान घर बनाए जा रहे हैं।
इस मामले में वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा कि संबंधित भूमि तटीय विनियमन क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती है और याचिकाकर्ता ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं जताई है।
उन्होंने कहा, ‘‘यदि वह भूमि तटीय विनियमन क्षेत्र (सीआरजेड) क्षेत्र के अंतर्गत नहीं आती है, तो पुनः प्राप्त भूमि के विकास में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम कैसे लागू हो सकता है?’’
शंकरनारायणन ने कहा कि रोहतगी उनकी दलीलों से पहले ही अपनी बात रख रहे हैं, जबकि उन्होंने अभी तक अपने विस्तृत तर्क प्रस्तुत भी नहीं किए हैं।
उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ सामाजिक कार्यकर्ता जोरू दरायुस भथेना द्वारा दायर अपील में कहा गया है कि 10 जून, 1993 को महाराष्ट्र सरकार ने बांद्रा वर्ली ‘सी लिंक’ के निर्माण के लिए भूमि पुनः प्राप्त करने की अनुमति लेने के लिए केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (एमओईएफ) में आवेदन किया था।
इसमें कहा गया है कि उस समय, 1991 की सीआरजेड अधिसूचना लागू थी, जो उच्च ज्वार रेखा और निम्न ज्वार रेखा के बीच भूमि के पुनः प्राप्त करने की अनुमति नहीं देती थी, लेकिन 1999 में बाद के संशोधन करके सीआरजेड 1991 के तहत पुलों और सी-लिंक के निर्माण के लिए भूमि पुनः प्राप्त करने की अनुमति दे दी गई।
याचिका में कहा गया है कि अंततः 26 अप्रैल, 2000 को, एमओईएफ ने अतिरिक्त क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने की अनुमति दी, लेकिन इसने विशेष रूप से इस शर्त को संशोधित करते हुए कहा कि पुनः प्राप्त भूमि के किसी भी हिस्से का उपयोग आवासीय या वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए।
इसमें कहा गया है, ‘‘इस प्रकार, यह देखा जा सकता है कि भूमि के एक बड़े क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने की अनुमति देते समय, पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने विशेष रूप से एक शर्त जोड़ी कि पुनः प्राप्त भूमि के किसी भी हिस्से का उपयोग आवासीय/व्यावसायिक उद्देश्यों के लिए नहीं किया जाना चाहिए। यह सीआरजेड अधिसूचना 1991 के प्रावधानों का उल्लंघन न करने की आवश्यकता से बिल्कुल अलग और स्वतंत्र है।’’
अपील में कहा गया है, ‘‘याचिकाकर्ता का तर्क है कि यह शर्त पुनः प्राप्त की जा रही भूमि के बड़े क्षेत्र को ध्यान में रखते हुए और प्रतिवादियों को बाद में पुनः प्राप्त भूमि का अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग करने से रोकने के लिए लगाई गई थी।’’
याचिकाकर्ता ने कहा कि अधिकारियों ने पुनः प्राप्त भूमि का व्यावसायिक उपयोग न करने और उसे हरित क्षेत्र के रूप में विकसित करने का स्पष्ट आश्वासन दिया था।
उन्होंने कहा कि 10 जनवरी, 2024 को महाराष्ट्र राज्य सड़क विकास निगम (एमएसआरडीसी) ने ‘बांद्रा में एमएसआरडीसी भूमि के विकास के लिए एक निर्माण एवं विकास एजेंसी के रूप में विकासकर्ता के चयन’ के लिए एक निविदा जारी की थी।
निविदा में 2,32,463 वर्ग मीटर (57 एकड़) के पूरे भूखंड को कवर किया गया था। प्रस्तावित विकास के बारे में जानने के बाद, याचिकाकर्ता ने एमसीजेडएमए के पास अपनी शिकायत दर्ज कराई और इस तथ्य की ओर उनका ध्यान आकर्षित किया कि पुनः प्राप्त भूमि के वाणिज्यिक विकास की अनुमति नहीं थी और उनसे यह सुनिश्चित करने के लिए कदम उठाने का आह्वान किया कि उक्त भूखंड पर किसी भी अवैध विकास की अनुमति नहीं दी जाए।
याचिका में कहा गया है, ‘‘प्रतिवादी संख्या छह अदाणी प्रॉपर्टीज सबसे अधिक बोली लगाने वाली कंपनी है, जिसे प्रतिवादी संख्या एक (एमएसआरडीसी) द्वारा ‘चयनित बोलीदाता’ के रूप में चयनित किया गया और 16 मार्च, 2024 को उसके पक्ष में स्वीकृति पत्र जारी किया गया।’’
भथेना ने अपनी याचिका में कहा कि उन्होंने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया है कि वह एमएसआरडीसी को उक्त भूमि पर किसी भी व्यावसायिक विकास गतिविधि की योजना बनाने या उसे क्रियान्वित करने से रोकने के निर्देश जारी करे, साथ ही अन्य राहत भी प्रदान करे।
भाषा संतोष