युवक ने न्यायालय में अर्जी देकर धर्मांतरण संबंधी याचिकाओं में पक्षकार बनाने का अनुरोध किया
धीरज सुरेश
- 04 Nov 2025, 10:14 PM
- Updated: 10:14 PM
नयी दिल्ली, चार नवंबर (भाषा) अनुसूचित जाति समुदाय के 19-वर्षीय एक व्यक्ति ने धर्मांतरण के मुद्दे को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाखिल याचिकाओं में पक्षकार बनाए जाने का आग्रह किया है।
अभिषेक खटीक द्वारा दायर याचिका में दावा किया गया है कि वह मध्य प्रदेश के एक आश्रय गृह में जबरन और धोखाधड़ी से धर्मांतरण का शिकार हुआ है। उन्होंने आरोप लगाया उसे ईसाई प्रार्थना में भाग लेने के लिए मजबूर किया गया, मंदिरों में जाने से रोका गया और मनोवैज्ञानिक एवं धार्मिक दबाव डाला गया।
अधिवक्ता अश्विनी दुबे के जरिये दायर याचिका में कहा गया है कि उनकी वर्तमान अर्जी राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के तत्कालीन अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो द्वारा आशा किरण होम, झिंझरी में किए गए औचक निरीक्षण के बाद मध्य प्रदेश के कटनी के माधव नगर स्थित एक पुलिस थाने में दर्ज प्राथमिकी पर आधारित है।
याचिका में दावा किया गया है कि निरीक्षण के दौरान, खटीक सहित चार बच्चों के बयान दर्ज किए गए, जिसमें बाल संरक्षण मानदंडों के गंभीर उल्लंघन और जबरदस्ती धर्मांतरण के मामलों का खुलासा हुआ।
याचिका में दावा किया गया है कि बच्चों ने बताया कि उन्हें हिंदू होने के बावजूद ईसाई प्रार्थनाओं में भाग लेने के लिए मजबूर किया जाता था, मंदिरों में जाने से रोका जाता था और उक्त बाल गृह के प्रबंधन के जरिये उन पर मनोवैज्ञानिक और धार्मिक दबाव डाला जाता था।
इसमें कहा गया, ‘‘आवेदक अनुसूचित जाति हिंदू समुदाय से संबंधित है और मध्य प्रदेश का निवासी है। वह जबरदस्ती और धोखाधड़ी से धर्मांतरण का शिकार रहा है, और उसका मामला उसी कुकृत्य से जुड़ा है, जिसका समाधान विवादित कानून में किया गया है।’’
याचिका में कहा गया, ‘‘इस मामले में उन्हें शामिल करने का उद्देश्य विवाद को बढ़ाना नहीं, बल्कि पीड़ित के लिए एक प्रामाणिक और संवैधानिक रूप से प्रासंगिक परिप्रेक्ष्य प्रदान करना है, जिसके अधिकारों की रक्षा के लिए ये कानून बनाए गए हैं।’’
उच्चतम न्यायालय ने 2023 में कई राज्यों के धर्मांतरण विरोधी कानूनों को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं से कहा था कि वे इससे संबंधित मामलों को उच्च न्यायालयों से शीर्ष अदालत में स्थानांतरित करने के लिए एक साझा याचिका दायर करें।
शीर्ष अदालत ने रेखांकित किया था कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कम से कम पांच, मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के समक्ष सात, गुजरात और झारखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष दो-दो, हिमाचल प्रदेश के समक्ष तीन और कर्नाटक तथा उत्तराखंड उच्च न्यायालयों के समक्ष एक-एक ऐसी याचिकाएं लंबित हैं।
गुजरात और मध्य प्रदेश राज्यों द्वारा भी दो अलग-अलग याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें धर्मांतरण संबंधी उनके कानूनों के कुछ प्रावधानों पर रोक लगाने वाले संबंधित उच्च न्यायालयों के अंतरिम आदेशों को चुनौती दी गई हैं।
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश के धर्मांतरण विरोधी कानूनों के खिलाफ उच्चतम न्यायालय का रुख किया और दलील दी कि ये अंतरधार्मिक जोड़ों को ‘परेशान’ करने और उन्हें आपराधिक मामलों में फंसाने के लिए बनाए गए हैं।
भाषा धीरज