वर्ष 2020 के दिल्ली दंगे राष्ट्र की संप्रभुता पर हमला थे : दिल्ली पुलिस ने न्यायालय से कहा
सुरेश नरेश
- 18 Nov 2025, 06:55 PM
- Updated: 06:55 PM
नयी दिल्ली, 18 नवंबर (भाषा) दिल्ली पुलिस ने फरवरी 2020 में राष्ट्रीय राजधानी में हुए दंगों के मामले में कार्यकर्ता उमर खालिद, शरजील इमाम और अन्य की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध करते हुए मंगलवार को उच्चतम न्यायालय से कहा कि यह स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था, बल्कि राष्ट्र की संप्रभुता पर पूर्व-नियोजित और सुनियोजित एक हमला था।
खालिद, इमाम, गुलफिशा फातिमा, मीरान हैदर और रहमान के खिलाफ फरवरी 2020 के दंगों के कथित ‘मास्टरमाइंड’ होने के आरोप में आतंकवाद-रोधी कानून और तत्कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया था। इन दंगों में 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हुए थे।
संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) के खिलाफ प्रदर्शनों के दौरान हिंसा भड़क उठी थी।
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायमूर्ति अरविंद कुमार और न्यायमूर्ति एन वी अंजारिया की पीठ को बताया कि समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने का प्रयास किया गया था और यह महज संशोधित नागरिकता अधिनियम (सीएए) के खिलाफ आंदोलन नहीं था।
मेहता ने दलील दी कि यह एक ‘मिथक’ है कि सीएए/एनआरसी को लेकर प्रदर्शन के बाद यह एक स्वतःस्फूर्त दंगा था। उन्होंने इमाम के एक भाषण का हवाला भी दिया, जिसमें उन्होंने (इमाम ने) कथित तौर पर कहा था कि आबादी में 30 प्रतिशत की भागीदारी रखने वाले मुस्लिम सशस्त्र विद्रोह के लिए एकजुट नहीं हो पा रहे हैं।
मेहता ने दलील दी, ‘‘सबसे पहले, उस मिथक को तोड़ना होगा। यह कोई स्वतःस्फूर्त दंगा नहीं था। यह एक सुनियोजित और पूर्व-नियोजित दंगा था। यह एकत्रित साक्ष्यों से पता चलेगा...।’’
उन्होंने कहा, ‘‘भाषण-दर-भाषण, बयान-दर-बयान, समाज को सांप्रदायिक आधार पर बांटने की कोशिश थी। यह केवल किसी कानून के विरुद्ध आंदोलन नहीं था।’’
मेहता ने दलील दी, ‘‘शरजील इमाम ने कहा था कि उसकी दिली ख्वाहिश है कि हर उस शहर में ‘चक्का जाम’ हो, जहां मुसलमान रहते हैं। सिर्फ दिल्ली में ही नहीं।’’
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि सोशल मीडिया पर एक विमर्श गढ़ा गया कि युवाओं के साथ कुछ बहुत गंभीर होने जा रहा है। उन्होंने कहा कि हालांकि, मुकदमे में देरी के लिए आरोपी स्वयं जिम्मेदार हैं।
मेहता ने दलील दी, ‘‘हम छह महीने में मुकदमा पूरा करने के लिए तैयार हैं। दर्ज किए गए हर आरोप के लिए, आरोपी पांच साल तक बहस करेंगे। तथ्यों के आधार पर, ये आरोपी रिहा होने के लायक नहीं हैं, इसलिए वे ज़मानत का आधार पाने के लिए मुकदमे में देरी कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा कि आरोपियों से ली गई तस्वीरों से पता चलता है कि वे सभी एक साथ बैठकर साजिश रच रहे हैं।
दिल्ली पुलिस की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) एसवी राजू ने दलील दी कि आरोपियों ने नताशा नरवाल, देवयांगना कलिता, आसिफ इकबाल तन्हा के समान उन्हें भी जमानत पर रिहा किये जाने का अनुरोध किया है। इन लोगों को एक साल जेल में बिताने के बाद जून 2021 में जमानत मिली थी।
राजू के अनुसार, आरोपी तीन अन्य सह-आरोपियों के साथ समानता की मांग नहीं कर सकते, क्योंकि शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से कहा है कि सह-आरोपियों के जमानत आदेश को मिसाल नहीं माना जा सकता।
एएसजी ने दलील दी कि अगर कोई व्यक्ति यूएपीए के तहत आरोपी है तो जमानत तभी संभव है जब धारा 43डी(5) की शर्तें पूरी हों।
राजू ने कहा कि दिल्ली उच्च न्यायालय ने मई 2024 में राजद्रोह और गैरकानूनी गतिविधियों के आरोपों से जुड़े 2020 के सांप्रदायिक दंगों के एक मामले में सीआरपीसी की धारा 436-ए के तहत इमाम को गलती से वैधानिक जमानत दे दी थी।
राजू ने कहा, ‘‘जब मामले में यूएपीए की अतिरिक्त सजा भी लागू होती है, तो केवल सीआरपीसी के प्रावधान के आधार पर जमानत नहीं दी जा सकती। धारा 436-ए के तहत, किसी व्यक्ति को हिरासत से रिहा किया जा सकता है, यदि उसने अपराध के लिए निर्धारित अधिकतम सजा के आधे से अधिक समय बिता लिया हो।’’
उन्होंने दलील दी कि खालिद के मामले में परिस्थितियों में कोई ऐसा महत्वपूर्ण बदलाव नहीं आया है, जिसके लिए अदालत को उसकी जमानत याचिकाओं को पहले खारिज करने के फैसले पर पुनर्विचार करने की आवश्यकता हो।
सुनवाई अधूरी रही और 20 नवंबर को भी जारी रहेगी।
भाषा सुरेश