न्यायालय ने उच्च न्यायिक सेवा में पदोन्नत न्यायाधीशों के लिए आरक्षण से इनकार किया
प्रशांत माधव
- 19 Nov 2025, 05:42 PM
- Updated: 05:42 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को उच्चतर न्यायिक सेवा (एचजेएस) में पदोन्नत न्यायाधीशों के लिए आरक्षण देने से इनकार कर दिया और कहा कि देश में असमान प्रतिनिधित्व की कोई “साझा व्याधि” नहीं है जिसके लिए ऐसी व्यवस्था की आवश्यकता हो।
शीर्ष अदालत ने कहा कि “कथित असंतोष” और “नाराजगी” के कारण किसी कैडर के सदस्यों का कृत्रिम वर्गीकरण नहीं किया जा सकता।
भारत के प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि एचजेएस के भीतर चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में निर्धारण कैडर के भीतर योग्यता-सह-वरिष्ठता पर आधारित है और यह न्यायपालिका के निचले स्तर पर सेवा की अवधि या प्रदर्शन पर निर्भर नहीं हो सकता है।
पीठ में न्यायमूर्ति सूर्य कांत, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची भी शामिल थे।
पीठ ने कहा, “सांख्यिकीय आंकड़े भिन्न हैं और एचजेएस में नियमित पदोन्नत व्यक्तियों (आरपी) के असंतोष और नाराजगी को उचित ठहराने के लिए कोई ठोस आधार प्रदान नहीं करते हैं।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि सेवारत न्यायिक अधिकारियों के पास जिला न्यायाधीश के रूप में उन्नति के पर्याप्त अवसर हैं, जिससे उन्हें जिला न्यायाधीश के रूप में सीधी भर्ती के लिए दावेदारी की अनुमति मिलती है।
पीठ ने कहा, “एचजेएस के अंतर्गत चयन ग्रेड और सुपर टाइम स्केल में नियुक्ति, संवर्ग के भीतर योग्यता-सह-वरिष्ठता पर आधारित है और न्यायपालिका के निचले स्तरों पर सेवाकाल या प्रदर्शन पर निर्भर नहीं हो सकती; आरपी और सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षाएं (एलडीसीई) के एचजेएस में आने के बाद, यह अपना महत्व खो देता है। इस पर निर्भरता न्याय के कुशल प्रशासन के उद्देश्य की पूर्ति नहीं करती और प्रतिकूल परिणाम देती है।”
उसने कहा, “ यह दीवानी न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल की अवधि और प्रदर्शन भी जिला न्यायाधीश के सामान्य संवर्ग में पदाधिकारियों को वर्गीकृत करने के लिए एक स्पष्ट अंतर नहीं बनाता है और शैक्षिक योग्यता के आधार पर वर्गीकरण एक अलग आधार पर है।”
शीर्ष अदालत ने कहा कि व्यक्तिगत करियर आकांक्षाएं सेवा की एक सामान्य घटना है, जो बेहतर प्रदर्शन से और भी बढ़ जाती है। उसने कहा कि वे स्वतंत्र और मजबूत न्यायपालिका के उद्देश्य से जुड़े नहीं हैं और वरिष्ठता के नियमों के स्वरूप को निर्देशित नहीं कर सकते।
न्यायालय ने जिला न्यायाधीश के पदों को भरने के लिए दिशानिर्देश जारी किए और कहा कि उच्च न्यायिक सेवा में अधिकारियों की वरिष्ठता एक वार्षिक चार-बिंदु रोस्टर के आधार पर तय की जाएगी। इस रोस्टर में संबंधित वर्ष में नियुक्त सभी अधिकारियों को दो नियमित प्रोमोटियों, एक सीमित विभागीय प्रतियोगी परीक्षा (एलडीसीई) से चयनित अधिकारी और एक सीधी भर्ती के क्रम में शामिल किया जाएगा।
पीठ ने कहा, “केवल उसी स्थिति में, जब भर्ती प्रक्रिया अपने आरंभ किए गए वर्ष के भीतर ही पूरी हो जाए और बाद के वर्ष के लिए शुरू की गई भर्ती के तहत तीनों स्रोतों में से किसी से भी कोई नियुक्ति न हो, तभी विलंब से नियुक्त किए गए अधिकारियों को उसी वर्ष के रोस्टर के अनुरूप वरिष्ठता का अधिकार मिलेगा, जिसमें भर्ती प्रक्रिया शुरू की गई थी।”
देश भर के न्यायिक अधिकारियों की वरिष्ठता और करियर प्रगति का मुद्दा 1989 में अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ (एआईजेए) द्वारा दायर एक याचिका में उठाया गया था।
शीर्ष अदालत ने सात अक्टूबर को देश भर के निचले न्यायिक अधिकारियों के सामने आने वाले करियर में ठहराव से संबंधित मुद्दों को पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ को भेज दिया था।
भाषा प्रशांत