ममता ने बीएलओ की मौत के लिए निर्वाचन आयोग को जिम्मेदार ठहराया, भाजपा ने पलटवार किया
प्रचेता पवनेश
- 19 Nov 2025, 06:52 PM
- Updated: 06:52 PM
कोलकाता, 19 नवंबर (भाषा) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जलपाईगुड़ी जिले में बूथ लेवल आफिसर (बीएलओ) की आत्महत्या को लेकर निर्वाचन आयोग (ईसी) पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि एसआईआर का "अमानवीय, अव्यवस्थित" कार्यभार ने जमीनी स्तर के कर्मचारियों को तोड़ रहा है।
वहीं, बीएलओ के परिजनों ने भी "असहनीय दबाव" की बात कही है, जबकि भाजपा ने इस त्रासदी के लिए राज्य के अधिकारियों को जिम्मेदार ठहराया है।
आंगनवाड़ी कार्यकर्ता शांतिमणि उरांव(48) रंगामाटी ग्राम पंचायत के तहत बूथ संख्या 20/101 की बीएलओ के तौर पर कार्यरत थी। आज सुबह उनका शव न्यू ग्लेनको चाय बागान क्षेत्र में उनके घर के पास एक पेड़ से लटका हुआ मिला। पुलिस के अनुसार, उरांव के गले में उन्हीं का दुपट्टा बंधा हुआ था।
उरांव के परिवार ने आरोप लगाया कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण (एसआईआर) अभियान के कारण बढ़ते तनाव के कारण उन्होंने आत्महत्या कर ली।
पुलिस अधीक्षक के. यू. गणपत ने कहा माल थाना पुलिस ने शव बरामद कर उसे जलपाईगुड़ी सदर अस्पताल में पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया है।
उन्होंने कहा," मामले में जांच शुरू कर दी गई है।"
बनर्जी ने 'एक्स' पर एक पोस्ट में कड़ी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि (मतदाता सूची की) पुनरीक्षण प्रक्रिया के दौरान एक और बीएलओ की मौत से वह "बेहद स्तब्ध और दुखी" हैं।
उन्होंने पोस्ट में कहा, ''आज फिर, हमने जलपाईगुड़ी के माल में एक बूथ लेवल आफिसर, एक आंगनवाड़ी कार्यकर्ता को खो दिया, जिसने एसआईआर की जारी प्रक्रिया के असहनीय दबाव के कारण अपनी जान ले ली।''
उन्होंने दावा किया कि एसआईआर प्रक्रिया शुरू होने के बाद से अब तक 28 लोगों की मौत हो चुकी है। उनका आरोप है कि जो काम पहले तीन वर्षों में किया जाता था, उसे अब ''राजनीतिक आकाओं को खुश करने'' के लिए दो महीनों में निपटाने का दबाव बनाया जा रहा है, जिससे ज़मीनी स्तर के कर्मचारियों पर ''अमानवीय दबाव'' पड़ रहा है।
उन्होंने कहा, ''ऐसी अनमोल ज़िंदगियां उस अव्यवस्थित और निरंतर बढ़ते बोझ के कारण जा रही हैं, जिसे भारत के तथाकथित निर्वाचन आयोग ने थोप दिया है। जो प्रक्रिया पहले तीन साल में पूरी होती थी, उसे अब चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक आकाओं को खुश करने के लिए दो महीनों में निपटाने के लिए मजबूर किया जा रहा है, जिससे बीएलओ पर अमानवीय दबाव पड़ रहा है।
उन्होंने निर्वाचन आयोग से ''विवेक के साथ कार्य करने'' और इस अभियान को तुरंत रोक देने की अपील की।
शांतिमणि के घर पर उनके पति, सुख एक्का, ने उस रोज़मर्रा की दिनचर्या का ज़िक्र किया जो ''मानसिक रूप से असहनीय'' हो चुकी थी। उन्होंने बताया कि नियमित आंगनवाड़ी ड्यूटी और घरेलू कामकाज पूरा करने के बाद वह रात में दस्तावेज़ इकट्ठा करने और संशोधन कार्य के लिए फ़ॉर्म भरने निकल जाती थीं।
उन्होंने पत्रकारों को बताया, "फॉर्म सभी बंगाली में थे लेकिन यहां ज्यादातर लोग हिंदी बोलते हैं। गलतियां होना तय था। हर शाम लोग हमारे घर आते थे। वह इस दबाव को झेल नहीं पाई।"
परिवार ने दावा किया कि उरांव ने कथित तौर पर ब्लॉक कार्यालय में जाकर एसआईआर संबंधित कार्य से राहत प्रदान करने का अनुरोध किया था लेकिन उन्हें कहा गया कि सूची में नाम होने की वजह से काम करना जारी रखना होगा।
स्थानीय विधायक तथा पिछड़ा वर्ग कल्याण और आदिवासी विकास राज्य मंत्री बुलुचिक बराइक ने शोकग्रस्त परिवार से मुलाकात की। उन्होंने कहा कि एसआईआर से जुड़े कार्यभार ने इस आदिवासी बहुल इलाके में “दहशत” पैदा कर दी है।
इस घटना से कुछ दिन पहले पूर्व बर्दवान की एक अन्य बीएलओ नमिता हांसदा का मस्ष्तिकाघात (ब्रेन स्ट्रोक) से निधन हो गया था। वह मेमारी के चक बलारामपुर स्थित बूथ संख्या 278 की बीएलओ थीं और बढ़ते कार्यभार के आरोपों के बीच अचानक गिर पड़ी थीं।
यद्यपि भाजपा ने तृणमूल के आरोपों को खारिज करते हुए इन्हें राजनीति से प्रेरित करार दिया है।
विपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता शुभेंदु अधिकारी ने दावा किया, "मैंने इस घटना के बारे में पूछताछ की और मुझे पता चला है कि राज्य सरकार के उनके वरिष्ठ अधिकारियों के दबाव के कारण वह अत्यधिक तनाव में थीं जिसके चलते उन्होंने आत्महत्या कर ली।"
वहीं पश्चिम बंगाल के मुख्य निर्वाचन अधिकारी के कार्यालय ने इस घटना के संबंध में जिले से रिपोर्ट तलब की है।
भाषा
प्रचेता