दिल्ली उच्च न्यायालय ने फिल्म ‘120 बहादुर’ को 21 नवंबर को रिलीज करने की अनुमति दी
जोहेब माधव
- 19 Nov 2025, 09:08 PM
- Updated: 09:08 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने फरहान अख्तर अभिनीत “120 बहादुर” के सीबीएफसी प्रमाणपत्र को चुनौती देने वाली याचिका का निपटारा करते हुए 21 नवंबर को फिल्म रिलीज करने की बुधवार को अनुमति दे दी। याचिका में आरोप था कि फिल्म में ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है।
उच्च न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अब फिल्म के नाम और रिलीज की तारीख में बदलाव करने के लिहाज से बहुत देर हो चुकी है और अंतिम क्षणों में बदलाव करना संभव नहीं है।
साथ ही, न्यायालय ने यह भी कहा कि फिल्म के निर्माता फिल्म के अंत में सैनिकों को विशेष श्रद्धांजलि दे चुके हैं।
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम. सिंह और न्यायमूर्ति शैल जैन की पीठ ने याचिका का निपटारा कर दिया। इससे पहले याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि यदि फिल्म का शीर्षक नहीं बदला जाता है और सभी नाम फिल्म के अंत में जोड़ दिए जाते हैं तो यह स्वीकार्य है।
पीठ ने कहा, “हालांकि, इस बात को लेकर अस्पष्टता है कि क्या सभी 120 सैनिकों के नाम फिल्म में शामिल किए गए हैं या नहीं। फिर भी यह निर्देश दिया जाता है कि फिल्म को इसी रूप में शुक्रवार को देशभर में सिनेमाघरों में रिलीज किया जाए।”
इसके अलावा, पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता फिल्म देख सकते हैं और 120 सैनिकों के नाम शामिल किए जाने की जांच कर सकते हैं, और यदि कोई परिवर्तन या सुधार आवश्यक हो, तो उसे ओटीटी पर रिलीज से पहले किया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, “यह स्पष्ट किया जाता है कि ओटीटी पर रिलीज के लिए भी केवल सैनिकों के नाम और उनके उचित रेजिमेंट का उल्लेख किया जाएगा।”
अदालत एक धर्मार्थ ट्रस्ट संयुक्त अहीर रेजिमेंट मोर्चा, उसके ट्रस्टी और रेजांग ला की लड़ाई में शहीद हुए कई सैनिकों के परिवार के सदस्यों की जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें फिल्म को दिए गए सीबीएफसी प्रमाण पत्र को चुनौती दी गई थी। याचिका में आरोप लगाया गया था कि यह ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और फिल्म का नाम बदला जाना चाहिए।
इससे पहले सुबह के समय मुख्य न्यायाधीश देवेंद्र कुमार उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ के समक्ष सूचीबद्ध जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई पीठ नहीं बैठने के कारण अगले सप्ताह के लिए स्थगित कर दी गई थी।
हालांकि, जब मामले की सुनवाई शुरू हुई, तो याचिकाकर्ताओं की ओर से कोई भी उपस्थित नहीं हुआ। इसके बाद फिल्म के शुक्रवार को रिलीज होने की तात्कालिकता को देखते हुए याचिकाकर्ता के वकील ने याचिका को आज ही एक अन्य पीठ के समक्ष सूचीबद्ध करवा लिया।
फिल्म में मेजर शैतान सिंह भाटी की कहानी दिखाई गई है, जिन्हें 1962 में रेजांग ला की लड़ाई में बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। यह फिल्म 21 नवंबर को सिनेमाघरों में रिलीज होने वाली है।
याचिका में कहा गया था कि लद्दाख के चुशुल सेक्टर में 18,000 फुट की ऊंचाई पर लड़ी गई इस लड़ाई को रक्षा मंत्रालय के इतिहास प्रभाग में सामूहिक वीरता के प्रतीक के रूप में वर्णित किया गया है। इसमें 120 में से 114 सैनिक शहीद हो गए थे।
मुख्य रूप से रेवाड़ी और आसपास के क्षेत्रों के (113) अहीर (यादव) सैनिकों की कंपनी ने अद्वितीय साहस और कर्तव्य के प्रति समर्पण के साथ चुशुल हवाई क्षेत्र की पहली रक्षा पंक्ति - रेजांग ला दर्रे की रक्षा की।
याचिकाकर्ताओं ने केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड (सीबीएफसी) द्वारा जारी प्रमाणपत्र और फिल्म की आसन्न रिलीज को चुनौती दी थी। उनका आरोप था कि फिल्म युद्ध को दर्शाने का दावा तो करती है, लेकिन मेजर शैतान सिंह को काल्पनिक नाम ‘भाटी’ के तहत एकमात्र नायक के रूप में महिमामंडित करके ऐतिहासिक सच्चाई को विकृत किया गया है।
उन्होंने दावा किया कि यह फिल्म मेजर शैतान सिंह के साथ मिलकर लड़ाई में शामिल होने और शहीद होने वाले अहीर सैनिकों की सामूहिक पहचान, रेजिमेंट के गौरव और योगदान को मिटा देती है।
याचिका में कहा गया कि यह चित्रण सिनेमेटोग्राफ और प्रमाणन दिशानिर्देशों के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, जो ‘‘इतिहास के विकृत दृष्टिकोण’’ को प्रस्तुत करने वाली फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगाते हैं।
इसमें कहा गया कि यह भारतीय न्याय संहिता की धारा 356 का भी उल्लंघन है, जिसके तहत मृतक व्यक्तियों के विरुद्ध उनके रिश्तेदारों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाले आरोप आपराधिक होते हैं।
ट्रस्ट ने अधिकारियों से आवेदन किया कि फिल्म प्रमाणन की समीक्षा की जाए और फिल्म का नाम नहीं बदले जाने तक इसकी रिलीज पर रोक लगाई जाए। उसने युद्ध में अहीर समुदाय के योगदान को स्वीकार करते हुए एक ‘डिस्क्लेमर(अस्वीकरण)’ भी शामिल करने की मांग की थी।
भाषा जोहेब