न्यायाधिकरण सुधार कानून के कार्यकाल, नियुक्ति और सेवा शर्तों से संबंधित प्रावधान रद्द
सुरेश नरेश
- 19 Nov 2025, 10:12 PM
- Updated: 10:12 PM
नयी दिल्ली, 19 नवंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को केंद्र को चार महीने के भीतर एक राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग गठित करने का निर्देश दिया, साथ ही न्यायाधिकरण के सदस्यों और पीठासीन अधिकारियों की नियुक्ति, कार्यकाल और सेवा शर्तों से संबंधित 2021 न्यायाधिकरण सुधार कानून के प्रमुख प्रावधानों को रद्द कर दिया।
प्रधान न्यायाधीश बी आर गवई और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने न्यायाधिकरणों पर कार्यपालिका के अत्यधिक नियंत्रण को लेकर चिंता व्यक्त की तथा देश भर के न्यायाधिकरणों के कामकाज, संरचना और सेवा शर्तों में व्यापक बदलाव लाने वाले न्यायाधिकरण सुधार (सुव्यवस्थीकरण और सेवा शर्तें) अधिनियम, 2021 के कुछ प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं को स्वीकार कर लिया।
पीठ ने कहा, ‘‘हम भारत संघ को राष्ट्रीय न्यायाधिकरण आयोग स्थापित करने के लिए (आदेश की तारीख से) चार महीने की अवधि प्रदान करते हैं।’’
फैसले में कहा गया, ‘‘इस तरह के आयोग का गठन एक आवश्यक संरचनात्मक सुरक्षा उपाय है, जिसे देशभर के न्यायाधिकरणों की नियुक्ति, प्रशासन और कार्यप्रणाली में स्वतंत्रता, पारदर्शिता और एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किया गया है।’’
ये चुनौतियां अधिनियम की धारा तीन से सात और 33 के साथ-साथ एक दर्जन से अधिक केंद्रीय कानूनों में किए गए कई संशोधनों पर केंद्रित थीं।
पीठ की ओर से 137 पृष्ठों के फैसले में प्रधान न्यायाधीश ने विशेष रूप से इन प्रावधानों को अमान्य कर दिया। धारा-तीन के तहत न्यायाधिकरण के अध्यक्ष या सदस्य के रूप में नियुक्ति के लिए न्यूनतम आयु 50 वर्ष निर्धारित की गयी थी।
फैसले में कहा गया कि इस प्रतिबंध ने मनमाने ढंग से युवा और सक्षम अधिवक्ताओं एवं विशेषज्ञों को नियुक्ति के दायरे से बाहर रखा। इसने अधिनियम की धारा-पांच को भी रद्द कर दिया, जिसमें न्यायाधिकरणों के अध्यक्षों और सदस्यों का कार्यकाल चार वर्ष निर्धारित किया गया था।
यह अधिनियम लंबे कार्यकाल निर्धारित करने वाले पूर्व के निर्णयों को रद्द करता है, लेकिन इसमें एक संक्रमणकालीन खंड शामिल है, जिसके तहत 26 मई, 2017 और अधिसूचना की तिथि के बीच नियुक्त लोगों के नियुक्ति आदेश में निर्दिष्ट लंबा कार्यकाल जारी रहेगा, जिसकी अधिकतम सीमा पांच वर्ष है।
पीठ ने धारा तीन के तहत न्यायाधिकरणों में नियुक्तियों के लिए चयन प्रक्रिया को भी रद्द कर दिया और खोज-सह-चयन समिति को प्रत्येक रिक्ति के लिए दो नामों के एक पैनल की सिफारिश करने की आवश्यकता बताई।
अधिकांश न्यायाधिकरणों में, समिति की अध्यक्षता भारत के प्रधान न्यायाधीश या उनके द्वारा नामित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश करते हैं।
पीठ ने फैसला सुनाया कि नियुक्तियों में अत्यधिक कार्यकारी विवेकाधिकार को रोकने के लिए खोज-सह-चयन समिति को प्रत्येक पद के लिए केवल एक नाम की सिफारिश करनी चाहिए। पीठ ने सेवा शर्तों से संबंधित अधिनियम की धारा-सात को भी अस्वीकार कर दिया।
इसने न्यायाधिकरण के सदस्यों के भत्तों और सेवा शर्तों को सिविल सेवकों के समान माना।
भाषा सुरेश