डेढ़ गुना बढ़ी टीबी रोगियों की संख्या;2025 तक था बीमारी को खत्म करने का लक्ष्य : आरटीआई
नरेश
- 20 Nov 2025, 04:45 PM
- Updated: 04:45 PM
(जितेंद्र गुप्ता)
नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) केंद्र सरकार ने साल 2025 तक तपेदिक (टीबी) रोग को खत्म करने का लक्ष्य रखा था लेकिन देश में पिछले पांच साल में इसके रोगियों की संख्या में डेढ़ गुना वृद्धि दर्ज की गयी है। 2020 में जहां टीबी रोगियों की संख्या 18,05, 670 थी वहीं 2024 में इस संक्रामक रोग का शिकार होने वाले मरीजों की संख्या बढ़कर 26,17, 923 हो गयी।
सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत समाचार एजेंसी भाषा द्वारा दायर एक आवेदन के जवाब में भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के केंद्रीय क्षय रोग प्रभाग ने यह जानकारी उपलब्ध कराई है।
टीबी एक संक्रामक बीमारी है, जो ‘माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस’ नाम के बैक्टीरिया के कारण होती है। यह रोग मुख्य रूप से रोगी के फेफड़ों को प्रभावित करता है लेकिन शरीर के अन्य अंग जैसे गुर्दे, मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी भी इसकी चपेट में आ सकते हैं।
केंद्रीय क्षय रोग प्रभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, टीबी के कुल मामलों की संख्या इस साल अक्टूबर तक 20,77,591 हो चुकी है।
आरटीआई के मुताबिक, 2020 में टीबी के18,05,670, 2021 में 21,35,830, 2022 में 24,22,121, 2023 में 25,52,257 और 2024 में 26,17,923 मामले सामने आए थे। ये आंकड़ें टीबी के मामलों में वृद्धि के परिचायक हैं।
प्रति एक लाख आबादी पर टीबी के मामलों की दर की बात की जाए तो यह 2020 में 131, 2021 में 153, 2022 में 172, 2023 में 179, 2024 में 183 और 2025 में 195 पर पहुंच गयी।
आरटीआई के तहत केंद्रीय क्षय रोग प्रभाग से मिली जानकारी के मुताबिक, उत्तर प्रदेश टीबी से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य है, जहां जून 2025 तक 3,83,987 मामले सामने आ चुके हैं जबकि 2024 में यहां 6,81,779, 2023 में 6,32,872, 2022 में 5,22,850, 2021 में 4,53,712 और 2020 में 3,66,641 मामले सामने आए थे।
आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में जून 2025 तक 62,342 मामले, सामने आ चुके हैं जबकि पिछले चार वर्ष में यह आंकड़ा एक लाख को पार कर गया था। दिल्ली में 2024 में 1,05,343, 2023 में 1,00,523, 2022 में 1,06,731, 2021 में 1,03,038 और 2020 में 86,842 मामले सामने आए थे।
आरटीआई के अनुसार महाराष्ट्र में भी टीबी रोगियों की संख्या पिछले पांच साल में डेढ़ लाख से कम कभी नहीं रही। महाराष्ट्र में जून 2025 तक 1,15,303, 2024 में 2,30,163, 2023 में 2,27,664, 2022 में 2,34,105, 2021 में 1,99,976 और 2020 में 1,59,663 मामले सामने आए।
बिहार में भी पिछले पांच साल में टीबी रोगियों की संख्या में लगातार वृद्धि दर्ज की गयी है। बिहार में 2020 में 98,994, 2021 में 1,31,703, 2022 में 1,61,165, 2023 में 1,86,974 और 2024 में 2,00,4309 टीबी के मामले सामने आए थे।
बिहार की तरह हरिणाया भी उन राज्यों में शामिल है, जहां लगातार पांच साल में टीबी के मामले बढ़े हैं। हरियाणा में 2020 में 62,697, 2021 में 69,083, 2022 में 75,838, 2023 में 80,490 और 2024 में 86,635 टीबी के मामले आए थे।
टीबी से सबसे ज्यादा प्रभावित राज्यों में जून 2025 तक बिहार में 1,12,503, मध्यप्रदेश में 89,833, राजस्थान में 89,215, गुजरात में 69,918, पश्चिम बंगाल में 56,512, तमिलनाडु में 49,276, हरियाणा में 48,936 और तेलंगाना में 41,027 मामले सामने आ चुके हैं।
आरटीआई के तहत उपलब्ध करायी गयी जानकारी के अनुसार, टीबी से सबसे कम प्रभावित राज्यों की गिनती में लक्षद्वीप सबसे आगे हैं, जहां जून 2025 तक टीबी के सिर्फ नौ मामले सामने आए हैं। वहीं लद्दाख में 136, अंडमान में 368, दादरा एवं नगर हवेली और दमन एवं दीव में 632, सिक्किम में 660, मिजोरम में 1248, अरुणाचल प्रदेश में 1348, मणिपुर में 1360, पुडुचेरी में 1692 मामले सामने आ चुके हैं।
राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के तहत भारत ने वर्ष 2025 तक टीबी उन्मूलन का लक्ष्य रखा था, जो दुनिया के सबसे महत्वाकांक्षी स्वास्थ्य मिशनों में से एक है। कार्यक्रम के अंतर्गत इस प्रमुख पहल का उद्देश्य निदान, उपचार और रोकथाम के प्रयासों को मजबूत करना है तथा टीबी मुक्त भारत की दिशा में प्रगति को गति देना है।
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर स्थित ‘पल्मनोलॉजी रीजेंसी हॉस्पिटल’के कंसल्टेंट डॉ. आमिर नदीम ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, “टीबी की अगर समय पर पहचान न हो और उपचार न मिले तो यह जानलेवा साबित हो सकता है। यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य अंगों को भी प्रभावित कर सकता है। लेकिन अच्छी बात यह है कि टीबी पूरी तरह से ठीक की जा सकती है, बशर्ते मरीज पूरा इलाज नियमित रूप से करे और बीच में दवाइयां न छोड़े।’’
टीबी के मामलों में वृद्धि के बारे में पूछे जाने पर दिल्ली स्थित श्री बालाजी एक्शन मेडिकल इंस्टिट्यूट के ‘पल्मनोलॉजी इंटरवेंशनल पल्मनोलॉजी एंड स्लीप मेडिसिन’ के निदेशक डॉ. अनिमेष आर्य ने बताया, “अब लोगों में इस बीमारी को लेकर पहले से कहीं ज्यादा जागरूकता आई है। खांसी, बुखार, वजन घटने या थकान जैसे लक्षण दिखते ही लोग जांच करवाने लगे हैं, जिससे बीमारी शुरुआती अवस्था में ही पकड़ में आ जाती है।”
उन्होंने बताया, “सरकार की ‘निक्षय पोषण योजना’, मुफ्त दवा और इलाज की सुविधाओं ने भी बड़ी भूमिका निभाई है। मरीजों को अब न सिर्फ दवाएं बल्कि पोषण सहायता भी मिल रही है, जिससे रिकवरी तेज हो रही है। इसके अलावा, डिजिटल रिपोर्टिंग सिस्टम से मरीजों की निगरानी और ट्रैकिंग भी आसान हुई है।”
भाषा जितेंद्र