मामलों के निपटान की धीमी गति के कारण न्याय की बाट जोह रहे 50 हजार बच्चेः आईजेआर
सुमित पवनेश नेत्रपाल
- 20 Nov 2025, 06:30 PM
- Updated: 06:30 PM
नयी दिल्ली, 20 नवंबर (भाषा) देश के 362 किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) में आधे से ज्यादा मामले लंबित होने के कारण 50,000 से अधिक बच्चे न्याय की बाट जोह रहे हैं। ‘इंडिया जस्टिस रिपोर्ट’ (आईजेआर) के बृहस्पतिवार को जारी एक अध्ययन में यह जानकारी दी गई।
अध्ययन में कहा गया है कि किशोर न्याय अधिनियम के लागू होने के दस साल बाद भी न्याय वितरण में स्पष्ट कमजोरियां बनी हुई हैं, जिनमें न्यायाधीशों की कमी, आश्रय गृहों के कम निरीक्षण, अनुपस्थित डेटा सिस्टम और राज्यों के बीच व्यापक असमानताएं शामिल हैं।
इस अध्ययन में कहा गया है कि 31 अक्तूबर 2023 तक जेजेबी के समक्ष मौजूद 1,00,904 मामलों में से 55 प्रतिशत लंबित थे और राज्यवार यह आंकड़ा ओडिशा में 83 फीसदी से लेकर कर्नाटक में 35 फीसदी तक था।
देश के 765 जिलों में से 92 प्रतिशत में जेजेबी गठित हैं, लेकिन हर चार में से एक बोर्ड पूर्ण पीठ के बिना कार्य कर रहा है। औसतन प्रत्येक बोर्ड में पुराने मामलों की संख्या 154 है।
भारत में अपराध संबंधी आंकड़ों के अनुसार, यह निष्कर्ष इस पृष्ठभूमि में आया है कि 2023 में भारतीय दंड संहिता और विशेष कानूनों के तहत 31,365 मामलों में 40,036 किशोरों को पकड़ा गया, जिनमें से तीन-चौथाई की आयु 16 से 18 वर्ष के बीच है।
प्रणाली का विकेन्द्रीकरण हुए एक दशक बीत चुका है, फिर भी अनेक संरचनात्मक कमियां समय पर सहायता और पुनर्वास की प्रक्रिया में बाधा बन रही हैं।
रिपोर्ट में बताया गया है कि 30 प्रतिशत किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के पास कानूनी सेवा क्लिनिक नहीं है। चौदह राज्यों और जम्मू-कश्मीर में 18 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों के लिए सुरक्षित आवास की कमी है, जो उनके लिए बेहद ज़रूरी है।
इन राज्यों में बाल देखभाल संस्थानों (सीसीआई) की निगरानी भी संतोषजनक नहीं पाई गई है। इन राज्यों के 166 गृहों में, अनिवार्य 1,992 निरीक्षणों में से केवल 810 ही किए गए। 292 जिलों के आंकड़ों में पता चला कि केवल 40 गृह ऐसे हैं जो विशेष रूप से लड़कियों के लिए हैं।
रिपोर्ट के अनुसार, जेजेबी के लिए राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड जैसी कोई समतुल्य व्यवस्था न होने के कारण, आईजेआर टीम को 250 से ज़्यादा आरटीआई आवेदन दायर करने पड़े। इन जवाबों का ‘पैटर्न’ कमज़ोर पारदर्शिता की ओर इशारा करता है-28 राज्यों और दो केंद्र शासित प्रदेशों से प्राप्त 500 से ज़्यादा जवाबों में से 11 प्रतिशत खारिज कर दिए गए, 24 प्रतिशत पर कोई जवाब नहीं मिला, 29 प्रतिशत सिर्फ़ स्थानांतरित किए गए और केवल 36 प्रतिशत ने ही उपयोगी जानकारी प्रदान की।
इंडिया जस्टिस रिपोर्ट की प्रधान संपादक माजा दारूवाला ने निष्कर्षों को चिंताजनक संकेत करार दिया और कहा कि किशोर न्याय प्रणाली प्राधिकारियों से प्राप्त होने वाली सूचनाओं के नियमित प्रवाह पर निर्भर करती है।
उन्होंने कहा कि अनियमित और बिखरा डेटा निगरानी को कमजोर कर देता है और जवाबदेही को लगभग शून्य बना देता है।
भाषा
सुमित पवनेश