रेलवे अधिकारी अलग-थलग रहकर काम न करें, अनुत्पादक प्रणालियों से छुटकारा पाएं: राष्ट्रपति मुर्मू
संतोष नेत्रपाल
- 24 Feb 2025, 07:54 PM
- Updated: 07:54 PM
(तस्वीरों के साथ)
नयी दिल्ली, 24 फरवरी (भाषा) राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सोमवार को रेलवे अधिकारियों से कहा कि वे अनुत्पादक प्रणालियों के बोझ से मुक्त हों और अलग-थलग रहकर काम नहीं करें। हालांकि, उन्होंने माना कि रेलवे की सेवाएं बड़ी संख्या में लोगों के दैनिक जीवन की गुणवत्ता को निर्धारित करती हैं।
राष्ट्रपति भवन में उनसे मिलने आए रेलवे सेवा के परिवीक्षाधीन अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि भारत का एक बड़ा हिस्सा हर दिन रेल पटरियों के जरिये यात्रा करता है और इसलिए यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि भारतीय रेलवे देश की सामाजिक, सांस्कृतिक और वाणिज्यिक जीवनरेखा है।
मुर्मू ने भारतीय रेलवे सुरक्षा बल सेवा (आईआरपीएफएस), भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (लेखा) और भारतीय रेलवे प्रबंधन सेवा (यातायात) के प्रशिक्षु अधिकारियों को संबोधित करते हुए कहा कि रेलवे सेवाएं बड़ी संख्या में लोगों के दैनिक जीवन की गुणवत्ता निर्धारित करती हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘मैं रेलवे की तीन अलग-अलग शाखाओं के सभी युवा अधिकारियों से विशेष अपील करूंगी कि वे हमेशा ‘अलग-थलग रहकर काम करने’ से ऊपर उठकर काम करें। आप केवल उस कार्यक्षेत्र के लिए काम नहीं कर रहे हैं, जिसमें आप कार्यरत हैं। आप रेलवे की समग्र प्रभावशीलता के लिए काम कर रहे हैं, जो परिवर्तन के एक कारक और देश के लिए सेवा प्रदाता के रूप में काम कर रहा है।’’
मुर्मू ने औपनिवेशिक काल के दौरान रेलवे की स्थिति और अमृत-काल के भारत में इसकी भूमिका के बीच अंतर करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया।
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘आपको विरासत के अच्छे पहलुओं को जारी रखने की कोशिश करनी चाहिए और अनुत्पादक प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं के बोझ से छुटकारा पाना चाहिए। मैं चाहता हूं कि आज के रेलकर्मी 21वीं सदी के भारत के विकास में शानदार योगदान के नए अध्याय लिखें।’’
मुर्मू ने कहा कि आईआरपीएफएस के परिवीक्षाधीन अधिकारी भविष्य के नेतृत्वकर्ता हैं और वे कई चुनौतियों तथा खतरों से निपटेंगे। उन्होंने कहा कि अधिकारियों के ‘विचार और कार्य’ एक आधुनिक रेलवे प्रणाली की आवश्यकता से निर्देशित होने चाहिए जो सेवा प्रदाता के रूप में काम करे।
भारतीय लेखा परीक्षा एवं लेखा सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों के एक समूह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि वर्ष 2047 तक भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाने के महान राष्ट्रीय प्रयास में उन्हें महत्वपूर्ण भूमिका निभानी है।
राष्ट्रपति ने कहा कि उन्हें भारतीय संविधान के प्रावधानों को ध्यान में रखना होगा जो भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की संपूर्ण संस्था का आधार है।
उन्होंने कहा, ‘‘बाबासाहेब आंबेडकर की ओर से अकसर उद्धृत किए जाने वाले इस कथन के पीछे के दर्शन के बारे में सोचने की आवश्यकता है कि सीएजी संभवतः भारत के संविधान में सबसे महत्वपूर्ण अधिकारी है। उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश और सीएजी की शपथ एक ही है, यह तथ्य भी एक महत्वपूर्ण संकेत है। यह वित्तीय शासन के क्षेत्र में निष्पक्षता और न्याय सुनिश्चित करने में आपकी भूमिका की ओर इशारा करता है।’’
भाषा संतोष