असम में ‘फर्जी’ मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग वाली याचिका पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा
रंजन दिलीप
- 25 Feb 2025, 04:20 PM
- Updated: 04:20 PM
नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) असम सरकार ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय को बताया कि राज्य में पुलिस मुठभेड़ की जांच के लिए 2014 के दिशा-निर्देशों का विधिवत पालन किया गया और सुरक्षा बलों को अनावश्यक रूप से निशाना बनाना मनोबल गिराने वाला है।
इस दलील के बाद, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने मई, 2021 से अगस्त, 2022 के बीच असम में 171 कथित फर्जी पुलिस मुठभेड़ों की स्वतंत्र जांच की मांग करने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया।
असम सरकार का प्रतिनिधित्व कर रहे सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि 2014 के पीयूसीएल बनाम महाराष्ट्र मामले में पुलिस मुठभेड़ों की जांच के लिए उच्चतम न्यायालय के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन किया जा रहा है।
मेहता ने कहा, ‘‘सभी आवश्यक प्रोटोकॉल का पालन किया जाता है और सुरक्षा उपाय किए जाते हैं। यदि वे (सुरक्षाकर्मी) दोषी हैं, तो उन्हें दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन यदि वे दोषी नहीं हैं, तो उन्हें राज्य द्वारा संरक्षित किए जाने की आवश्यकता है। अनावश्यक रूप से निशाना बनाए जाने से सुरक्षा बलों का मनोबल गिर सकता है, विशेषकर उन परिस्थितियों में जिनमें वे काम कर रहे हैं।’’
आतंकी गतिविधियों और सुरक्षाकर्मियों के हताहत होने का जिक्र करते हुए मेहता ने याचिकाकर्ता आरिफ मोहम्मद यासीन जवादर की ईमानदारी पर सवाल उठाया।
उन्होंने कहा, ‘‘हमें नहीं पता कि याचिकाकर्ता कौन है और किसके लिए वह जांच का ब्योरा मांग रहा है। उसने दिल्ली में बैठकर यह मान लिया है कि सभी मुठभेड़ें फर्जी हैं और इन मामलों में कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं की गई है।’’
याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कहा कि जांच से सुरक्षा बलों का मनोबल गिरने की दलील कायम नहीं रह सकती, क्योंकि एक ईमानदार अधिकारी के लिए डरने की कोई बात नहीं है, जिसने कुछ भी गलत नहीं किया है।
उन्होंने कहा कि पुलिस मुठभेड़ों में घायल हुए लोगों के बयान या पीड़ितों के परिजनों के बयानों से पता चलता है कि मुठभेड़ें फर्जी थीं।
भूषण ने कहा, ‘‘याचिकाकर्ता की मांग है कि इन फर्जी मुठभेड़ों की जांच एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली स्वतंत्र समिति द्वारा की जाए। हमें यह जानने की जरूरत है कि असम में क्या हो रहा है और दोषी पुलिस अधिकारियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए जाने की जरूरत है।’’
शीर्ष अदालत ने चार फरवरी को कहा था कि वह कथित 171 पुलिस मुठभेड़ों के गुण-दोष पर विचार नहीं कर सकती, बल्कि वह केवल यह देखेगी कि इस तरह की न्यायेतर हत्याओं पर उसके दिशानिर्देशों का उचित तरीके से पालन किया गया या नहीं।
भूषण ने इन मुठभेड़ों में पीड़ितों या घायलों के परिवार के सदस्यों द्वारा लिखे गए पत्रों का हवाला दिया और कहा कि 2014 के दिशानिर्देशों का घोर उल्लंघन किया गया है।
उन्होंने कहा कि इन मुठभेड़ मामलों में दर्ज की गई अधिकांश प्राथमिकी पीड़ितों के खिलाफ थीं, जबकि दिशानिर्देशों में दोषी पुलिसकर्मियों के खिलाफ मामले दर्ज करने के लिए कहा गया था।
याचिकाकर्ता ने गुवाहाटी उच्च न्यायालय के जनवरी 2023 के आदेश को चुनौती दी है, जिसमें असम पुलिस द्वारा मुठभेड़ों पर एक जनहित याचिका को खारिज कर दिया गया था।
अपने आदेश में, उच्च न्यायालय ने असम सरकार के एक हलफनामे का हवाला दिया, जिसमें कहा गया था कि मई, 2021 और अगस्त, 2022 के बीच 171 घटनाएं हुईं, जिनमें 56 लोगों की मौत हो गई, जिनमें चार हिरासत में थे और 145 घायल हुए।
पिछले साल 22 अक्टूबर को शीर्ष अदालत ने स्थिति को "बहुत गंभीर" करार दिया और इन मामलों में की गई जांच सहित विवरण मांगा।
जुलाई, 2023 में, इसने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर असम सरकार और अन्य से जवाब मांगा।
याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय के समक्ष दावा किया कि मई, 2021 से रिट याचिका दायर करने तक असम पुलिस द्वारा 80 से अधिक "फर्जी मुठभेड़" की गईं, जिसके परिणामस्वरूप 28 मौतें हुईं।
भाषा रंजन