‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम में धन का कम उपयोग और प्रगति धीमी : पीआरएस का विश्लेषण
प्रशांत दिलीप
- 25 Feb 2025, 05:11 PM
- Updated: 05:11 PM
नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) पीआरएस लेजिस्लेटिव रिसर्च के विश्लेषण के अनुसार, महत्वाकांक्षी उद्देश्यों के बावजूद, ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के लिए आवंटित धनराशि का केवल 69 प्रतिशत ही 2024-25 तक उपयोग किया गया।
पीआरएस ने केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के लिए अनुदान मांग 2025-26 के विश्लेषण में कहा कि यद्यपि गंगा के पानी की गुणवत्ता में कुछ सुधार देखा गया है, लेकिन केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने पाया है कि औद्योगिक अपशिष्ट एक प्रमुख प्रदूषक बना हुआ है, तथा 450 से अधिक उद्योग प्रदूषण मानदंडों को पूरा करने में विफल रहे हैं।
इसके अतिरिक्त, अवजल उपचार क्षमता भी एक बाधा बनी हुई है।
सात हजार एमएलडी (मिलियन लीटर प्रतिदिन) उपचार क्षमता के लक्ष्य में से केवल 52 प्रतिशत ही हासिल की जा सकी है, जिसके कारण नदी में अनुपचारित अवजल का निरंतर प्रवाह हो रहा है।
थिंक टैंक के विश्लेषण के अनुसार, “राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) का लक्ष्य दिसंबर 2026 तक गंगा के आसपास 7,000 एमएलडी की अवजल उपचार क्षमता हासिल करना है। 6,217 एमएलडी क्षमता वाले अवजल उपचार संयंत्र बनाने और 5,282 किलोमीटर का सीवरेज नेटवर्क बिछाने के लिए दो सौ परियोजनाओं को मंजूरी दी गई है, लेकिन जून 2024 तक लक्षित अवजल शोधन नेटवर्क का 86 प्रतिशत बिछाया गया है, जबकि लक्षित अवजल उपचार क्षमता का केवल 52 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है।”
रिपोर्ट में पाया गया कि ‘नमामि गंगे’ कार्यक्रम के लिए आवंटित धनराशि “दो वर्षों (2020-21 और 2021-22) को छोड़कर, 2014-15 से हर साल कम उपयोग की गई है। ... 2024-25 तक बजटीय राशि का 69 प्रतिशत खर्च किया गया है।”
पीआरएस ने कहा कि 2024 के लिए लोक लेखा समिति (पीएसी) ने पाया था कि यह निधि बड़े पैमाने पर बिना इस्तेमाल के पड़ी हुई है।
पीआरएस ने कहा, “31 मार्च 2024 तक कोष में 876 करोड़ रुपये थे। इसमें से 383 करोड़ रुपये विभिन्न परियोजनाओं के लिए मंजूर किए गए हैं।”
पीएसी ने एनएमसीजी द्वारा परियोजना प्रबंधन में कई खामियों पर गौर किया था।
इसमें कहा गया था, “विस्तृत परियोजना रिपोर्ट के अनुमोदन में देरी, कार्यान्वयन की धीमी गति और कम निधि का उपयोग पाया गया। रिकॉर्ड का रखरखाव भी खराब था।”
पीएसी ने यह भी पाया कि विज्ञापन और प्रचार पर बहुत अधिक व्यय किया गया, जबकि जमीनी स्तर पर इसका कोई आनुपातिक प्रभाव नहीं पड़ा।
पीआरएस ने कहा, “यद्यपि स्वच्छ गंगा कोष की स्थापना अनिवासी भारतीयों और कॉर्पोरेट्स से धन एकत्र करने के लिए की गई थी, परन्तु 53 प्रतिशत धनराशि (मार्च 2024 तक) सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों से प्राप्त हुई है। पीएसी ने सिफारिश की कि एनएमसीजी को धन जुटाने के लिए वैकल्पिक साधन तलाशने चाहिए।”
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