दिल्ली आबकारी नीति पर विधानसभा में प्रस्तुत कैग रिपोर्ट की खास बातें
वैभव माधव
- 25 Feb 2025, 06:59 PM
- Updated: 06:59 PM
नयी दिल्ली, 25 फरवरी (भाषा) दिल्ली की पूर्ववर्ती आप सरकार ने आबकारी नीति 2021-22 को जारी कर बड़ा विवाद खड़ा कर दिया था, जिसके कारण अरविंद केजरीवाल सहित इसके शीर्ष नेताओं को जेल जाना पड़ा था।
जुलाई 2022 में उपराज्यपाल वी के सक्सेना की सिफारिश पर हुई सीबीआई जांच के बाद नीति को रद्द कर दिया गया था। मंगलवार को इस मुद्दे पर दिल्ली विधानसभा में पेश की गई कैग रिपोर्ट के मुख्य अंश इस प्रकार हैं:
1. आबकारी राजस्व को 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान: कमजोर नीति ढांचे से लेकर नीति के अपर्याप्त कार्यान्वयन तक कई मुद्दों के कारण कुल मिलाकर 2,002.68 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।
2. लाइसेंस नियमों का उल्लंघन:
विनिर्माण हित वाले थोक विक्रेताओं और खुदरा विक्रेताओं के साथ संबंध रखने वाले थोक विक्रेताओं ने दिल्ली में कुल शराब व्यापार के लगभग एक तिहाई की आपूर्ति को नियंत्रित किया, जिससे एकाधिकार और ब्रांड को बढ़ावा देने का जोखिम पैदा हुआ।
3. थोक विक्रेताओं का मुनाफा पहले के 5 प्रतिशत से बढ़ाकर 12 प्रतिशत किया गया:
मंत्रियों के समूह द्वारा दिया गया तर्क यह था कि वैश्विक वितरण मानक, गुणवत्ता जांच प्रणाली के साथ गोदामों में प्रयोगशालाएं स्थापित करने और स्थानीय परिवहन की लागत को कवर करने के लिए उच्च लाइसेंस शुल्क की भरपाई करना आवश्यक था।
4. खुदरा शराब लाइसेंस:
उचित जांच और सॉल्वेंसी, वित्तीय विवरणों तथा आपराधिक पृष्ठभूमि के सत्यापन के बिना खुदरा शराब लाइसेंस दिए गए।
5. विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें:
नीति का मसौदा तैयार करने वाली विशेषज्ञ समिति की सिफारिशों को तत्कालीन उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की अध्यक्षता वाले मंत्रियों के समूह (जीओएम) द्वारा बदल दिया गया था। विशेषज्ञ समिति ने शराब के थोक व्यापार को सरकारी एजेंसी द्वारा संभाले जाने की सिफारिश की, लेकिन जीओएम ने थोक व्यापार को निजी संस्थाओं द्वारा संभालने की सिफारिश की।
6. शराब के खुदरा व्यापार में एकाधिकार:
इस नीति का उद्देश्य दिल्ली में शराब के खुदरा व्यापार में एकाधिकार को खत्म करना था। हालांकि, वास्तव में इससे एकाधिकार और ब्रांड को बढ़ावा मिलने का खतरा था। शहर में आईएमएफएल और विदेशी शराब की 71 प्रतिशत आपूर्ति पर केवल तीन निजी थोक विक्रेताओं का नियंत्रण था। साथ ही, 32 क्षेत्रों में फैली 849 शराब दुकानों को चलाने के लिए केवल 22 निजी संस्थाओं को लाइसेंस दिया गया था।
7. राजस्व संबंधी प्रभाव:
राजस्व संबंधी प्रमुख निर्णय मंत्रिमंडल की मंजूरी और उपराज्यपाल की राय के बिना लिए गए।
8. दोषपूर्ण गुणवत्ता अनुपालन:
आबकारी विभाग ने उन संस्थाओं को लाइसेंस जारी किए जिनके पास उचित गुणवत्ता परीक्षण रिपोर्ट नहीं थी या जो भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) मानदंडों का अनुपालन नहीं करती थीं। 51 प्रतिशत विदेशी शराब परीक्षण मामलों में, रिपोर्ट या तो गायब थीं या एक वर्ष से अधिक पुरानी थीं।
भाषा वैभव