न्यायालय ने केंद्र से ऑनलाइन सामग्री को बिना ‘नियंत्रण’ के विनियमित करने को कहा
संतोष नरेश
- 03 Mar 2025, 09:54 PM
- Updated: 09:54 PM
नयी दिल्ली, तीन मार्च (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को केंद्र को सोशल मीडिया सामग्री को विनियमित करने के लिए एक तंत्र तैयार करने का निर्देश दिया, लेकिन इसके साथ नियंत्रण (सेंसरशिप) के प्रति आगाह भी किया।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि केंद्र को सभी हितधारकों की राय लेनी चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘हमने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता को इस तरह के विनियामक तंत्र पर विचार-विमर्श करने और सुझाव देने को कहा है, जो बोलने की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति के अधिकार का अतिक्रमण न करे और संविधान के अनुच्छेद 19 (4) में वर्णित ऐसे मौलिक अधिकार के मापदंडों को सुनिश्चित करने के लिए पर्याप्त प्रभावी भी हो।’’
पीठ ने आगे कहा कि कोई भी विधायी या न्यायिक उपाय करने से पहले सभी हितधारकों के सुझावों के लिए किसी भी मसौदा विनियमन तंत्र को सार्वजनिक रूप से लोगों के बीच लाया जा सकता है।
‘पॉडकास्टर’ रणवीर इलाहाबादिया की याचिका पर सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘इस उद्देश्य के लिए हम इन कार्यवाहियों के दायरे का विस्तार करने के इच्छुक हैं।’’ हालांकि, पीठ ने एक ऐसी नियामक व्यवस्था के लिए कहा जिसमें ‘सेंसरशिप’ न हो।
मेहता ने कहा कि अब सब कुछ खुले में है और कोई भी बच्चे को 18 वर्ष से अधिक आयु के लोगों के लिए उपयुक्त किसी चीज तक पहुंचने से नहीं रोक सकता।
उन्होंने कहा, ‘‘कुछ दिशा-निर्देश तय किए जाने चाहिए, हम विदेशों की अश्लीलता का मुकाबला नहीं कर सकते। नैतिकता के बारे में हमारी धारणाएं अन्य देशों की धारणाओं से बहुत अलग हैं। उदाहरण के लिए अमेरिका को ही लें, जहां पहले संशोधन के तहत राष्ट्रीय ध्वज को जलाना एक मौलिक अधिकार है और यहां हमारे देश में इसे आपराधिक कृत्य माना जाता है।’’
मेहता की दलीलों से सहमति जताते हुए अदालत ने कहा, ‘‘समाज दर समाज नैतिक मानदंड अलग-अलग होते हैं। अलग-अलग समाजों में कुछ सख्त मानदंड होते हैं, जबकि हम उन मानदंडों के मामले में उदार हैं। हमने खुद को बोलने और अभिव्यक्ति के अधिकार की गारंटी दी है, लेकिन ये गारंटी कुछ शर्तों के अधीन हैं।’’
मेहता ने अश्लीलता और हास्य के बीच अंतर करने की आवश्यकता की वकालत की।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने इसके बाद एक 70 वर्ष से अधिक उम्र के यूट्यूबर का जिक्र किया और कहा कि आपको उनके हास्य की गुणवत्ता देखनी चाहिए।
उन्होंने कहा, ‘‘हास्य एक ऐसी चीज है जिसका पूरा परिवार आनंद ले सकता है। कोई भी शर्मिंदा महसूस नहीं करता। कार्यक्रम देने वाला या दर्शक, कोई भी। यही प्रतिभा प्रदर्शित करती है और गंदी भाषा का इस्तेमाल करना प्रतिभा नहीं है। प्रतिभा एक बहुत ही सम्मानजनक शब्द है। हमारे पास बॉलीवुड में बेहतरीन प्रतिभाएं हैं, लेखक भी हास्य लिखने में बहुत अच्छे हैं। उनके शब्द और भाव देखें; उनके संवाद देखें और वे कैसे बातचीत करते हैं। इसमें रचनात्मकता का एक तत्व है। यह एक कला है।’’
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने किसी भी व्यक्ति के कुछ भी देखने के अधिकार को रेखांकित करते हुए कहा, ‘‘कोई भी व्यक्ति कुछ भी देखना चाहता है, यह उसकी पसंद है। यह समस्या नहीं है। उन्हें ऐसा करने दें। सिर्फ इसलिए कि आपका कोई व्यावसायिक उद्यम और व्यावसायिक हित है और इसलिए, आप कुछ भी कह सकते हैं, ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।’’
मेहता ने कहा कि व्यक्तिगत अधिकारों का अतिक्रमण किए बिना, कोई कार्यप्रणाली बनाई जानी चाहिए।
भाषा संतोष