भारतीय नौकरशाहों ने 1987 में बोफोर्स अधिकारियों को 'राजीव गांधी को बचाने का तरीका सुझाया था: किताब
धीरज पवनेश
- 04 Mar 2025, 03:36 PM
- Updated: 03:36 PM
नयी दिल्ली, चार मार्च (भाषा) देश के चर्चित मामलों में से एक बोफोर्स घूसकांड में ''तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सभी दोषों से कैसे मुक्त किया जाए'' इसे लेकर वरिष्ठ अधिकारियों ने 1987 में एक 'गुप्त बैठक' में बोफोर्स अधिकारियों को '' तरीके सुझाए'' थे। यह सनसनीखेज खुलासा खोजी पत्रकार चित्रा सुब्रमण्यम ने अपनी आने वाली किताब में किया है।
इस घोटाले ने लगभग चार दशक पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार को बड़ी मुश्किल में डाल दिया था।
सुब्रमण्यम के दावे ‘‘बोफोर्स के शीर्ष अधिकारियों और भारत के शीर्ष नौकरशाहों’’ के बीच हुई एक गुप्त बैठक के सारांश पर आधारित हैं, जो उन्हें एक सूत्र, स्टेन लिंडस्ट्रोम (पुस्तक में ‘स्टिंग’ के नाम से उल्लेख किया गया है) द्वारा प्रदान किया गया था। लिंडस्ट्रोम स्वीडिश पुलिस प्रमुख थे जो अपने देश में बोफोर्स की जांच कर रहे थे।
बोफोर्स घोटाला 1980 के दशक में तत्कालीन कांग्रेस सरकार के दौरान स्वीडिश कंपनी बोफोर्स के साथ 1,437 करोड़ रुपये के सौदे में 64 करोड़ रुपये की रिश्वत के आरोपों से संबंधित है। यह समझौता 155 मिमी फील्ड हॉवित्जर श्रेणी की 400 तोपों की आपूर्ति के लिए किया गया था, जिसने कारगिल युद्ध के दौरान भारत की जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस मामले की सुनवाई 2011 में बंद कर दी गई थी।
स्वीडिश रेडियो द्वारा 16 अप्रैल 1987 को भारत के साथ बोफोर्स होवित्जर सौदे में कथित रिश्वतखोरी की खबर प्रसारित करने के तुरंत बाद यूरोप से इस मामले को कवर करने वाली पत्रकार ने अपनी जांच का विवरण 320 पृष्ठों की अपनी किताब ‘बोफोर्सगेट’ में साझा किया है। इस किताब को जगरनॉट ने प्रकाशित किया है।
किताब के मुताबिक 22 अगस्त 1989 को स्टिंग ने पत्रकार को स्टॉकहोम में दस्तावेज का एक हिस्सा उपलब्ध कराया, जिसमें बोफोर्स और भारतीय अधिकारियों के बीच हुई बैठकों का 15 पृष्ठों का ‘सहमति से तैयार सारांश’ भी शामिल था, जिसने ‘‘अंततः मामले को दबाने का आधार तैयार किया’’।
इस महीने की 17 तारीख को बाजार में आ रही किताब में सुब्रमण्यम ने लिखा है, ‘‘यह 15 पृष्ठों का एक सहमति-आधारित सारांश था, जिसमें बताया गया था कि भ्रष्टाचार को कैसे छिपाया जाए, मेरी जांच में प्रगति से कैसे निपटा जाए और सबसे बढ़कर, प्रधानमंत्री राजीव गांधी को सभी दोषों से कैसे मुक्त किया जाए। ये चर्चाएं रक्षा मंत्रालय में 15, 16 और 17 सितंबर 1987 को (रेडियो के खुलासे के ठीक पांच महीने बाद) हुई थीं।’’
इन गुप्त बैठकों की जानकारी देते हुए सुब्रमण्यम ने लिखा कि बोफोर्स टीम को सरदार पटेल मार्ग पर उच्च सुरक्षा वाले क्षेत्र में मौजूद एक पांच सितारा होटल में ठहराया गया था और उनके कमरों को अन्य की पहुंच से दूर रखा गया था।
सुब्रमण्यम का दावा है कि पेर ओवे मोरबर्ग और लार्स गोहलिन ने बोफोर्स प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व किया था, जबकि भारतीय दल में एसके भटनागर, पीके कार्था, गोपी अरोड़ा और एनएन वोहरा जैसे प्रमुख लोग शामिल थे, जिन्हें रक्षा मंत्रालय में तत्कालीन संयुक्त सचिव के बनर्जी ने सहायता प्रदान की थी।
पुस्तक में कहा गया है कि बोफोर्स समूह ने कहा था कि जब भारत ने ‘‘कोई एजेंट नहीं’’ नीति लागू की थी, तब उसने सभी अनुबंध समाप्त कर दिए थे और यह गारंटी मांगी थी कि जो कुछ भी वह जानकारी देगा, उसे ‘‘गोपनीय’’ रखा जाएगा, लेकिन भारत ने दावा किया कि मीडिया में खुलासे और प्रदर्शनों के कारण वह ऐसा करने की स्थिति में नहीं है।
जीवन के छठे दशक में दाखिल हो चुकीं सुब्रमण्यम लिखती हैं, ‘‘इसके बाद प्रशिक्षण शुरू हुआ। भारतीय अधिकारियों ने बोफोर्स टीम को बताया कि जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) एक संसदीय निकाय है, लेकिन उन्हें (बोफोर्स को) उससे अधिक कुछ भी बताने की आवश्यकता नहीं है, जितना वे आवश्यक समझते हैं। भारतीय प्रतिनिधिमंडल बोफोर्स को जानकारी छिपाने के तरीके सुझा रहा था, जबकि वह अपने लिए विवरण सुरक्षित कर रहा था।’’
पुस्तक में अरुण नेहरू की भूमिका, अमिताभ बच्चन को फंसाने के कथित प्रयास, स्विट्जरलैंड से सूचना प्राप्त करने के अनुरोध को कमजोर करने, खबर को दबाने में समकालीन पत्रकारों और संपादकों की भूमिका तथा एक युवा मां के रूप में सुब्रमण्यम के संघर्षों की विस्तार से जानकारी दी गई है।
सुब्रमण्यम ने लिखा, ‘‘ जब घोटाला सामने आया तब मेरी शादी के चार साल हुए थे और मैं एक बच्चे की मां थी। मैंने अपने बेटे को दूध की बोतलों, पैम्पर्स और भारत से आने वाले ट्रंक कॉल के बीच पाला। जब मैं अपने करियर की सबसे बड़ी खबर और अपने देश के समकालीन इतिहास के साथ अपने दांपत्य जीवन की जिम्मेदारियों को निभा रही थी तो मेरे दिमाग में कई प्रश्न उठ रहे थे।’’
भाषा
धीरज